Jhuth Bole Kauva Kaate: मुस्लिम नरमपंथियों को डराने का प्रयोग तो नहीं

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कश्मीर फाइल्स ने हिंदुओं के जख्म को कुरेदा ही था कि बाबर अली की हत्या ने प्रमाणित कर दिया कि तालिबानी सोच का असर सबसे ज्यादा कहां है। कहीं भाजपा को वोट देने पर कोई पत्नी को तलाक दे रहा तो कहीं तीन तलाक के विरूद्ध खड़ी मुस्लिम महिला को जान से मारने की धमकी दी जा रही। कहीं यह मुस्लिम नरमपंथियों को कट्टरपंथियों द्वारा डराने का प्रयोग तो नहीं। एक पार्टी विशेष की हताशा का तमाशा तो नहीं। बीते वर्षों में देश ने शाहीन बाग, किसान आंदोलन जैसे अनेक प्रयोग देखे हैं। सहिष्णुता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ठेकेदार तब भी चुप थे, अब भी चुप हैं, आश्चर्य नहीं। चुनावों में इन प्रयोगों का असर और क्रिया की प्रतिक्रिया भी दिखी है। हिजाब कांड की तरह बाबर अली हत्याकांड भी भविष्य में बूमरैंग करे तो कोई आश्चर्य नहीं।

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बात, बाबर अली की। वह रामकोला थाने के कठघरही गांव का निवासी था, जिसने विधानसभा चुनाव में कुशीनगर से भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में न केवल घर पर भाजपा का झंडा लगाया, बल्कि प्रचार किया तथा जीत के बाद पटाखे फोड़े और मिठाई बांटी। बाबर अली को स्थानीय गुंडों ने धमकाया और जब वह शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस स्टेशन गया, तो पुलिस ने उसकी शिकायत नहीं सुनी। 20 मार्च को पट्टीदारो और पड़ोसियों सहित हिंसक भीड़ ने घर में घुस कर बाबर पर हमला कर दिया। बाबर अली खुद को बचाने के लिए छत पर दौड़ा, लेकिन भीड़ वहां पहुंच गई। दो छोटे बच्चों की विधवा मां फातिमा ने मीडिया को बताया कि कैसे हमलावरों ने उसके पति को पत्थरों, ईंटों और लाठियों से मारा और फिर छत से फेंक दिया।

बाबर के परिवार का आरोप है कि उन्हें पिछले 2-3 महीने से राजनीतिक विरोधियों से धमकियां मिल रही थीं। उन पर भाजपा प्रत्याशी के लिए प्रचार न करने का दबाव बनाया जा रहा था। बाबर अली के भाई चंदे आलम ने कहा, बाबर को मारने की योजना पिछले 4 महीने से बनाई जा रही थी। उन्होंने आरोप लगाया कि बाबर अली को भाजपा से दूर रखने के लिए 10 लाख रुपये तक की पेशकश की गई थी। जबकि, विधवा फातिमा खातून का आरोप है कि समाजवादी पार्टी के एक स्थानीय नेता ने अपने समर्थकों से कहा कि अगर वह सपा को वोट देने से इनकार करते हैं तो उन्हें मार डालेंगे।

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सीएम योगी आदित्यनाथ ने बाबर की पत्नी फातिमा से मोबाइल पर बात करने के बाद बाबर की वृद्ध मां जैबुन निशा से भी बात की। बाबर की मां से योगी ने कहा कि आप का दूसरा बेटा मैं हूं। यह बात सुनकर वो रोने लग गईं। सीएम ने कहा- दोषियों को किसी भी हाल में बक्शा नहीं जाएगा। उन्होंने बाबर के परिजनों को दो लाख की मदद भी दी।

उत्तर प्रदेश की ही ताजातरीन घटना में तीन तलाक विरोधी कार्यकर्ता निदा खान को भाजपा नहीं छोड़ने पर जान से मारने की धमकी दी गयी है। जिन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है उनमें खान के पति शीरन रजा खान और परिवार के अन्य सदस्य शामिल हैं। रजा खान ने निदा को फौरी तौर पर तीन बार तलाक बोलकर तलाक दिया था। इसके पहले, बरेली में एक मुस्लिम महिला को रिश्तेदारों ने हालिया विधानसभा चुनावों में भाजपा को वोट देने के कारण घर से निकाल दिया। महिला का कहना है कि उसे तीन तलाक की धमकी भी दी जा रही है।

करीब साल भर पहले ही उसका निकाह हुआ था। असम में तो 2016 के चुनाव में 10 साल पुरानी शादी पर तीन तलाक की गाज गिरी थी। सोनितपुर विधानसभा सीट पर पहले चरण में वोटिंग थी। मस्जिद से फरमान जारी हो चुका था- कांग्रेस को वोट दो। लेकिन दिलवारा बेगम को अपनी विधानसभा में सबसे उपयुक्त भाजपा उम्मीदवार लगा, सो अपना अमूल्य वोट उनके नाम कर दिया। इतना ही नहीं, वोट डालने के बाद दिलवारा ने पति को बता भी दिया। बस 10 साल पुरानी शादी तीन तलाक ती भेंट चढ़ गई।

