‘हर घर तिरंगा’ अभियान से देश में 500 करोड़ से अधिक का कारोबार हुआ। अकेले, भारतीय डाक विभाग ने देश भर में फैले अपने डेढ़ लाख डाकघरों के जरिए 10 दिनों में एक करोड़ से ज्यादा राष्ट्रीय ध्वज की बिक्री की, जिसमें ऑनलाइन बिक्री भी शामिल है। अलग बात है कि अनगिनत मामलों में ऑनलाइन बिक्री में डाक विभाग ने न तिरंगा भेजा, न पैसा लौटाया, न किसी मंतरी-संतरी ने शिकायत पर गंभीरता से घपले की नोटिस ली।
राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम ऑनलाइन शिकायत के 15 दिन बाद भी जैसे सोया पड़ा है, मामला प्रॉसेस में है, दर्शा कर छुट्टी। और अगर, ऑनलाइन आऱटीआई करने गए तो नानी याद आ जाएगी। आवेदन फाइल करने में आ रही समस्या की शिकायत करो, तो कुछ का कुछ जवाब देंगे। दोबारा बताओ, तो रट्टू तोता की तरह फिर वही जवाब दोहरा देंगे। दरअसल, न कोई जिम्मेदारी लेना चाहता है, न कोई देखने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कितना-कहांतक देखेंगे?
मुजफ्फरनगर जिले में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने भी हर घर तिरंगा अभियान में घोटाला करने का आरोप लगाया है। आरोप है कि तिरंगा अभियान के नाम पर समूह की महिलाओं से 25 लाख रुपये से ज्यादा का चंदा जुटाकर घोटाला किया गया है। बरेली में भी हर घर तिरंगा अभियान में गोलमाल कर दिया गया। दो जिला मिशन मैनेजर ने मामले में अधिकारियों को बिना सूचित किए मनमर्जी से काम किया। जिसके बाद उनके खिलाफ धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई।
हरियाणा के करनाल में गरीब लोगों को राशन लेने से पहले झंडा लेने के लिए दबाव बनाए जाने की खबरें भी आईं। जम्मू कश्मीर के बडगाम में स्कूली बच्चों या पश्चिम रेलवे के भोपाल मण्डल में रेलकर्मियों से तिरंगे के बदले पैसा वसूलने के जारी सर्कुलर जब वाइरल हुए, तब जरूर हमें कुछ खास अटपटा नहीं लगा। देश प्रेम और राष्ट्रीय सम्मान से उपर तो कुछ नहीं हो सकता। झंडा दिवस पर भी तो देते ही रहे हैं, जरूरी समझा, तो यथाशक्ति पीएम केयर्स फंड में भी। कम से कम, पैसे की लेनदेन डोनेशन के ही नाम पर हुई। पैसे के बदले कोई अपेक्षा नहीं।
बोले तो, आजादी का अमृत महोत्सव धूमधाम से मनाने की तमन्ना हमारी भी थी। प्रधानमंत्री मोदीजी का ‘हर घर तिरंगा’ आह्वान हमारे सिर चढ़ कर बोल रहा था। प्राइमरी में झंडा लेकर प्रभातफेरी या जीआईसी में पढ़ाई के दौरान मार्चपास्ट में देवरिया शहर की सड़कों को नापने वाला उत्साह दिल में उफान मार रहा था। हम जैसों के लिए ही भारत सरकार ने भारतीय झंडा संहिता 2002 और राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के अंतर्गत राष्ट्रीय ध्वज फहराने से जुड़े नियमों में बदलाव किए। तो, हमने भी दृढ़ निश्चय कर लिया था कि देश की आन-बान-शान तिरंगा घर पर फहरा कर हम आजादी के अमृत महोत्सव में आहुति अवश्य देंगे।
इंडिया पोस्ट ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि आप अपने नजदीकी पोस्ट ऑफिस में जाकर वहां से पैसे देकर या ऑनलाइन भी तिरंगा खरीद सकते हैं। बताया गया कि डाक विभाग 25 रुपये की दर से राष्ट्रीय ध्वज बेच रहा है। विभाग ने ऑनलाइन बिक्री के लिए पूरे देश में किसी भी पते पर राष्ट्रीय ध्वज को बिना डिलीवरी चार्ज लिए पहुंचाने की सुविधा प्रदान करने का भी दावा किया।
