Jhuth Bole Kauva Kaate: सैंया झूठों का बड़ा सरताज निकला…

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: सैंया झूठों का बड़ा सरताज निकला...

Jhuth Bole Kauva Kaate:सैंया झूठों का बड़ा सरताज निकला…

उत्तर प्रदेश बार कौंसिल ने दुर्घटना के फर्जी दावे करके करोड़ों की धोखाधड़ी करने वाले गिरोह से जुड़े 30 वकीलों के लाइसेंस पिछले दिनों निलंबित कर दिए। धोखाधड़ी में वकीलों के साथ कुछ पुलिसकर्मी भी शामिल थे और मामले की जांच की जा रही है। यह कार्रवाई इस फ्रॉड की जांच के लिए गठित एसआईटी की ओर से उनके खिलाफ सबूत पेश करने पर की गई।

एसआईटी की गिरफ्तारी और कार्रवाई के खिलाफ एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में जमानत अर्जी दाखिल की लेकिन सर्वोच्च अदालत ने फटकार लगाते हुए इसे खारिज कर दिया। दुर्घटना का दावा करने की आड़ में धोखाधड़ी करने वाले गिरोह के सदस्य अपने जिलों में ऐसे मामलों की तलाश करते थे, जहां किसी व्यक्ति की सड़क दुर्घटना में मृत्यु का कारण बना वाहन अज्ञात होता। ऐसा कोई मामला मिलने पर गिरोह के सदस्य प्रभावित परिवार के सदस्यों से संपर्क करते थे। वे उसे एक बड़ी राशि दिलाने का लालच देते। परिवार के राजी होने के बाद एक प्रत्यक्षदर्शी गवाह तैयार किया जाता। फिर, मृतक के परिवार के सदस्यों की ओर से वाहन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराया जाता। संबंधित थाने में पुलिस अधिकारियों की मदद से प्राथमिकी दर्ज कराकर जांच कराई जाती और बीमा कंपनी से पैसा मिलने के बाद मामला बंद हो जाता। अपनी फीस और खर्चे काट कर गिरोह बाकी पैसे मृतक के परिवार वालों में बांट देता था।

एसआईटी चेयरमैन डीजी स्पेशल इन्वेस्टिगेशन चंद्र प्रकाश के अनुसार, जांच तेज हुई तो गैंग के सदस्य मृतकों के परिजनों के पास गए और बाकी रकम वापस कर दी। डीजी के मुताबिक इस तरह के ज्यादातर मामले मेरठ, बरेली और शाहजहांपुर में सामने आए। जांच में कई वकील पकड़े गए, जिन्होंने दावा राशि सीधे अपने खातों में ट्रांसफर कर दी थी। वकीलों ने एसआईटी जांच समाप्त करने के लिए कई प्रत्यावेदन किए लेकिन सबूतों के कारण उन्हें अस्वीकार कर दिया गया। जांच के दौरान यह भी पता चला कि जब गाजियाबाद के लेबर कोर्ट से इन मामलों के रिकॉर्ड मांगे गए तो रिकॉर्ड रूम में ही आग लग गई। उसके बाद इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई।

Jhuth Bole Kauva Kaate:सैंया झूठों का बड़ा सरताज निकला...

इसके पहले, अगस्त में बार काउंसिल ऑफ पंजाब एंड हरियाणा ने लुधियाना ने एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया, जहां लगभग 140 अधिवक्ता बार काउंसिल के नाम से जारी फर्जी लाइसेंस पर वकीलों के रूप में प्रैक्टिस करते पाए गए। बार काउंसिल ऑफ पंजाब एंड हरियाणा की अनुशासन समिति ने ऐसे अधिवक्ताओं की सूची पुलिस आयुक्त, लुधियाना को एफआईआर दर्ज करने के भेज दी। यही नहीं, समिति ने इन वकीलों को तत्काल प्रभाव से किसी भी अदालत में पेश होने से रोक दिया।

