Jhuth Bole Kauva Kaate: हिजाब का असर, होगा उलटफेर

Jhuth Bole Kauva Kaate: हिजाब का असर, होगा उलटफेर

उडुपी से चली हिजाब की हवा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों के लिए हुए मतदान पर कितना असर डाला, सियासी खेमों में अब नफा-नुकसान नापने और आगे की रणनीति पर मंथन शुरु हो गया है। पहले चरण में योगी सरकार के 9 मंत्रियों का चुनावी परीक्षाफल भी ईवीएम में बंद हो गया।

Election
Election

भाजपा ने पिछली बार इन 58 में से 53 सीटों पर जीत हासिल की थी। तब समाजवादी पार्टी और बसपा ने 2-2 और राष्ट्रीय लोकदल ने एक सीट जीती थी। इस बार, हिजाब की हवा में इन सीटों पर कमल फिर खिलेगा या साइकिल तेज दौड़ेगी, शेष चरणों पर क्या असर होगा, तय है कि सब ध्रुवीकरण की दिशा-दशा पर निर्भर करेगा। वैसे, 10 मार्च को यह साफ भी हो जाएगा। इन 58 सीटों पर निर्णायक भूमिका में 27 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि, 25 प्रतिशत दलित, 17 फ़ीसदी जाट, 8 फ़ीसदी राजपूत और 7 फ़ीसदी यादव मतदाताओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।

पहले चरण में सपा-रालोद गठबंधन के 13, बसपा के 17, कांग्रेस के 11 और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन के 9 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में थे। वहीं, भाजपा ने किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया था। अभी तक जो दिग्गज मुस्लिम नेता पश्चिमी उप्र की सियासत की धुरी थे, वे इस बार चुनावी मैदान से बाहर थे। 2017 के चुनाव में पहले चरण में सिर्फ 2 मुस्लिम ही जीतकर विधानसभा पहुंचे थे, जिसमें एक मेरठ शहर से दूसरे धौलाना से थे। पहले चरण वाली इन 58 में से 7 सीटों पर दोनों ही प्रमुख पार्टियों के मुस्लिम प्रत्याशी आपस में टकराए थे। ये सभी सीटें भाजपा जीती थी।

भाजपा ने पिछली बार के 23 उम्मीदवार बदल दिए हैं। 19 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे हैं और चार उन उम्मीदवारों को जो पिछली बार हार गए थे। बसपा ने अपने उम्मीदवारों में सबसे ज़्यादा बदलाव किया है। इस बार उसने 56 नए चेहरे मैदान में उतारे हैं। इस बार समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल साथ-साथ चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें समाजवादी पार्टी 28 सीटों पर, राष्ट्रीय लोकदल 29 सीटों पर और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एक सीट पर मैदान में है। गठबंधन ने 43 नए चेहरों को मैदान में उतारा है जबकि 15 पुराने उम्मीदवार हैं। इन 43 उम्मीदवारों में से किसी ने भी पिछली बार सपा या रालोद के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ा है।

वहीं, इस बार पहले चरण में 8 सीटों पर सपा-रालोद गठबंधन और बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार आमने-सामने मैदान में है। इसके अतिरिक्त कई सीटों पर कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी से मुस्लिम प्रत्याशियों ने सपा-रालोद गठबंधन और बसपा के उम्मीदवारों के सामने आकर मुकाबला कहीं त्रिकोणीय तो कहीं चतुष्कोणीय बना दिया। मुस्लिम वोटों के बंटने-बिखरने या हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण से नेताओं की किस्मत भी तय होगी। सपा-रालोद गठबंधन की उम्मीदें मुस्लिम-जाट गठजोड़ पर टिकी हैं तो बसपा भी दलित-मुस्लिम वोट के सहारे जीत का सपना देख रही है। वहीं, पहले चरण की कई सीटों पर मुस्लिम नेताओं के आमने-सामने टकराने से भाजपा को अपनी जीत की आस दिख रही है।

पश्चिमी उप्र भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। 2017 में भगवा पार्टी को पूरे उप्र में 41 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं, पश्चिमी उप्र में उसका वोट शेयर 44.14 प्रतिशत था, जो आंशिक रूप से कैराना से हिंदुओं के धार्मिक प्रचार का नतीजा था। 2019 के आम चुनाव में पूरे उप्र में भाजपा का वोट शेयर 50 प्रतिशत था। वहीं, पश्चिमी उप्र में यह 52 प्रतिशत था। एक खास बात जो हुई थी, वो ये कि 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को उन सीटों पर भी जीत हासिल हुई थी, जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा थी। माना जाता है कि तीन तलाक कानून के चलते मुस्लिम महिलाओं का वोट भाजपा को मिला था। तब न किसान आंदोलन का असर था, न सपा-रालोद गठबंधन। लेकिन, इस बार हालात बदले हुए हैं और हिजाब की हवा में ऊंट किस करवट बैठेगा, कहना मुश्किल है।