हमने भी घर बैठे ऑनलाइन राष्ट्रीय ध्वज खरीदने-मंगाने का फैसला करके बाकायदा, इ-पोस्ट ऑफिस पर अपना एकाउंट बनाया और फिर 9 अगस्त की सुबह 2 अदद तिरंगे के लिए ऑनलाइन भुगतान करके ऑर्डर कर दिया। तत्काल खरीद की रसीद भी डाउनलोड करके चिंतामुक्त हो गया।
पर, चिंता तो प्रकट होने वाली थी। शाम को सोचा कि जरा स्टेटस चेक करूं तो लॉग-इन किया। अरे! ये क्या, खरीद का कोई रिकॉर्ड तो दिख ही नहीं रहा। मैंने अपनी पीड़ा ट्वीटर पर ‘इंडिया पोस्ट’, पीएमओ और संबंधित केंद्रीय मंत्रीगण अश्विनी वैष्णव तथा देवूसिंह को टैग करते हुए व्यक्त की। अगले दिन ही इंडिया पोस्ट ने ट्विटर पर जवाब देते हुए मुझसे खरीद रसीद की कॉपी और पता देने को कहा, जो मैंने उपलब्ध करा दी। इसी दिन अर्थात 10 अगस्त को ही मैंने इंडिया पोस्ट के पोर्टल पर भी अपनी शिकायत दर्ज कर दी, जिसकी पावती भी मुझे मेल और एसएमएस के माध्यम से मिली। इसके बावजूद, न इ-पोस्ट ऑफिस पर मेरा कोई रिकॉर्ड अपडेट हुआ, न ही इंडिया पोस्ट ने अब तक कोई अपडेट देना उचित समझा।
भारी मानसिक तनाव के बीच मैंने 12 अगस्त की शाम एक राष्ट्रीय ध्वज की व्यवस्था की और ‘हर घर तिरंगा’ अभियान में न केवल अपनी भागीदारी सुनिश्चित की, बल्कि हर घर तिरंगा वेबसाइट पर अपना सर्टिफिकेट तक जेनेरेट किया। 16 अगस्त को मैंने राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम पोर्टल पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराई। इंडिया पोस्ट से विभागीय तथ्यों की जानकारी लेने के लिए इसके तीन-चार दिन बाद मैंने आरटीआई का ऑनलाइन सहारा लेने की कोशिश की। लेकिन, सारी जानकारी भरने के बाद पेमेंट के लिए सबमिट बटन दबाने पर वापस पब्लिक अथार्टी का नाम बताने वाले बिंदु पर कर्सर चला जाता रहा, जहां कोई विकल्प प्रदर्शित ही नहीं होता। जब इस समस्या को इंगित करते हुए स्क्रीन शॉट के साथ [email protected] को मेल किया, तो जवाब मिला कि कामा, फुलस्टॉप आदि-इत्यादि का ध्यान दें। आवेदन अटैच कर दें। इस पर, जब मैंने पुनः स्क्रीन शॉट के साथ लिखा कि मेरे द्वारा बताई गई समस्या का निदान बताएं, न कि अनपेक्षित जानकारी दें, तो फिर वही उत्तर दोबारा भेज दिया। ऐसे में अपने सिर के बाल नोचने के सिवा आप क्या कर सकते हैं। कुछ ऐसी निकम्मी नौकरशाही और नुमाइंदों से पाला पड़ने पर समझ में आता है कि रोजमर्रा के जीवन में आम आदमी कितना झेलता होगा।
झूठ बोले कौआ काटेः
स्वाधीनता दिवस से पहले 20 दिनों में देश में 30 करोड़ राष्ट्रीय ध्वज तैयार किए गए। जिससे 10 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला। पिछले कई साल में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राष्ट्रीय ध्वज की सालाना बिक्री करीब 150-200 करोड़ रुपये तक ही सीमित रहती थी। अर्थात, ढाई गुना से चार गुना तक ज्यादा बिक्री हुई। देश में 10 लाख से ज्यादा लोगों को छोटी अवधि के लिए अतिरिक्त रोजगार मिला। पहले तिरंगा खादी और दूसरे कपड़े से ही बनता था। परंतु, हर घर तिरंगा अभियान को सफल बनाने के लिए सरकार ने भारतीय ध्वज संहिता में बदलाव करते हुए पॉलिएस्टर व मशीनों से भी झंडे बनाने को मंजूरी दे दी।
‘हर घर तिरंगा’ अभियान में देश की जनता ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। इस अभियान के साथ नागरिकों का तिरंगे के साथ रिश्ता और गहरा हुआ। नागरिकों में देशभक्ति की भावना और प्रबल हुई। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अभियान के तहत हर घर तिरंगा वेबसाइट पर छह करोड़ से अधिक सेल्फी अपलोड की गईं। इन सेल्फी को तिरंगे के साथ लिया गया था। संस्कृति मंत्रालय ने यह जानकारी दी। नागरिकों ने ई-पोस्ट ऑफिस सुविधा के माध्यम से 2.28 लाख से अधिक राष्ट्रीय ध्वज की ऑनलाइन खरीदारी की। इस पर इंडिया पोस्ट ने ट्वीट भी किये।
