Jhuth Bole Kauva Kaate! ‘‘डिजिटल रेप’’ का शिकार आपकी संतान तो नहीं

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Jhuth Bole Kauva Kaate! ‘‘डिजिटल रेप’’ का शिकार आपकी संतान तो नहीं

* मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में नामी इंटरनेशनल बिल्लाबोंग स्कूल के एक बस ड्राइवर पर 3 साल की मासूम के साथ ‘‘डिजिटल रेप’’ का ताजातरीन आरोप। शासन ने आरोपित के अवैध घर पर बुलडोजर चलाया।

* उत्तर प्रदेश के नोएडा में बीते 30 अगस्त को न्यायालय ने ‘डिजिटल रेप’ के मामले में एक 65 वर्षीय व्यक्ति को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। कोर्ट ने 50 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया।

* नोएडा में ही पुलिस ने 81 साल के एक पेंटर को 10 साल की नाबालिग से ‘डिजिटल रेप’ के मामले में गिरफ्तार किया था। पीड़िता जब विरोध करती थी तो आरोपी उसको पीटता भी था।

* फरवरी, 2019 में दिल्ली की एक अदालत ने 38 वर्षीय एक व्यक्ति को 2013 में एक अमेरिकी नागरिक के ‘डिजिटल रेप’ के लिए सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। दोषी पर 5 लाख रुपये का जुर्माना भी ठोका।

* एक अन्य मामले में नोएडा में एक पिता पर पांच वर्षीय बच्चे के साथ ‘डिजिटल रेप’ का आरोप लगाया गया था और मां की शिकायत के बाद उसे गिरफ्तार किया गया था। ये तो ‘डिजीटल रेप’ के मात्र कुछ मामले हैं। अन्यथा, 2008 से अब तक ऐसे मामलों में 350% की वृद्धि हुई है। हालांकि, शोधकर्ताओं के अनुसार, ‘डिजिटल रेप’ के 80% से अधिक मामले तो घरों, स्कूलों, कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थानों पर अनकहे, अनसुने और अनसुलझे रह जाते हैं।

बोले तो, जब कोई व्यक्ति पीड़ित की बिना सहमति के उसके प्राइवेट पार्ट्स को अपनी अंगुलियों, अंगूठे या या किसी वस्तु से छेड़ता है तो ये ‘डिजिटल रेप’ कहलाता है। ‘डिजिटल रेप’ का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि लड़का या लड़की का शोषण इंटरनेट के माध्यम से किया जाए। ये शब्द दो शब्दों को जोड़कर बना है। इंग्लिश के डिजिट का हिंदी में अर्थ अंक होता है तो वहीं अंग्रेजी के शब्दकोश में डिजिट अंगुली, अंगूठा, पैर की अंगुली को कहा जाता है। इसीलिए, ऐसे यौन उत्पीड़न को ‘डिजिटल रेप’ कहा गया, जिसे कानून में और व्यापक पारिभाषित किया गया।

बिल्लाबोंग स्कूल वाले मामले में बच्ची की मां ने शिकायत में बताया कि 8 सितंबर, 2022 को मेरी बेटी जब स्कूल से घर पहुंची तो स्कूल के स्कर्ट की जगह घर के कपड़े पहनी हुई थी। यह देख कर मुझे हैरानी हुई। मैंने सबसे पहले बेटी की क्लास टीचर को फोन किया। उनसे पूछा कि क्या मेरी बेटी ने स्कूल में उल्टी या टॉयलेट किया था। वह बोली ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

Jhuth Bole Kauva Kaate!  ‘‘डिजिटल रेप’’ का शिकार आपकी संतान तो नहीं

उन्होंने ये भी बताया है कि आपकी बेटी स्कूल ड्रेस में ही घर के लिए निकली थी। इसके बाद जब मैंने बेटी के कपड़े चेंज किए तो, मुझे उसके प्राइवेट पार्ट पर खरोंच से निशान दिखाई दिए। मैंने बच्ची से पूछा कि ये कैसे हुआ और किसने किया। तुम्हें कोई बैड टच करता है क्या? बेटी बोली ड्राइवर अंकल बैड हैं, वह बैड टच करते हैं। पुलिस ने आरोपी बस ड्राइवर के खिलाफ दुष्कर्म की धारा सहित पोस्को एक्ट के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया। घटना के समय बस में महिला केयर टेकर भी थी, पुलिस ने उसे भी हिरासत में लिया है।