झूठ बोले कौआ काटेः

उत्तर प्रदेश में हिजाब विवाद को जमकर सर्च किया जा रहा है। गूगल पर इस विवाद को सर्च करने के मामले में तेलंगाना और तमिलनाडु के बाद उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर है। मतलब साफ है कि वोटिंग पर इसका प्रभाव पड़ना ही है। भाजपा को चुनाव में चुनौती दे रही समाजवादी पार्टी मुस्लिम-जाट समीकरण साधने के चलते इस मुद्दे पर खामोश है। न अखिलेश यादव कुछ बोले, न रालोद के मुखिया जयंत चौधरी का कोई बयान आया।

मायावती ने भी इस पर बोलना उचित नहीं समझा। बसपा को दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे उम्मीद है। ऐसे में, जहां असदुद्दीन ओवैसी हिजाब विवाद को तूल देकर मुसलमानों के वोट अपनी पार्टी की झोली में डालना चाहते हैं, वहीं भाजपा प्रतिक्रिया में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की आशा कर रही है। इस कारण, यदि ओवैसी की तरफ कुछ फीसदी वोट खिसकते हैं तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पहले चरण वाली कई सीटों पर उलटफेर देखने को मिल सकता है।

संसद सदस्य भारत रत्न जिसने भत्ते का एक पैसा नहीं लियाः

सुर साम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकर की स्मृतियां अब शेष हैं। चुनावी माहौल में कुछ बात उनके सियासी सफर की। लता जी नवंबर 1999 में भाजपा के समर्थन से संसद के उच्च सदन के लिए चुनी गईं और नवंबर 2005 तक छह साल तक सदन में रहीं। एक आरटीआई के जरिए हुए खुलासे  के अनुसार, लता जी ने संसद सदस्य के रूप में मिलने वाले किसी भी भत्ते को कभी नहीं छुआ। बताया गया कि वेतन लेखा कार्यालय से उन्हें किए गए सभी भुगतान वापस कर दिए गए थे।

मुंबई में एक बार संवाददाता सम्मलेन में वोट डालने के सवाल पर लता जी का कहना था, “वोट तो करना पड़ेगा. वो ज़रूरी है, करना ही चाहिए। सरकार में उसे ही आना चाहिए जो देश को संभाल सके और उसका सर ऊंचा कर सके।” राजनीति पर अपनी समझ को कम बताते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मेरी दिलचस्पी कम है राजनीति में इसलिए समझ भी उतनी नहीं है। मैं इससे दूर ही रहती हूं और कोई नज़र में भी नहीं है। जो भी आए बस वो अच्छा हो।’’

Also Read: प्रधानमंत्री के भाई को शादी में बुला कर चर्चित हुआ राठौर परिवार अब प्रशासन के निशाने पर 

अपने कार्यकाल के दौरान, लता मंगेशकर केवल 12 दिन सदन में पहुंच सकीं। छह साल में उन्होंने ट्रेनों के पटरी से उतरने पर सिर्फ एक सवाल पूछा। हालांकि 2002 में उन्होंने आतंकवाद रोकथाम विधेयक (पोटा) के पक्ष में वोट दिया था जो बाद में संसद के संयुक्त सत्र में पास हुआ था। तत्कालीन संसदीय कार्यमंत्री प्रमोद महाजन पोटा अध्यादेश के स्थान पर कानून लाना चाहते थे और उसके लिए वह अधिकतर सांसदों की उपस्थिति सुनिश्चित करना चाहते थे।

तब, लता जी ने पोटा बिल पर मतदान में हिस्सा लिया था। आजादी की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर भी संसद के केंद्रीय कक्ष में कार्यक्रम का हिस्सा रहीं। 14-15 अगस्त, 1997 की दरमियानी रात के सत्र में लता जी की ‘सारे जहां से अच्छा…’ और पंडित भीमसेन जोशी की वंदे मातरम की प्रस्तुतियों ने सांसदों को रोमांचित कर दिया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि लता जी कभी स्कूल शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाई। उनकी जिंदगी सिर्फ संगीत के सुर-ताल पर ही रही।

और ये भी गजबः इंदौर में वर्षा झालानी नामक गायिका ने अपने घर में लता दीदी का मंदिर बनाया हुआ है। वर्षा  के दिन की शुरुआत और अंत लता ताई के गीत से होती है। वो सुबह और शाम उनकी आरती उतारती हैं। लता जी के जीवन से जु़ड़ी शायद ही कोई फोटो हो जो इस मकान में न सजी हो और न ही मकान का कोई ऐसा कोना है जहां लता जी नजर न आती हों।

भारत की अनमोल रतन लता दीदी को शत्-शत् नमन !

Author profile
रामेन्द्र सिन्हा