अब सवाल तो यह है कि डाक विभाग ने ऐसे कितने उपभोक्ताओं को राष्ट्रीय ध्वज की डिलीवरी नहीं की। कितने लोग झंडे की प्रतीक्षा ही करते ही रह गए होंगे और 15 अगस्त भी बीत गया होगा। सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि ये कोई बड़ा घोटाला है क्या, जिसमें रसीद तो तुरंत जेनेरेट हो गई लेकिन ऑनलाइन आधिकारिक रिकॉर्ड में कोई इंट्री नहीं। रसीद जेनेरेट होना लाजिमी था क्योंकि बैंक खाते से ऑनलाइन भुगतान हुआ।चर्चा है कि अनडिलीवर्ड झंडे खुले बाजार में बेच दिए गए। इससे तो अच्छा होता कि डोनेशन मांग लेते। लोगों की भावनाओं के साथ खेल तो नहीं होता, अपेक्षा तो नहीं होती।
बोले तो, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वाधीनता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से अपने संबोधन में कहा था कि भ्रष्टाचार पर सर्जिकल स्ट्राइक की घड़ी आ गई है। हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ना है। हमें भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी के प्रति नफरत का भाव लाने की हद तक खुद को तैयार करना होगा। सच कहा, आपने प्रधानमंत्री जी, इसी नफरत के भाव से मैंने भी बड़ी उम्मीद से आवाज उठाई है।
औऱ ये भी गजबः
आजादी का अमृत महोत्सव की खुमारी भले ही उतर गई हो, लेकिन राष्ट्रीय ध्वज बहुतेरे घरों, दुकानों, भवनों, साइकिल, रिक्सा, बाइक और गाड़ियों से नहीं उतरे हैं। हालांकि, 15 अगस्त के बाद झंडा न लगाने की मनाही भी नहीं है। भारत में साल के 365 दिन घर, दफ़्तर या किसी सार्वजनिक जगह पर झंडा लगाने की आम जनता को इज़ाज़त है। सुप्रीम कोर्ट के 2004 के फ़ैसले के बाद यह संभव हो पाया है। लेकिन, अगर झंडा हवा-बारिश या किसी अन्य वजह से कट-फट गया हो या फिर किसी कारण गंदा हो गया हो, तो फ़्लैग कोड 2022 (भारतीय झंडा संहिता) के अनुसार इसे मर्यादित तरीके से नष्ट किया जा सकता है।
इंडियन फ़्लैग फ़ाउंडेशन के सीईओ असीम कोहली के अनुसार, कुछ लोगों के लिए सम्मानित तरीका दफ़नाना हो सकता है, कुछ लोगों के लिए गंगा में बहाना हो सकता है, कुछ लोगों के लिए सम्मानित तरीका जलाना भी हो सकता है। आप इनमें से किसी भी तरीके का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन एकांत में करें और उसका वीडियो कभी ना बनाएं जिससे उसके दुरुपयोग की आशंका न रहे।
ऐसे में, लखनऊ के ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज ने झंडा जमा करने की पहल की। कॉलेज द्वारा जारी पोस्टर में लिखा गया, ”15 अगस्त के बाद झंडे का क्या? घबराने की ज़रूरत नहीं है। ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज, लखनऊ कॉलेज के पास इसका समाधान है। हम राज्य भर के अलग-अलग शहरों के रिहायशी इलाकों, घरों, दूसरे संस्थानों, सड़कों से जमा किए झंडे इकट्ठा कर रहे हैं। आप चाहें तो इस्तेमाल किए हुए झंडे डाक से भेज सकते हैं और चाहें तो उनके कॉलेज के गेट पर भी जमा कर सकते हैं।” ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज की तरह ही इंडियन ऑयल ने भी 16 अगस्त से फ़्लैग कलेक्शन ड्राइव की शुरुआत की। इसी तर्ज पर माई ग्रीन सोसाइटी नाम से एक एनजीओ ने भी झंडा जमा करने की पहल की।