Journeys full of Mystery and Adventure: रहस्य और रोमांच भरी यात्राएं
दुनिया में कई तरह के अनुभव होते हैं, हमने जीवन में घटित रोमांचक किस्सों पर चर्चा शुरू की तो कई मित्रों के फोन और अनुभव हमारे पास आने लगे. आज हम उन्ही में से दो अनुभव आपसे साझा कर रहे हैं. लेखिका हैं श्रीमती संध्या राने और अगले अंक में श्रीमती नीति अग्निहोत्री. आइये उनके जीवन के इन रोमांचक किस्सों को पढ़ते हैं-
सत्यम शिवम सुंदरम।
रोचक और रोमांचक किस्सा चार धाम यात्रा का बता रही हैं श्रीमती संध्या राने
आज से 34 साल पहले मैं, मेरे पतिदेव, दो बच्चे और और हमारे पारिवारिक मित्र अपने परिवार सहित चार धाम यात्रा के लिए गए थे. तब इतनी सुविधा नहीं थी जितनी आज है। यह यात्रा हमारे लिए साधारण नहीं थी। पहाड़ों को काट, काटकर बनाए गए गोल-गोल रास्ते। बस ओम नमः शिवाय का जाप करते गए और आगे बढ़ते गए। बस मन में देव दर्शन की उत्सुकता थी। पूरा रास्ता रोमांच और जोखिमों से भरा था।
दोनों परिवार के बच्चे बहुत छोटे थे मेरा बड़ा बेटा तब 8 साल का था और बाकी उसके छोटे।
आप जब स्वयं परमपिता परमेश्वर से मिलने उनके दर्शन के लिए उनके निवास पर जा रहे तो आने वाली हर अड़चन को आपकी रक्षा के लिए प्रभु ही आगे आते हैं। वे किस रूप में रक्षा करते हैं यह यात्रा के दौरान के अनुभव जो आपको मिलते हैं से पता चलता है। फिर वह जीवन यात्रा ही क्यों ना हो? बस आपकी आस्था उन पर होना चाहिए.
जहां आपको राह नजर नहीं आती या आप चलते-चलते थक जाए और कोई आपके कहे इधर से आ जाइए घबराइए नहीं तो वह कौन है? फिर आप सोच में पड़ जाते हैं। चढ़ाई पर जाते समय सहायता के लिए, सामान उठाने के लिए, बच्चों बुजुर्गों के लिए, पिट्ठू, कंडी वाले, खच्चर वाले, डोली वाले, घोड़े वाले उपलब्ध रहते हैं। वे सभी रजिस्टर्ड होते हैं हमने भी चढ़ाई के लिए खच्चर हायर किए थे व उनके स्वामियों के कार्ड अपने पास रख लिए थे।
केदार बाबा के दर्शन बहुत अच्छे से हो गए थे। जितना ऊपर चढ़े थे उतना ही अब नीचे उतर कर जाना था क्योंकि रास्ता सर्पाकार, गोलाकार था तो कहीं पहाड़ों की दीवारें बाई और तो कहीं दाहिनी और होती। जिस और पहाड़ की दीवार होती है उसके विपरीत सैकड़ो फीट गहरी खाईयां होती।
पहाड़ों पर हर पल मौसम का बदलता मिजाज मिलता है बादलों से हम घिरे रहते हैं।
कभी बारिश की फुहारें तो कभी ठंडी-ठंडी हवाएं बेहद सुकून देती है। पल में भीगते तो पल में सुख भी जाते हैं। घुमावदार रास्ते, झरने की भरमार मिलती है. उनसे (पर्वतों से) ऊपर से नीचे गिरता श्वेत धवल पानी और हरियाली ही हरियाली दिखती है.
मन करता है बस यही रुक जाए और जी भर कर यह प्रकृति की सुंदरता आत्मसात कर ले। एक तरफ पर्वतों की श्रृंखलाएं तो ठीक दूसरी तरफ उतनी ही गहरी खाई और उन खाइयों के बीच में बहती गंगा मां।
झांक कर देखने की हिम्मत नहीं होती क्योंकि जल प्रवाह इतना तेज और उसका स्वर इतना भयंकर होता है कि आपकी घिग्घी बंध जाती है। जब हमने खच्चर हायर किए थे तो प्रत्येक खच्चर के साथ उसका मालिक भी साथ-साथ चल रहा था पर आगे जाकर उन्होंने हमारे साथ गलत किया था और वह ऐसा सबके साथ करते थे क्योंकि ज्यादा सवारी मिलने के लालच में वे लोग पहले तो हां बोलते हैं कि हम साथ साथ चलेंगे लेकिन बाद में वे एक आदमी के हवाले तीन, चार खच्चर कर देते हैं (यह हमें बाद में मालूम पड़ा जब हम शिकायत करने पहुंचे) और फिर नीचे उतरकर दूसरी सवारी लेने के लिए वे लोग चले जाते हैं। हमारा परिवार चारों खच्चरों पर सवार था मेरे साथ मेरा बड़ा बेटा जो 8 साल का था, वह था और राणे साहब के साथ छोटा बेटा आगे बैठा था दोस्त के साथ उनकी बिटिया आगे की ओर बैठी थी और जो भाभी साथ हमारे थी वे अलग खच्चर पर थी।
