Judicial Service Eligibility : न्यायिक सेवा में आना हो, तो लॉ के बाद 3 साल की प्रैक्टिस जरूरी, 23 साल का नियम बदला!

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Judicial Service Eligibility : न्यायिक सेवा में आना हो, तो लॉ के बाद 3 साल की प्रैक्टिस जरूरी, 23 साल का नियम बदला!

जानिए, सुप्रीम कोर्ट के इस नए फैसले में नई शर्त किस वजह से जोड़ी गई!

New Delhi : कानून की पढ़ाई करने वालों को अगर न्यायिक सेवा में जाना है, तो उनके लिए 3 साल वकालत की प्रैक्टिस अनिवार्य होगी। एलएलबी, एलएलएम जैसे लॉ ग्रेजुएट्स के लिए सुप्रीम कोर्ट ने यह नया फैसला दिया। मंगलवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ज्यूडिशियल सर्विस में एंट्री लेवल पोस्ट पर नौकरी के लिए भी पात्रता का नियम बदल दिया। 3 साल की न्यूनतम एडवोकेट प्रैक्टिस का अनिवार्य नियम वापस लाया गया है। कोर्ट में सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस के विनोद की बेंच ने यह फैसला सुनाया।

फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछले 20 वर्षों से फ्रेश लॉ ग्रेजुएट्स को ज्यूडिशियल ऑफिसर्स के तौर पर अप्वाइंट किया जा रहा है, जिन्हें एक दिन भी बार प्रैक्टिस का अनुभव नहीं है। ये प्रक्रिया सफल नहीं रही है। ऐसे नए लॉ ग्रेजुएट्स ने कई बार परेशानियां खड़ी की हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यभार संभालने के पहले दिन से ही जजों को याचिकाकर्ताओं के जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति और प्रतिष्ठा से जुड़े मामलों से निपटना पड़ता है।

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ऐसे में न तो कानून की किताबों में दिया गया ज्ञान, न ही प्री सर्विस ट्रेनिंग एक वास्तविक कोर्ट सिस्टम में काम करने के प्रत्यक्ष अनुभव की जगह ले सकती हैं। ये तभी संभव है जब कैंडिडेट ने वास्तव में कोर्ट का काम देखा हो। समझा हो कि वकील और जज कोर्ट में कैसे काम करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कैंडिडेट्स को इतना सक्षम होना चाहिए कि वे जजों की भूमिका की जटिलताएं समझ सकें। इसलिए ज्यादातर हाई कोर्ट्स ने भी ज्यूडिशियल सर्विस के लिए एक निश्चित साल का अनुभव लागू करने में सहमति जताई है।

न्यायिक सेवा के लिए अब ये पात्रता अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद 3 साल का अनुभव जरूरी होगा। उसके बाद ही आप भारत में न्यायिक सेवा परीक्षा के पात्र हो पाएंगे। हालांकि, प्रैक्टिस की अवधि की गिनती प्रोविजनल एनरोलमेंट की डेट से की जा सकती है। एक लॉ क्लर्क के रूप में 3 साल का अनुभव भी योग्यता की शर्तें पूरी करेगा। कोर्ट ने कहा कि अभ्यर्थी किसी अधिवक्ता द्वारा दिया गया सर्टिफिकेट, जिसके पास कम से कम 10 साल प्रैक्टिस का अनुभव हो और संबंधित स्थान के न्यायिक अधिकारी द्वारा अनुमोदित प्रमाणपत्र बतौर साक्ष्य पेश कर सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहा हो, तो 10 साल की न्यूनतम प्रैक्टिस वाले अधिवक्ता द्वारा दिया गया प्रमाणपत्र, जो न्यायालय द्वारा नामित अधिकारी द्वारा अनुमोदित हो, प्रमाण के रूप में कार्य करेगा।

यह नियम पुरानी भर्तियों पर लागू नहीं होगा

पहले भी कई राज्यों में ये नियम था कि कम से कम 3 साल के लॉ प्रैक्टिस एक्सपीरियंस वाले लोग ही ज्यूडिशियल सर्विस एग्जाम के लिए अप्लाई कर सकते हैं। लेकिन, वर्ष 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने ये अनिवार्यता खत्म कर दी थी। इसके बाद नए लॉ ग्रेजुएट्स् मैजिस्ट्रेट जैसे पदों के लिए अप्लाई कर पा रहे थे। हालांकि बाद में SC को पुराना नियम लागू करने की मांग वाले कई आवेदन मिले। इस संबंध में 28 जनवरी 2025 को कोर्ट ने इन एप्लिकेशंस पर जजमेंट रिजर्व कर लिया था। तभी रिक्रूटमेंट प्रक्रिया पर भी रोक लगा दी गई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये नया नियम उन भर्तियों पर लागू नहीं होगा जो विभिन्न हाईकोर्ट में पहले ही शुरू हो चुकी थीं।