दिसंबर 2012 तक, ‘डिजीटल रेप’ को छेड़छाड़ के रूप में माना जाता था और यह बलात्कार की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता था। 2012 में निर्भया भीषण सामूहिक बलात्कार मामले के बाद, संसद में नए बलात्कार कानून पेश किए गए, और इस अधिनियम को यौन अपराध के रूप में नामित किया गया।

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2013 से पहले ‘डिजिटल रेप’ जैसा कोई शब्द नहीं था। तो, ऐसे अपराधी आसानी से दुष्कर्म के आरोप से बच निकलते थे। ऐसे ही एक मामले में, मुंबई में 2 साल की बच्ची को खून से लथपथ अस्पताल लाया गया। जांच करने पर, डॉक्टरों ने पाया कि उसकी योनि फट गई थी, हालांकि यौन उत्पीड़न या बलात्कार के कोई निशान नहीं थे। हालांकि, बाद में पता चला कि उसका पिता ही अपनी उंगलियों से छोटी लड़की का यौन उत्पीड़न कर रहा था। उसे गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडित या आरोपित नहीं किया गया, जो बलात्कार अपराधों से संबंधित है।

दिल्ली में हुई एक अन्य घटना में, एक ऑटो रिक्शा चालक ने एक 60 वर्षीय महिला का यौन उत्पीड़न किया, जिसने अपने रिश्तेदार की शादी में आई 60 वर्षीय महिला के प्राइवेट पार्ट में लोहे की छड़ घुसा दी थी। ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सका।

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इन घटनाओं ने आईपीसी की धारा 376 में विभिन्न खामियों की ओर इशारा किया, जो बलात्कार के अपराधों से संबंधित है। साल 2012 में निर्भया केस के बाद यौन उत्पीड़न के इस पहलू को साल 2013 के आपराधिक कानून संशोधन के माध्यम से बलात्कार की परिभाषा में शामिल किया गया जिसने इस अपराध को संशोधित और विस्तारित किया। संशोधन के बाद बलात्कार का मतलब सिर्फ सहवास तक ही सीमित नहीं रह गया है। अब एक महिला के योनि, मुंह, गुदा या मूत्रमार्ग में किसी भी हद तक प्रवेश भी रेप की श्रेणी में आता है। निर्भया एक्ट का पार्ट-बी विशेष रूप से कहता है कि किसी भी हद तक प्रवेश, किसी भी वस्तु या शरीर को कोई भी हिस्सा जो लिंग नहीं है, वो भी बलात्कार की परिभाषा के अंदर ही है।

झूठ बोले कौआ काटेः

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, बीते साल (2021) देश में हर दिन 85 नाबालिग लड़कियों का रेप हुआ। पिछले साल देश में रेप के 31,677 मामले दर्ज हुए। राजस्थान में रेप के सबसे अधिक 6,337 मामले दर्ज किए गए। इसी तरह उत्तर प्रदेश में 2,845, हरियाणा में 1,700 और दिल्ली में रेप के 1,250 मामले दर्ज किए गए।

बोले तो, पिछले साल देश में 312 लड़कों का रेप हुआ। उत्तर प्रदेश में ऐसे सबसे ज्यादा 96, केरल में 74, हरियाणा में 61, तमिलनाडु में 34, पश्चिम बंगाल में 22 और उत्तराखंड में आठ लड़कों के साथ रेप की घटनाएं दर्ज हुईं।

उल्लेखनीय है कि 70% बार, जो व्यक्ति किसी महिला के शील को ठेस पहुंचाता है या किसी बच्चे की गरिमा का उल्लंघन करता है, वह ऐसा व्यक्ति होता है जिसे वे व्यक्तिगत रूप से जानते थे। आमतौर पर, ये अपराध पीड़ित के करीबी लोगों द्वारा किए जाते हैं। 29% बार अपराधी कोई ऐसा व्यक्ति था जिसे पीड़ित अपने सामाजिक दायरे के माध्यम से जानता था। कोई ऐसा व्यक्ति जिसे वे अपने मित्रों या कार्य मंडली के माध्यम से जानते हों। या कोई ऐसा व्यक्ति जिससे वे पहली बार डेट के जरिए मिल रहे हों। आपको जानकर हैरानी होगी कि केवल 1% मामले दर्ज होते हैं जिनमें अपराधी एक अजनबी था।

