Justice and Law: साइबर अपराध पर नियंत्रण के उपाय खोजना भी जरूरी! 

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साइबर अपराध पर नियंत्रण के उपाय खोजना भी जरूरी!

हमारे देश में सरकार ने साइबर अपराधों की रोकथाम के लिये विभिन्न उपाय किए हैं। लेकिन, यह उपाय अपर्याप्त साबित हो रहें हैं। आज हालत यह है कि सरकार एक कानून बनाती है तो अपराधी उससे बचने का उपाय खोज लेते हैं। इसलिए देश में आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे उपाय खोजे जायें जिनसे साइबर अपराध से आम जनता की समुचित सुरक्षा हो सके। सरकार को इस दिशा में गंभीर प्रयास करने होंगे।

भारत में इस अपराध से निपटने के लिए विभिन्न कानून बनाए गए हैं। काॅपीराइट अधिनियम की धारा 74 इंटरनेट धोखाधड़ी को दो साल तक के कारावास या एक लाख रूपये तक के जुर्माने के साथ दंडनीय अपराध बनाती है। यह कहा जा सकता है कि भारत में बौद्धिक संपदा कानून के तहत कंप्युटर डेटाबेस की सुरक्षा की दृष्टि से, काॅपीराइट अधिनियम, 1957 को दो बार संशोधित भी किया गया है। इन संषोधनों द्वारा व्याख्या खंड से संबंधित धारा 2 में कुछ नए उपखंड जोड़े गए। ‘साहित्यिक कार्य’ शब्द की परिभाषा को बदलने के लिए अधिनियम की धारा 2 (ओ) में संशोधन किया गया है। अधिनियम की धारा 14 में भी संशोधन किया गया, जिसमें कम्प्यूटर डेटाबेस या कम्प्यूटर प्रोग्राम को पुनः पेश करने या किराए पर लेने के लिए अन्य चीजों के साथ करने या अधिकृत करने का विशेष अधिकार दिया गया है। कॉपीराइट अधिनियम की धारा 51 में कॉपीराइट के उल्लंघन को परिभाषित किया गया है। यह न केवल दीवानी एवं फौजदारी दोनों प्रकार के अपराध के लिए दोषी बनाता है। भारत में शिक्षा के अभाव एवं लापरवाही के कारण सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उपयोग करने वाले लोग साइबर अपराध के खतरों से अनजान है। वे इसका उपयोग तो करते हैं लेकिन विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइट्स के सर्वर अन्य देशों में केंद्रित हैं। इससे इस जानकारी के दुरुपयोग का यह डर रहता है।

आज सारा विश्व साइबर अपराधों से जूझ रहा है। विश्व में साइबर मामलों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। भारत में भी इन कामों को साइबर अपराध बनाया गया है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 किए जाने वाले अपराधों में व्यक्तियों के खिलाफ अपराध, संपत्ति के खिलाफ साइबर अपराध तथा राज्य या समाज के खिलाफ किए जाने वाले साइबर अपराधों को सम्मिलित किया गया है। विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर लोग अपनी व्यक्तिगत जानकारियां साझा करते हैं, जिससे हैकर्स इन सोशल नेटवर्किंग एकाउंट्स को आसानी से हैक कर लेते हैं और फिर प्राप्त सूचना का दुरुपयोग करते हैं। लोगों को सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर हैकर्स ऑनलाइन ठगी का शिकार बनाते हैं। सुरक्षा एजेंसियों द्वारा यह भी पता लगाया गया है कि ऑनलाइन मुद्रा स्थानांतरित करने वाले विभिन्न एप के माध्यम से आतंकवादियों और देश विरोधी तत्वों को फंडिंग की जाती है। साइबर अपराधी विभिन्न ऑनलाइन गेम्स के माध्यम से बच्चों को अपराध करने के लिये प्रोत्साहित करते हैं।

भारत में ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000’ पारित किया गया है जिसके प्रावधानों के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता के प्रावधान सम्मिलित रूप से साइबर अपराधों से निपटने के लिए बनाए गए हैं। दूसरा महत्वपूर्ण कानून सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के विभिन्न प्रावधान हैकिंग और साइबर अपराधों से संबंधित है। सरकार द्वारा ‘‘राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013‘‘ भी जारी की गई है जिसके तहत सरकार ने अति-संवेदनशील सूचनाओं के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय संवेदनशील सूचना अवसंरचना संरक्षण केन्द्र का गठन किया है। इसके अंतर्गत 2 वर्ष से लेकर उम्रकैद तथा दंड अथवा जुर्माने का भी प्रावधान है। विभिन्न स्तरों पर सूचना सुरक्षा के क्षेत्र में मानव संसाधन विकसित करने के उद्देश्य सरकार ने ‘सूचना सुरक्षा शिक्षा और जागरूकता’ परियोजना भी प्रारंभ की है। इसके अलावा सरकार द्वारा ‘कम्प्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम की स्थापना की गई है। देश में साइबर अपराधों से समन्वित और प्रभावी तरीके से निपटने के लिए ‘साइबर स्वच्छता केंद्र’ भी स्थापित किया गया है। यह भारत सरकार की डिजिटल इंडिया मुहिम का एक हिस्सा है। भारत सूचना साझा करने और साइबर सुरक्षा के लिये विभिन्न देशों के संपर्क में भी है। इसके अलावा अंतर-एजेंसी समन्वय के लिए ‘भारतीय साइबर अपराध समन्वय केन्द्र’ की भी स्थापना की गई है। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000, आईटी (संशोधन) अधिनियम 2008 भी है।