होता यह है कि जब हम साथ चलते हैं तो कई बार आगे पीछे हो जाते हैं कोई खच्चर धीरे चलता है कोई जल्दी व तेज चलता है हमारे साथ भी यही हुआ वह तीन खच्चर आगे निकल गए उनके साथ जो एक स्वामी था वह भी चला गया। मैं और मेरा बेटा सबसे पीछे रह गए थे और मैं पैदल चल रही थी क्योंकि मुझे खच्चर पर बैठने में डर लग रहा था।
मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं स्वयं पैदल चलकर अपना बैलेंस संभाल लूंगी क्योंकि पूरे रास्ते में गोल-गोल चिकने व गीले पत्थर होते हैं और जिन पर से खच्चर के पैर फिसलने का डर रहता है।
मैंने उस खच्चर की डोर अपने एक हाथ से पकड़ कर रखी थी जिस पर मेरा बेटा बैठा हुआ था और दूसरे मेरे एक हाथ में मेरे पहने हुए जूते थे जिन्हें मैं पैरों से निकाल कर हाथ में पकड़े हुए थी क्योंकि मुझे ऐसा लग रहा था कि वह शूज भी स्लिप मार रहे हैं।
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चलते-चलते दोपहर से शाम होने वाली थी मैंने जब नजर उठा कर देखा तो घर वाले बहुत आगे जाते दिखाई दे रहे थे। वहां ऐसा कोई खतरा इंसानों से या दूसरी चीजों का नहीं रहता जितना कि खाई में गिरने का या पहाड़ पर से कोई पत्थर अपने ऊपर आकर ना गिरे, इसका डर लगा रहता है। मैं संभल कर धीरे-धीरे चल रही थी कि तभी पीछे से कोई एक खच्चर वाला आया उसके मालिक ने एक संटि उसके साथ वाले खच्चर को मारी तो वह बिदक गया। उसके बिदकने से मेरे बेटे का खच्चर भी बिदक गया।
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वह दूसरा खच्चर वाला तेजी से आगे निकल गया। मैंने बेटे को और अपने को संभाला पर बेटा खच्चर पर एक तरफ की ओर लटक गया था उसका एक पैर खच्चर की पागड़े (मतलब जिसमें पैर को रखा जाता है) में अटक गया था जो आसमान की ओर उठा हुआ था और दोनों हाथ और सर जमीन की ओर थे। रास्ता सुनसान था बस गंगा के प्रवाह का शोर उस माहौल को और भी डरावना व भयभीत कर रहा था।
वे लोग तो बहुत आगे निकल गए थे तभी पता नहीं कहां से एक बहुत लंबे से बुजुर्ग बाबा आए उन्होंने सफेद झक कुर्ता पजामा पहना हुआ था।
उन्होंने मुझसे कहा घबराओ नहीं मैं तुम्हारी मदद करता हूं मैं तुम्हारे साथ हूं आज भी उनकी यह आवाज मुझे स्पष्ट सुनाई देती है फिर उन्होंने बेटे को सीधा किया मैंने राहत की सांस ली। सब कुछ इतना जल्दी हुआ कुछ समझ में नहीं आया। फिर कुछ कदम हम साथ चले तो मैंने पूछा बाबा आप अकेले हैं? तो वह मुस्कुरा दिए फिर बोले नहीं बेटा मेरे चार बेटे हैं मैं तो उज्जैन का रहने वाला हूं।
यूं ही घूमता रहता हूं हर जगह देव दर्शन करता हूं।
मैंने पूछा आप इस उम्र में अकेले घूमते हैं? तो उन्होंने हां बोला. फिर उन्होंने मेरे से पूछा आपके साथ वाले कहां है? तो मैंने नीचे की ओर इशारा किया जहां गौरीकुंड दिख रहा था मैंने उनसे कहा “अब थोड़ी देर में हम भी वहां पहुंच जाएंगे तो मैं यह जूते पहन लेती हूं” और मैं नीचे झुक कर अपने जूते पहनने लगी जूते पहनने के बाद मैंने उनको धन्यवाद देने के लिए जैसे ही सर घुमाया तो वह बाबा वहां नहीं थे। एकदम से गायब हो गए थे।
तो मुझे आश्चर्य हुआ कि आखिर इतने कम समय में वह कहां चले गए? बिना बोले कैसे चले गए? एकदम से गायब कैसे हो गए? मैं थोड़ी घबराई भी फिर जहां कोई दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा था वहां वह एकदम से मदद के लिए अपने आप कहां से आ गए?
और बोले “आप घबराएं नहीं मैं मदद करता हूं” तो कहीं वह भोले बाबा तो नहीं थे ? अफसोस भी हो रहा था कि मैं क्यों जूते पहनने के लिए झुकी? सोचते-सोचते मैं कब गौरी कुंड पहुंच गई पता ही नहीं पड़ा और जो मेरे साथ घटित हुआ वह किस्सा अपने घर वालों को बताया तो वह भी आश्चर्य करने लगे.
भ्रम यह था कि उनको लगा था कि खच्चर का स्वामी मेरे साथ ही है इसलिए वे लोग रुके नहीं थे।
निष्कर्ष यहां निकला कि भोले बाबा ही सहायता के लिए आए थे।
श्रीमती संध्या राने, इंदौर