Jhuth Bole Kauva Kaate: शहीद नहीं बलिदानी, मोदीजी को सैल्यूट!
जानते हो कैप्टन, युद्धभूमि मेँ 100 सैनिको को मशीनगन से भून देने के बाद तुम्हे उबकाई नहीं आएगी। तुम्हारा जी नहीं कचोटता, तुम्हेँ उनपर दया नहीं आती क्योंकि वे भी तुम्हारी तरह सिपाही थे और इससे ज्यादा सम्मानजनक मृत्यु उन्हें कहीं और नहीं मिलेगी। तुमने किसी निरपराध की हत्या की है न किसी का बलात्कार किया है लेकिन वो वीभत्स हत्याएं !
प्रेयसी परिणीता के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई थी, उसके मृत शरीर को नोच डाला गया था। और तो और उसकी छोटी बहन जो केवल 12 साल की थी उसे भी नहीं बख्शा था। पूरे डिब्बे मेँ न जाने और कितने ऐसे मृत लोग पड़े थे। भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से आने वाली हर ट्रेन मेँ केवल लाशेँ भरी होतीं, रक्तरंजित, क्षतविक्षत शव ! क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या जवान ?
5 वीं जाट बटालियन, राजपूताना राईफल्स के कम्पनी कमांडर मेजर वीरभद्र सिंह कैप्टन भरत तिवारी को भारी मन से बता रहे थे, कैसे लाहौर में बचपन गुजरा और कब दोनों एक-दूसरे के इतने करीब आ गए। फिर, सेना में भर्ती के लिए देहरादून जाना। विश्वयुद्ध के पश्चात् जब मां गुजरी थी तब भी एक साल के लिए परिणीता से विवाह का सपना अधूरा रह गया था।
मेजर और कैप्टन उस मुश्किल घड़ी में सुख-दुख साझा कर रहे थे जब 1962 में दशहरा से दो दिन पूर्व अष्टमी के दिन चीन ने अक्साई चीन की सीमा पर बड़ा हमला किया था। कुमाऊं रेजिमेंट के 123 जवानों के साथ तैनात कम्पनी कमांडर मेजर शैतान सिंह बड़ी वीरता से सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हो चुके थे और गोरखा रेजिमेंट को बुरी तरह घायल होकर पीछे हटना पड़ा था। 5वीं जाट बटालियन, राजपूताना राईफल्स तब सीमा पर तैनात थी। करो या मरो की स्थिति थी।
अक्तूबर, 1947 में जब राजौरी के लोग दीपावली मनाने की तैयारी में लगे थे, एक रात पहले कबाइलियों ने 12 बजे अचानक नगर पर हमला कर दिया। स्थानीय तहसीलदार उस रात को डोगरा फौज की टुकड़ी को अपने साथ लेकर जम्मू की ओर भाग गया। जब यह खबर शहर वालों को मिली तो गम और गुस्से के बावजूद सैकड़ों नौजवान बहुत कम साधनों से आक्रमणकारियों के साथ बीसियों घंटे तक लड़ते रहे। जब हथियार खत्म हुए तो बहुत से लोग अपने-अपने घरों से निकल कर मैदान और अपने मकानों की छतों पर हजारों इंसानों की भीड़ की शक्ल में जमा हो गए।
आक्रमणकारियों ने चारों ओर से लोगों को घेर कर गोलियों की बौछार कर दी और शहर को आग के हवाले कर दिया। तब राजौरी की हजारों वीर नारियों ने अपनी इज्जत और अपना सम्मान बचाने के लिए अपनी प्राणों की आहूति देकर दीवाली के शुभ दिन अपने खून के दीपक जलाए। लगभग 200 लोगों ने एक मंदिर में शरण ले रखी थी। आक्रमणकारियों ने बाहर से आग लगाकर उनको जिंदा जला दिया। कुछ लोग जम्मू की ओर भागने में सफल हो गए। 10 हजार निर्दोष लोगों को पाकिस्तानी दरिंदों ने बहुत बेरहमी से कत्ल कर दिया। बच्चों और बूढ़ों को भी नहीं बख्शा। दीवाली के दिन राजौरी में हर साल कबायली हमले के शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
झूठ बोले कौआ काटेः