एक मामले में इलाहबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि साइबर अपराध देश को दीमक की तरह खोखला कर रहा है। साइबर ठगी के बढ़ते मामलों पर हाईकोर्ट ने केन्द्र, राज्य व रिजर्व बैंक से जवाब मांगते हुए कहा कि जब जज ही सुरक्षित नहीं तो आम लोगों की इससे कैसे सुरक्षा होगी। साइबर ठगों के देशभर में फैले नेटवर्क पर चिंता जताते हुए इलाहबाद हाईकोर्ट ने कहा कि साइबर ठक दीमक की तरह पूरे देश को चाट रहे हैं। देश की आर्थिक स्थिति को कमजोर कर रहे हैं। साइबर ठगी का शिकार हुए लोगों का पैसा न डूबे, इसकी जवाबदेही तय किया जाना जरूरी है।

कोर्ट ने केन्द्र सरकार, रिजर्व बैंक और राज्य सरकार से पूछा है कि ईमानदार नागरिकों की गाढ़ी कमाई साइबर ठगी से कैसे सुरक्षित हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि बैंक व पुलिस की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। वर्तमान में क्राइम का ग्राफ इतना बढ़ गया है कि पर्सनल डेटा की अब कोई कीमत नहीं रह गई है। साइबर ठग कौड़ियों के भाव इसे खरीद और बेच रहे हैं। ऑनलाइन फ्रॉड या साइबर ठगी का कारोबार में तेजी से इजाफा हुआ है।

साइबर अपराध की रोकथाम और इसको लेकर लोगों को जागरूक करने के लिए गृह मंत्रालय ने साइबर दोस्त नाम से एक ट्विटर हैंडल लाॅन्च किया है। इस हैंडल पर अभी तक वीडियो, तस्वीरों और लिखित कंटेंट के जरिए लोगों को एक हजार से ज्यादा साइबर सुरक्षा टिप्स दिए जा चुके हैं। इसके साथ ही सरकार ने राज्यों में सी-डैक संस्थान के जरिए पुलिस विभाग में साइबर अपराध जागरूकता को लेकर कई तरह के प्रोग्राम संचालित किए हैं। स्कूलों में भी साइबर सुरक्षा पर शुरू किया जाना आवश्यक है। इसके लिए देश के सभी स्कूलों और कॉलेजों में साइबर सुरक्षा को लेकर सभी संकाय के छात्रों के लिए साइबर सुरक्षा कोर्स संचालित किया जाना चाहिए। इसमें उन्हें इन अपराधों की बुनियादी जानकारी दी जानी चाहिए।

साइबर अपराध से बचाव का एकमात्र उपाय जागरूकता ही एकमात्र उपाय है। अनजान फोन काल करने वालों को अपने बैंक खाता नंबर, एटीएम कार्ड, पासवर्ड, ओटीपी या वित्तीय लेनदेन में प्रयोग होने वाली अन्य जानकारियां किसी भी हालत में नहीं दी जानी चाहिए। साइबर अपराधों से संबंधित कोर्स को जनप्रिय बनाने तथा अधिकतम लोग इसका प्रशिक्षण प्राप्त करें इस संबंध में प्रयास करने होंगे।

भारत इंटरनेट का तीसरा सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है। हाल के वर्षों में साइबर अपराध कई गुना बढ़ गए हैं। साइबर सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए सरकार की और से कई कदम उठाए गए हैं। लेकिन, वे समुचित नहीं है तथा इस दिशा में अभी काफी प्रयास जरुरी है। कैशलेस अर्थव्यवस्था को अपनाने की दिशा में बढ़ने के कारण भारत में साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करना जरुरी है। डिजिटल भारत कार्यक्रम की सफलता काफी हद तक साइबर सुरक्षा पर निर्भर करेगी। अतः भारत को इस क्षेत्र में तीव्र गति से कार्य करना होगा, तभी हम इन अपराधों से अपने नागरिकों का बचाव करने में सफल हो सकेंगे।

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विनय झैलावत

लेखक : पूर्व असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल एवं इंदौर हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं