आम से आम तक की यात्रा …

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आम से आम तक की यात्रा …

कौशल किशोर चतुर्वेदी

दिल्ली के मतदाताओं ने आखिरकार केजरीवाल को आइना दिखा ही दिया है। एक आम आदमी के बतौर केजरीवाल ने दिल्ली के मतदाताओं के दिल पर दस्तक दी थी। और फिर मतदाताओं के मन पर कुठाराघात करते हुए शीशमहल बनाने वाले और शराब के गोरखधंधे में खुद को खपाने वाले केजरीवाल देखते ही देखते आम से खास बनकर इतराने लगे। सत्ता होती ही बड़ी ठगनी है, जिसने उसे ठगने की कोशिश की वही ठगकर सत्ता से बाहर हो जाता है। जिस कांग्रेस के साथ आप ने सत्ता में एंट्री की थी, उसी कांग्रेस ने आप को सत्ता से एग्जिट की तरफ धकेल दिया। दिल्ली की राजनीति में आम आदमी बनकर जिस अरविंद केजरीवाल ने नायक बनकर परचम फहराया था, दिल्ली की राजनीति ने सत्ता में रहकर खलनायक का टैग चस्पा करवाने वाले उसी अरविंद केजरीवाल को आम आदमी बनने के लिए फिर जस की तस स्थिति में छोड़ दिया है। केजरीवाल की यात्रा आम से आम तक सीमित हो गई है।

दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने के बाद केजरीवाल की लोकप्रियता के सामने दिल्ली विधानसभा चुनाव में खुद को ठगा सा महसूस करना पड़ता था। पर दस साल बाद उन्होंने केजरीवाल को किनारे करने में सफलता पा ही ली। अब दिल्ली को डबल इंजन की सरकार मिल गई है। अब मोदी सरकार दिल्ली विकास के अपने विजन को साकार करने को स्वतंत्र है। दिल्ली को केजरीवाल से रिहा कराकर मोदी-शाह ने मन की मुराद पा ली है। अब पांच साल में दिल्ली के मतदाताओं की कसौटी पर मोदी-शाह परखे जाएंगे। दिल्ली में सुषमा स्वराज से सत्ता शीला दीक्षित को हस्तांतरित हुई थी। शीला दीक्षित से सत्ता अरविंद केजरीवाल ने छीनी थी। केजरीवाल अंत में आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने को मजबूर हुए। और अब हो सकता है कि केजरीवाल को हराने वाले प्रवेश वर्मा सीएम पद का हस्तांतरण आतिशी से लेकर डबल इंजन सरकार के ड्राइवर बन जाएं। लग तो यही रहा है कि 1993 के बाद दिल्ली विधानसभा में सत्ता महिला मुख्यमंत्री ने ही अगली सरकार को हस्तांतरित की है। और यह क्रम अब तक जारी है। सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित के बाद इस परंपरा को आतिशी ने जारी रखा है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी पार्ट-2 टैग वाली एआईएमआईएम की तुलना में भाजपा को लाभ दिलाने में ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में कांग्रेस ने बाजी मार ली है। कहने को तो सीधे तौर पर 14 विधानसभा सीटें कांग्रेस ने आप से छीनकर भाजपा के खाते में डाली हैं। पर अगर कांग्रेस और आप साथ में होतीं तो हो सकता है कि दोनों मिलकर भाजपा को सत्ता से बहुत दूर करने में सफलता पा लेती। पर राजनीति में यह कपोल कल्पना ही है, क्योंकि इंडी गठबंधन के यह दो सिपाही इतनी आसानी से आमने-सामने खड़े होने को मजबूर नहीं हुए होंगे। पर कांग्रेस की फजियत वास्तव में संदीप दीक्षित जैसे कांग्रेस के दिल्ली नेता ही करा रहे हैं। जो पार्टी को शून्य की तरफ धकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने भी भरपूर योगदान दिया है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने दिल्ली चुनाव में 12 सीटों पर प्रचार किया था, तो विष्णुदत्त शर्मा ने संगठनात्मक तौर पर दिल्ली की विधानसभा सीटों पर कमान संभाली थी।मालवीय नगर, नफजगढ़, उत्तम नगर, विकासपुरी, नांगलोई, त्रिनगर, बादली, मुस्तफाबाद, रोहिणी, मादीपुर, हरीनगर सीटों पर सीएम मोहन यादव के प्रचार का असर जीत बनकर खिला है।

तो महत्वपूर्ण बात यही है कि परिणाम के बाद दिल्ली सचिवालय को सील कर मोदी ने संकेत दिया है कि अब हर फाइल केजरी को वाल के पीछे धकेलने का काम करेगी। केजरी तो चुनाव हारकर अब पूरी तरह आम हो गए हैं। 48 का दम दिखाकर मोदी-शाह ने अरविंद केजरीवाल को अन्ना की शरण में जाकर अपने खास बनने के पाप धोने का पूरा अवसर दे दिया है

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