देश के प्रति अपने कर्तव्य पालन को पूरा करने के लिए कैसे सारे रिश्तो को भूलकर जवान उनका बलिदान कर देते हैं, पहला वृत्तांत उसी का उदाहरण है। दूसरा वृत्तांत दर्शाता है कि देश और समाज की रक्षा में सुरक्षा बलों का कितना महत्व है। सत्ता का इकबाल कितना जरूरी है। गद्दार तहसीलदार उस रात को डोगरा फौज की टुकड़ी को लेकर भाग खड़ा न होता तो संभवतः कत्लेआम की नौबत न आती।
एक बेहद संवेदनशील सवाल यह भी है कि क्या देश की रक्षा में तैनात जवानों की मृत्यु के बाद उन्हें शहीद कहना सही है। क्या सरकार और देश की सेना जवानों की मौत के लिए इस शब्द का इस्तेमाल करती है या नहीं। सेना मुख्यालय ने अपने सभी कमांडों को लाइन ऑफ ड्यूटी में वीरगति को प्राप्त होने वाले सैनिकों के लिए ‘शहीद’ (Martyrs) शब्द के गलत इस्तेमाल पर इसी साल एक पत्र जारी किया था। पत्र में कहा गया कि ‘शहीद’ (Martyrs) शब्द का इस्तेमाल उचित नहीं है। भारतीय सेना की ओर से कहा गया है कि बलिदान होने वाले जवानों के लिए सेना, पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की शब्दावली में कहीं भी शहीद शब्द नहीं रहा है।
सेना मुख्यालय ने देश के लिए जान देने वाले सैनिकों के लिए छह शब्दों के इस्तेमाल की अनुशंसा की है। इन छह शब्दों में किल्ड इन एक्शन (कार्रवाई में मारे गए), लेड डाउन देयर लाइफ्स (अपना जीवन न्योछावर किया), सुप्रीम सेक्रिफाइस फार नेशन (देश के लिए सर्वोच्च बलिदान), फॉलन हीरोज (वीरगति प्राप्त), इंडियन आर्मी ब्रेव्स (भारतीय सेना के वीर) और फॉलन सोल्जर्स (वीरगति प्राप्त सैनिक) शामिल हैं। सेना ने ‘शहीद’ शब्द की जगह बलिदानी, वीर, वीरगति को प्राप्त वीर, वीर योद्धा, दिवंगत नायक, भारतीय सेना के वीर जैसी संज्ञाओं से संबोधित करने की सलाह दी है।
जारी पत्र में कहा है कि मार्टियर शब्द उस व्यक्ति के लिए कहा जाता है, जिसकी मौत एक सजा के तौर पर हुई हो, जिसने रिलीजन के लिए त्याग से इनकार कर दिया हो या फिर वह व्यक्ति जो अपने रिलीजियस या राजनीतिक आस्था के लिए मारा गया हो। इसलिए सैनिकों के लिए इस शब्द का इस्तेमाल उचित नहीं है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी दिसंबर, 2016 में लोकसभा को सूचित किया था कि भारतीय सेना, पुलिस और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के बलिदानी जवानों के लिए अंग्रेजी में Martyrs और हिंदी अथवा उर्दू में शहीद शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
बोले तो, भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम का परिचय देश कई बार देख चुका है। उन्हीं के पराक्रम के कारण पूरा भारत चैन की नींद ले पा रहा है। स्वतंत्रता के बाद से, भारतीय सशस्त्र सेनाओं के 25,000 से ज्यादा सैनिकों ने देश की प्रभुसत्ता और अखंडता की रक्षा में सर्वोच्च बलिदान दिया है।
ऐसे में, जब देश का प्रधानमंत्री अपनी हर दीवाली सीमा पर घर-परिवार से दूर तैनात वीर जवानों के बीच मना रहा हो तो, सैल्यूट तो बनता ही है। सूत्रों के अनुसार, इस साल प्रधानमंत्री दीवाली कहां पर मनाएंगे, यह तय हो चुका है, लेकिन सुरक्षा कारणों से अभी इसका खुलासा नहीं किया गया है। वैसे, चर्चा है कि पीएम मोदी 24 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर में भारतीय सशस्त्र बलों के जवानों के साथ दीवाली मनाएंगे।