बोले तो, एक फर्जी वकील ने जिला बार एसोसिएशन लुधियाना के कार्यकारी सदस्य का चुनाव तक लड़ा। खूबी तो यह भी है कि इस फर्जी वकील को कानून की जाली और मनगढ़ंत डिग्री तथा और ‘बार मेंबर’ का फर्जी लाइसेंस दिलाने में कुछ वकील ही शामिल थे, जिन्होंने इसके बदले में मोटी रकम वसूली। ये लोग पत्राचार शिक्षा के माध्यम से छात्रों को एलएलबी की डिग्री 1,50,000 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से दे रहे थे।

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उधर, ताजा मामले में बांग्लादेश में विपक्ष के नेता डॉ कमल हुसैन और उनकी बेटी सारा हुसैन को देश में कानूनी सेवाओं से अर्जित विदेशी स्रोतों से पर्याप्त आय छिपाते हुए पाया गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या उन्हें इसके लिए किसी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। देश के शीर्ष टेलीविजन चैनल के अनुसार, हुसैन ने 2019 में कई अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता में शामिल होने का दावा किया है। फिर भी, इनसे होने वाली आय को संबंधित आकलन वर्ष के लिए उनके आयकर रिटर्न में नहीं दिखाया गया है। कथित तौर पर अपनी कानूनी फर्म की आय छिपाने के लिए हुसैन के खिलाफ लंबित मामले पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए उच्च न्यायालय के आदेश के बाद नए सवाल उठे हैं। विशेषज्ञों ने अदालत द्वारा पक्षपातपूर्ण फैसले की संभावना से भी इंकार नहीं किया, क्योंकि हुसैन वहां प्रैक्टिस करते थे और बहुत प्रभाव डालने के लिए जाने जाते थे।

झूठ बोले कौआ काटेः

एक कहावत है, ‘सैंया भये कोतवाल, अब डर काहे का’। जिनको इस कहावत का अर्थ न मालूम हो वह जान लें कि इसका मतलब है कि जब घर का ही कोई आदमी पुलिस, प्रशासन-सरकार, या सिस्टम में अच्छे ओहदे पर हो तब आप नियम, कानून को ठेंगा दिखा कर कुछ भी कर सकते हैं।

Jhuth Bole Kauva Kaate:सैंया झूठों का बड़ा सरताज निकला...

शुरुआत में सभी वकील और राजनेता सत्य पर चलने की ही कसमें खातें हैं, लेकिन माया उन्हें देर-सबेर अपने जाल में फांस ही लेती है। ऐसे में जो सच्चा होता है, वह अपना कर्म करते हुए माया के जाल में नहीं फंसता। एक बार सुप्रसिद्ध साहित्यकार और वकील डॉ. वृंदावनलाल वर्मा प्रसिद्ध कवि और नाटककार डॉ. रामकुमारजी वर्मा के यहां तीन दिन रहे। जब वर्माजी झांसी लौटने की तैयारी करने लगे तो रामकुमारजी ने उनसे दो-एक दिन और ठहरने का आग्रह किया। वर्माजी ने कहा, ‘‘कैसे ठहरें? एक केस अदालत में लगा हुआ है, जिसके लिए निश्चित दिन तो पहुंचना ही है।’’

‘‘अरे अब भी आप ‘केस’ करते हैं?’’

‘‘भैया रामकुमार, जिस गरीब का केस हाथ में लिया है, उसका काम तो करना ही है। उसे विश्वास दिला दिया है। उसका विश्वास तो निभाना ही पड़ेगा।’’

‘‘किसी दूसरे वकील को लिख दीजिए, वह केस कर लेगा।’’

‘‘इसे तो मैं ही करूँगा। वचन देने की बात है।’’

और जाड़े की रात में चार बजे सुबह की गाड़ी से वे अपने वचन की पूर्ति के लिए परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए चले गए।

जिक्र जरूरी है कि देवरिया में दीवानी मामलों के सुप्रसिद्ध वकील अपने पिताजी ठाकुर लक्ष्मी शंकर सिन्हा के अचानक निधन के पश्चात् मुझे मित्र प्रकाशन, इलाहाबाद की नौकरी छोड़ कर घर लौटना पड़ा था। फिर, मैंने दीवानी और फौजदारी दोनों मामलों का चस्का अलग-अलग सीनियर्स के जूनियर के रूप में लिया। घर-बार देखने के लिए ही मुझे वकालत पढ़वाया भी गया था। लेकिन मैं अपनी मर्जी के क्षेत्र पत्रकारिता में हाथ आजमाने चला गया था।