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अब सवाल उठता है कि बात-बात पर असहिष्णुता के खिलाफ आवाज उठाने वाले पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, शायर जावेद अख्तर, एक्टर आमिर खान, अरुंधति राय और पुरस्कार वापसी गैंग आदि-इत्यादि इन घटनाओं पर कहां हैं। इन्हीं में से एक हैं समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क। उनकी उलटबांसी सुनिये-  ‘मुसलमान नहीं चाहते कि उनमें से कोई भी बीजेपी को सपोर्ट करे, बाबर अली बीजेपी को सपोर्ट करके गलती कर रहा था।‘ बर्क ने घुमा-फिरा कर बाबर अली की लिंचिंग को सही ठहराने की कोशिश की। इन्हीं सांसद बर्क ने पिछले साल तालिबान का समर्थन करते हुए बयान दिया था। हालांकि बाद में इस पर यू-टर्न ले लिया। उन्होंने कहा था कि जैसे ब्रिटिशराज से भारतीयों ने आजादी ली, उसी तरह तालिबानियों ने अपने देश को आजाद कराया है।

बर्क जैसे कट्टरपंथी नेता के अब बाबर अली कांड पर विवादित बयान पर सपा नेतृत्व की चुप्पी क्या कहती है? क्या मुसलमानों को यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि अगर किसी ने भाजपा का समर्थन किया तो उसका क्या हश्र होगा? कहीं इसके पीछे गजवा-ए-हिन्द की मानसिकता तो नहीं काम कर रही। ऐसे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह कहना कि गजवा-ए-हिंद का सपना कभी पूरा नहीं होने दिया जाएगा। सरकार संविधान के अनुसार काम करेगी, देश का संविधान शरीयत के कानून के अनुसार नहीं चलेगा, कहां गलत है। दरअसल, जब इस्लाम को भारत वर्ष में फैलाने को कोशिश की गई थी, तब इसके लिए गजवा-ए-हिंद शब्द का प्रयोग किया गया था। इस्लाम में गजवा-ए-हिंद का अर्थ सामान्य तौर पर पहले काफ़िरों को जीतने के लिए किए गए युद्ध के लिए किया जाता था।

मुस्लिम धर्म के सिद्धांतों के अनुसार दुनिया दो भागों में विभाजित है। पहला हिस्सा दारुल इस्लाम कहा जाता है, वह देश जहां मुस्लिम रहते हैं और मुस्लिमों का ही शासन है। जबकि दूसरा भाग दारुल हर्ब कहा जाता है, जहां मुस्लिम रहते हैं, लेकिन शासन गैर-मुस्लिम करते हैं। इस्लामी सिद्धांत के अनुसार, भारत भूमि मुस्लिमों की हो सकती है लेकिन हिंदुओं और मुस्लिमों, दोनों की नहीं हो सकती। इस्लामी सिद्धांतों की मान्यता है कि भारत को ‘दारुल इस्लाम’ बनाने के लिए भारत के मुस्लिमों का ‘जिहाद’ की घोषणा करना न्यायसंगत है। ऐसे में इसका मतलब यह है कि भारत को दारुल हर्ब बनाने के लिए ही ‘गज़वा-ए-हिन्द’ करना होगा। बाबर अली की हत्या और उसे जायज ठहराने की कोशिश इसी तालिबानी सोच का परिणाम है।

बोले तो, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार मुस्लिम भाजपा के खिलाफ और सपा के पक्ष में मतदान कर रहे थे, यह बात किसी से छिपी नहीं है। फिर भी, भाजपा एक द्विपक्षीय और अत्यधिक ध्रुवीकृत विधानसभा चुनाव में कम से कम आठ प्रतिशत मुस्लिम वोट हासिल करने में सफल रही। यह हम नहीं कहते, सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटों में से समाजवादी पार्टी को लगभग 79 प्रतिशत वोट मिले और कम से कम आठ प्रतिशत वोट भाजपा को मिले, जो 2017 की तुलना में एक प्रतिशत अधिक है। 2017 में भाजपा को मुस्लिम समुदाय, विशेष रूप से महिलाओं से, तीन तलाक मुद्दे पर वोटों का एक बड़ा हिस्सा मिला। उनकी सहानुभूति भाजपा के साथ थी।

अमेरिका स्थित प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा ‘धर्म, जाति, राष्ट्रवाद और भारत में दृष्टिकोण’ विषय पर किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनावों में लगभग 20 प्रतिशत मुसलमानों ने भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया। सर्वेक्षण में कहा गया, “पांच में से एक मुस्लिम ने भाजपा को वोट दिया।”