पीएम मोदी सैनिकों के साथ पिछले आठ सालों से दीवाली मनाते आ रहे हैं। मई 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे। इसके बाद 23 अक्टूबर 2014 को उन्होंने बतौर पीएम सियाचिन में पहली दीवाली मनाई थी। 2015 में पीएम ने पंजाब में जवानों के साथ दीवाली मनाई थी। यहां उन्होंने 1965 युद्ध के वॉर मेमोरियल का दौरा भी किया। 2016 में मोदी हिमाचल के किन्नौर में दीवाली मनाने पहुंचे थे। यहां उन्होंने भारत चीन बॉर्डर के पास जवानों के साथ दीवाली मनाई थी।
2017 में भी पीएम मोदी ने जम्मू कश्मीर के गुरेज में जवानों के साथ ही दीवाली मनाई थी। 2018 में पीएम मोदी ने भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों के साथ उत्तराखंड के हर्षिल में दीवाली मनाई थी। 2019 में पीएम मोदी ने राजौरी में एलओसी पर जवानों के साथ दीवाली मनाई। 2020 में पीएम मोदी ने जैसलमेर में लोंगेवाला पोस्ट पर जवानों के साथ दीवाली मनाई थी। और, पिछले साल पीएम मोदी ने दीवाली जम्मू कश्मीर के नौशेरा में मनाई। सेना के जवानों के संग दिवाली मनाने के दौरान उनका हौसला बढ़ाया और कहा कि जवान मां भारती के सुरक्षा कवच हैं।
एक सुझावः जब भी कोई सैनिक सीमा पर बलिदान हो, भारत के प्रत्येक नागरिक के बैंक खाते से, उसकी स्थाई स्वीकृति से, स्वतः ही मात्र एक रुपया कट कर, सैनिक के परिजनों को चला जाए तो उन अमर हुतात्माओं को सम्पूर्ण राष्ट्र की सार्थक श्रद्धांजलि होगी।
और ये भी गजबः
मुगल बादशाह जहांगीर ने सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोविंद साहिब को ग्वालियर के किले में कैद कर लिया था। उस जगह और 52 हिन्दू राजा कैद में थे। जहांगीर ने गुरु हरगोविंद को 2 साल 3 महीने तक जेल में रखा। इसी दौरान जहांगीर बीमार गया, तब उसे किसी पीर ने बताया कि ग्वालियर किले में बंद गुरु हरगोविंद साहिब को मुक्त करने के बाद ही वो ठीक हो पाएंगे। तब, जहांगीर हरगोविंद साहिब के पास गया और कहा कि आपको यहां से मुक्त किया जा रहा है। इस पर, गुरु हरगोविंद साहिब ने कैद में रखे गए बाकी 52 हिंदू राजाओं को अपने साथ मुक्त करने की मांग की।
गुरु हरगोविंद साहिब की शर्त पर जहांगीर ने कहा कि आपके साथ सिर्फ वही राजा बाहर जाएंगे, जो आपका कोई कपड़ा पकड़े होंगे। हरगोविंद साहिब ने जहांगीर की शर्त स्वीकार की। जहांगीर की चालाकी के जवाब में गुरु जी ने 52 कलियों का एक कुर्ता सिलवाया। उसकी हर कली को पकड़ते हुए सभी 52 हिंदू राजा जहांगीर की कैद से आजाद हो गए। उस समय ग्वालियर के किले से 52 हिंदू राजाओं को एक साथ छोड़ा गया था। उस दिन से उस किले में मौजूद गुरुद्वारे का नाम ‘दाता बंदी छोड़’ प्रसिद्ध हो गया।
ये सिख समाज का छठवां सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है। दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा पर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग अपनी अरदास करने के लिए आते हैं और सिख समाज यहां खास दीवाली मनाता है। कार्तिक माह की अमावस्या को ‘दाता बंदी छोड़’ दिवस की तरह मनाया जाता है। बड़े ही धूमधाम से हरगोबिंद साहिब गुरुद्वारे पर लाखों की संख्या में दीपदान कर दीपावली मनाई जाती है।