ज्योतिरादित्य की सियासी जमावट, परेशान कांग्रेस….
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का भाजपा मे कद बढ़ रहा है, तो चिंता की लकीरें भाजपा नेताओं के माथे पर दिखना चाहिए लेकिन हो उल्टा रहा है। सिधिया को भाजपा में मिलते महत्व से कांग्रेस के नेता परेशान हैं। ज्योतिरादित्य की राजनीतिक जमावट की यह सफलता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उज्जैन में महाकाल की पूजा अर्चना करने गर्भगृह में गए तो साथ सिंधिया थे। मोदी इंदौर से दिल्ली के लिए उड़े तो साथ अकेले महाराज गए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भोपाल के साथ ग्वालियर के दौरे पर आए तो लगभग डेढ़ घंटे सिंधिया के साथ उनके जय विलास पैलेस में रहे और उनकी मेहमान नवाजी का लुत्फ उठाया। इतना ही नहीं, सिंधिया प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रम में शामिल होने जब इंदौर से उज्जैन जा रहे थे तो पहले इंदौर स्थिति संघ कार्यालय गए। ये तमाम घटनाक्रम भाजपा में नए समीकरणों की तरफ इशारा कर रहे हैं, लेकिन हैरत की बात यह है कि परेशान कांग्रेस है। तभी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एक ट्वीट के साथ दो फोटो डाल कर यह बताने की कोशिश की कि राहुल गांधी उन्हें कितना मानते थे और मोदी के सामने उनकी क्या हैसियत है। राहुल के साथ सिंधिया बाबा महाकाल के पास थे और मोदी के समय बाहर नंदी के पास। स्पष्ट है अंदर से भले भाजपा नेता सशंकित हों लेकिन बाहर कांग्रेस ही हमले कर रही है।
मोदी-शाह के दौरों ने बढ़ाई दिलों की धड़कन….
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रदेश में ताबड़तोड़ दौरे राजनेताओं के दिलों की धड़कन बढ़ा रहे हैं। वजह अलग-अलग है। इससे भाजपा मजबूत हो रही है, इसलिए कमलनाथ सहित कांग्रेस नेताओं के दिल धड़क रहे हैं। चर्चा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मोदी-शाह का अभयदान मिल गया है, सो नेतृत्व परिवर्तन का इंतजार करने वाले नेताओं के दिल धक-धक कर रहे हैं। मोदी-शाह दौरे में ज्योतिरादित्य सिंधिया को विशेष महत्व देते दिख रहे हैं, इससे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवम प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की धड़कनें भी तेज हैं। मौजूदा विधायकों के दिल सबसे ज्यादा धड़क रहे हैं। उन्हें लगता है, मोदी-शाह प्रदेश का बार-बार दौरा कर विधायकों के बारे में फीडबैक ले रहे हैं। सर्वे रिपोर्ट अथवा बनने वाले क्राइटेरिया के कारण उनका टिकट खतरे में पड़ सकता है। पुत्रों एवं परिजनों की ताजपोशी चाहने वाले नेताओं के चेहरे की रंगत भी उड़ी है। वजह परिवारवाद को लेकर नरेंद्र मोदी का सख्त रुख है। उत्तरप्रदेश के चुनाव में नेता इसे देख चुके हैं। इन्हें परिवारवाद के चलते बेटों का पत्ता कट कटने का डर है। इसलिए कई नेता खुद को पीछे कर बेटों को आगे कर रहे हैं। यह दिखाने के लिए कि परिवार से हम सिर्फ एक ही टिकट चाहते हैं। इस तरह मोदी-शाह ने लगभग हर दिल की धड़कन बढ़ा रखी है।
‘भूपेंद्र’ के रिश्तेदार पर भारी पड़ गए ‘गोविंद’….