खैर, यह 1985 से 1990 के बीच का दौर रहा होगा। एक दिन सुबह के समय ही दीवानी के मेरे सीनियर वकील साहब ने एक मुवक्किल को मेरे पास भेजा। उसने बताया कि वकील साहब ने कहा है कि रामू बाबू (मेरा घर का नाम) से पैरवी करो कि जज साहब से सिफाऱिश कर दें तो फैसला उसके पक्ष में हो जाएगा। बहस तो वो अर्थात सीनियर साहब कर ही देंगे।

वजह थी, मेरी जज साहब से जान-पहचान। श्री चंद्रभाल श्रीवास्तव ‘सुकुमार’ अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश थे। शुद्ध सात्विक, साहित्यकार व्यक्तित्व। हिन्दी गजल की परंपरा के अग्रदूत। देवरिया की साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से मैं भी खूब जुड़ा हुआ था। जज साहब के यहां भी अक्सर साहित्यिक संगोष्ठियां हुआ करती थीं। तो, मेरी भी उपस्थिति रहती थी। बहरहाल, मुवक्किल की बातें सुनने के बाद मेरे मन में यही बात उठी कि यदि मेरी सिफारिश से ही फैसला होगा तो फिर बहस भी मैं करूं तो, क्या फर्क पड़ेगा। बड़ी वितृष्णा हुई थी। इससे भी अधिक तब हुई जब देखा कि कैसे कुछ न्यायाधिकारियों के यहां से फैसला लिखने के लिए मामलों की फाइलें फौजदारी के सीनियर वकील साहब के घर पहुंच जाती थीं। लेन-देन, दलाली की रकम वहीं तय हो जाती थी।

यह सब देखते-सुनते मैं गुनगुनाता था, सैंया झूठों का बड़ा सरताज निकला… 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘दो आंखें बारह हाथ’ के एक मशहूर गीत का मुखड़ा !

और ये भी गजबः

सरदार बल्लभ भाई पटेल अदालत में एक मुकदमे की पैरवी कर रहे थे। मामला बहुत गंभीर था। थोड़ी सी लापरवाही भी उनके मुवक्किल को फांसी की सजा दिला सकती थी। सरदार पटेल जज के सामने तर्क दे रहे थे। तभी एक व्यक्ति ने आकर उन्हें एक कागज थमाया। पटेल ने उस कागज को पढ़ा। एक क्षण के लिए उनका चेहरा गंभीर हो गया। लेकिन फिर उन्होंने उस कागज को मोड़कर जेब में रख लिया।

Jhuth Bole Kauva Kaate:सैंया झूठों का बड़ा सरताज निकला...

मुकदमे की कार्यवाही समाप्त हुई। सरदार पटेल के प्रभावशाली तर्कों से उनके मुवक्किल की जीत हुई। अदालत से निकलते समय उनके एक साथी वकील ने पटेल से पूछा कि कागज में क्या था? तब सरदार पटेल ने बताया कि वह मेरी मेरी पत्नी की मृत्यु की सूचना का तार था। साथी वकील ने आश्चर्य से कहा कि इतनी बड़ी घटना घट गई और आप बहस करते रहे।”

सरदार पटेल ने उत्तर दिया, “उस समय मैं अपना कर्तव्य पूरा कर रहा था। मेरे मुवक्किल का जीवन मेरी बहस पर निर्भर था। मेरी थोड़ी सी अधीरता उसे फांसी के तख्ते पर पहुंचा सकती थी। मैं उसे कैसे छोड़ सकता था? पत्नी तो जा ही चुकी थी। मुवक्किल को कैसे जाने देता?”

ऐसे गंभीर और दृढ़ चरित्र के कारण ही वे लौहपुरुष कहे जाते हैं।