कई रिपोर्टों में, यह स्पष्ट किया गया है कि सिर्फ इसलिए कि वे अपने लिंग से उसके शरीर का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं, अपराधी महिलाओं और बच्चों का डिजिटल रूप से बलात्कार करने की कोशिश करते हैं। भारत में ‘डिजिटल रेप’ के बहुत कम मामले दर्ज होते हैं। कारण कि अधिकांश लोग रेप के कानूनों और डिजिटल रेप शब्द के बारे में नहीं जानते हैं। कानून में इस अपराध के लिए कम से कम पांच साल जेल की सजा हो सकती है। कुछ मामलों में यह 10 साल तक, तो कुछ मामलों में उम्रकैद के साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

इस तथ्य के बावजूद कि ‘डिजीटल रेप’ एक लिंग-तटस्थ शब्द है जो सभी प्रकार के पीड़ितों और अपराधियों को कवर करता है, भारतीय कानून केवल महिला पीड़ितों और पुरुष अपराधियों को परिभाषित करते हैं। बलात्कार पीड़ितों को सांसदों द्वारा दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है – वयस्क और नाबालिग। जहां वयस्क डिजिटल बलात्कारियों पर धारा 375 के तहत मामला दर्ज किया जाता है और उन पर मुकदमा चलाया जाता है, वहीं नाबालिग डिजिटल बलात्कारियों पर धारा 375 और POCSO अधिनियम दोनों के तहत मुकदमा चलाया जाता है।

‘डिजिटल रेप’, छेड़छाड़ इत्यादि से बचने के लिए समाज को पर्याप्त जागरूक होने की आवश्यकता है। छोटे बच्चों को बैड टच की जानकारी होनी चाहिए, तो किशोरों-वयस्कों को इस तरह के डिजिटल बलात्कारों से खुद को बचाने के लिए आत्मरक्षा उपकरण हमेशा अपने पास रखने चाहिए। 18 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग लड़कियों की सुरक्षा के लिए संस्थानों में सामान्य जागरूकता सत्र आयोजित किए जाने चाहिए।

और ये भी गजबः

मध्य प्रदेश के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा तैयार फिल्म ‘कोमल’ में बच्चियों के यौन शोषण के बारे में बताया गया है। इसमें बच्चियों को गुड टच और बैड टच के बारे में स्टोरी के माध्यम से समझाया गया है। ऐसी परिस्थितियों में बच्चियों को क्या करना है, इसके बारे में बताया गया है। इसी तरह एक अन्य वीडियो ‘लाइक सिस्टर’ में पास्को एक्ट के बारे में बच्चों को बताया गया है। वीडियो कहानी ‘महेश की मुसीबत’ में बच्चों को राज्य सरकार के शिक्षा के अधिकार के बारे में बताया जा रहा है। इस कहानी में बच्चों के प्रति शारीरिक और मानसिक सजा के उपयोग पर रोक लगाए जाने का संदेश दिया गया है। इसी तरह एक अन्य वीडियो कहानी में बच्चियों को बाल विवाह के बुरे प्रभावों के बारे में बताया गया है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे कम उम्र में बच्चियों का विवाह होने के बाद उन्हें होने वाले शारीरिक और सामाजिक प्रभावों से जूझना पड़ता है।

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महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा तैयार किए गए ये वीडियो सभी जिलों के जिला शिक्षा अधिकारियों को दिए गए हैं। इसके माध्यम से ये सभी वीडियो स्कूलों में बच्चियों को दिखाए जाएंगे. साथ ही टीचर्स द्वारा इन्हें समझाया जाएगा, ताकि बच्चों के साथ होने वाले अपराधों को लेकर वे सचेत हो सकें।