2019 के सीएसडीएस-लोकनीति सर्वेक्षण ने भाजपा को 14 प्रतिशत समर्थन का संकेत दिया था। जब सीएसडीएस ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले समुदाय से सवाल किया कि क्या उन्होंने मोदी सरकार के एक और कार्यकाल का समर्थन किया, तो 26 प्रतिशत ने “हां” में जवाब दिया।

बोले तो, भाजपा ने भले ही मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारे लेकिन पार्टी ने अपने अल्पसंख्यक सेल के जरिये प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम अल्पसंख्यकों को लुभाने की जमीनी कोशिश में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, जबकि गैर-भाजपा दल नरम हिंदुत्व की वकालत कर रहे थे। बताते हैं कि भाजपा संगठन सचिव सुनील बंसल के निर्देश पर भाजपा कार्यकर्ताओं को अल्पसंख्यक बहुल बूथों से पार्टी को समर्थन सुनिश्चित करने का लक्ष्य दिया गया था। कारण कि मुफ्त राशन वितरण और सभी के लिए घर सहित विभिन्न योजनाओं के लगभग 30 प्रतिशत लाभार्थी अल्पसंख्यक समुदाय से हैं, जिन्हें टॉरगेट करके भाजपा चल रही थी।

झूठ बोले कौआ काटेः मुस्लिम वोटों का भाजपा की ओर झुकाव का मुख्य कारण यह है कि उत्तर प्रदेश में पिछले पांच वर्षों के दौरान विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से मुसलमानों को उतना ही लाभ हुआ है जितना कि हिंदुओं को। भाजपा के डर से गैर-भाजपा सरकारों का समर्थन करने से उन्हें कोई मदद नहीं मिली है क्योंकि दशकों से उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती चली गई है। सीएसडीएस अध्ययन मुसलमानों के एक बड़े वर्ग में भाजपा के प्रति झुकाव की संभावनाओं का संकेत देता है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया था, ”समुदाय की हालत दलितों से भी बदतर है।” यह भी गौरतलब है कि बाबर अली सुरक्षा की गुहार लगाता रहा लेकिन कुशीनगर जिले के रामकोला थाने की पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। तो क्या, हमलावरों के लिए कोई लोकल सियासी कवच काम कर रहा था ? मतलब साफ है, योगी जी के बुलडोजर को बीमार सिस्टम को दुरुस्त करने का काम भी करना होगा। देश सबका है तो देश के साथ ही चलना सबको सीखना पड़ेगा।

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और ये भी गजबः राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के माजिद मेमन भी एक मुस्लिम नेता हैं। मेमन ने हफ्ते एक ट्वीट किया, जिससे राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया। मेमन ने ट्वीट किया, ‘यदि नरेंद्र मोदी जनादेश जीतते हैं, और उन्हें दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में भी दिखाया जाता है, तो उनमें कुछ गुण या अच्छे काम होंगे, जो विपक्षी नेताओं को अभी तक पता नहीं है।’ इसके बाद एनसीपी नेता मजीद मेमन ने कहा की हम इशारा कर रहे हैं कि संविधान का उल्लंघन करने, लोगों में नफरत पैदा करने और समाज को बांटने के बावजूद वह कैसे जीतता है। शुरू में विपक्ष कह रहा था कि ईवीएम में हेराफेरी है, इसलिए वह जीत रहा है। लेकिन अब वह आधार नहीं बचा है। 2019 में विपक्ष की तमाम कोशिशों के बावजूद हम सरकार को नहीं हटा सके। मैं सराहना करता हूं कि उनके पास एक अच्छी वक्तृत्व शक्ति है। वह रोजाना 20 घंटे काम करते है। नरेंद्र मोदी के ये असाधारण गुण हैं जिनकी मुझे आलोचना करने के अलावा सराहना भी करनी चाहिए।

विपक्ष को कुछ आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है कि ऐसी कौन सी चीजें हैं जो नरेंद्र मोदी को न केवल भारत के लिए बल्कि बाहर भी स्वीकार्य बना रही हैं जो विपक्ष में अब तक नहीं आई है। विपक्षी दलों के नेता केवल मोदी को कोसते रहते हैं, लेकिन यह नहीं देखते कि प्रधानमंत्री का लोगों से जुड़ाव कितना मजबूत है। सही बात है, जब तक विपक्षी दलों के नेता यह नहीं समझेंगे कि मोदी जनता से क्यों जुड़े हुए हैं, तब तक वे मोदी को हराने के लिए कोई कारगर रणनीति नहीं बना पाएंगे। उत्तर प्रदेश में, सपा, बसपा और कांग्रेस यह समझने में विफल रही कि मोदी पर जनता का भरोसा और योगी आदित्यनाथ की पांच साल की उपलब्धियों ने भाजपा के लिए काम किया। जहां पांच सालों में सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास का नारा लाभार्थी मुसलमानों तक के लिए खरा सिद्ध हुआ, कोई हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं हुआ, तो बाबर अली जैसे समर्थक ऐसे ही थोड़े न पैदा होते हैं।