सागर जिले से शिवराज मंत्रिमंडल में तीन कद्दावर मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह शामिल हैं। गोविंद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास हैं और भूपेंद्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नजदीक। गोपाल की अपनी पहचान है। एक जिले के कारण इनके बीच टकराहट होती रहती है। ताजा मामला गोविंद सिंह राजपूत के क्षेत्र का है। यहां भूपेंद्र सिंह के एक रिश्तेदार ने दखल देने की कोशिश की तो अपने पद से हाथ धो बैठे। वे भूपेंद्र के साथ क्षेत्रीय सांसद राजबहादुर सिंह के भी रिश्तेदार हैं। दरअसल, भूपेंद्र के भतीजे अशोक सिंह बामौरा के साले राजकुमार सिंह धनौरा सागर में भाजपा किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष थे। वे गोविंद के क्षेत्र सुरखी में स्थानीय प्रत्याशी की मांग को लेकर पदयात्रा पर निकल पड़े। निशाने पर गोविंद थे। खिलाफ एक टिप्पणी भी कर दी। राजकुमार को उम्मीद थी, चूंकि वे मंत्री और सांसद के रिश्तेदार हैं, इसलिए उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन गोविंद ने अपनी ताकत दिखाई। राजकुमार सिंह को भाजपा किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष पद से हटवा दिया। आदेश में लिखा गया कि शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर अनुशासनहीनता के चलते राजकुमार सिंह को जिला अध्यक्ष पद से तत्काल मुक्त किया जाता है। अब धनौरा के रिश्तेदार मंत्री, सांसद उनकी मदद कर पाते भी हैं या नहीं, इस पर सबकी नजर है।
कांग्रेस के हाथ से फिसल रहा बुंदेलखंड….
विधानसभा के पिछले चुनाव में बुंदेलखंड ने कांग्रेस का अच्छा साथ दिया था। भाजपा के कमल को खिलाता रहा लोधी समाज कांग्रेस के हाथ के साथ आ गया था। मलेहरा, बंडा तथा दमोह सीटों में इस समाज के नेता कांग्रेस से जीतने में सफल रहे थे। विडंबना यह कि कांग्रेस इस वोट बैंक को संभाल कर नहीं रख सकी। नतीजा, बुंदेलखंड ही कांग्रेस के हाथ से फिसलता दिख रहा है। उमा भारती के गढ़ मलेहरा में कांग्रेस के टिकट पर जीते लोधी समाज के प्रद्युम्न सिंह और दमोह में जयंत मलैया जैसे दिग्गज को हराने वाले राहुल लोधी कांग्रेस छोड़ चुके हैं। सागर जिले में कांग्रेस की पहचान गोविंद सिंह राजपूत अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ अब भाजपा में हैं। कमलनाथ के खास जिले के दूसरे नेता अरुणोदय चौबे भी पार्टी छोड़ गए हैं। छतरपुर में बिजावर से कांग्रेसी रहे सपा विधायक राजेश शुक्ला का भाजपा से चुनाव लड़ना तय है। राजनगर में विक्रम सिंह नातीराजा पिछला चुनाव सत्यव्रत चतुवेर्दी के बेटे के मैदान में होने से जीत गए थे, इस बार स्थित खराब है। टीकमगढ़ जिले के एक बड़े नेता बृजेंद्र सिंह राठौर की मृत्यु हो चुकी है। बुंदेलखंड में कांग्रेस के फिसलने के ये तमाम कारण हैं। ऐसे हालात के बीच कमलनाथ छतरपुर जिले के बड़ा मलेहरा के दौरे पर जा रहे हैं। इस पर सबकी नजर है।
सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने की कसक अब तक….
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने की कसक कांग्रेस में अब तक है। इसीलिए कांग्रेस के नेताओं में उनके प्रति प्रतिशोध की भावना है, वे सिंधिया को लेकर भ्रमित भी हैं। विरोध के लिए एक तरह का रुख नहीं अपना पा रहे। कांग्रेस नेता कभी कहते हैं कि सिंधिया एवं उनके समर्थकों के भाजपा में पहुंचने से निष्ठावान दरी बिछाने वाले भाजपा कार्यकर्ता उपेक्षित हैं। बिकाऊ के आने से टिकाऊ को तरजीह नहीं मिल रही। इसके उलट कभी कहा जाता है कि सिंधिया एवं उनके समर्थकों के कांग्रेस में जलवे थे, भाजपा में उनकी कोई हैसियत नहीं। ताजा मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ महाकाल के दर्शन का है। सिंधिया के लिए कहा गया कि वे दरबारी हो गए हैं, इसीलिए मोदी अंदर महाकाल की पूजा कर रहे थे और सिंधिया बाहर जूतों की रखवाली, जबकि सिंधिया के पास ही मुख्यमंत्री और राज्यपाल भी थे। हाल ही में पार्टी ने जब कुछ जिलाध्यक्ष नियुक्त किए तब कहा गया कि इनमें सिंधिया समर्थक एक भी नहीं है। इतना ही नहीं कांग्रेस के नेता सिंधिया समर्थकों पर बिकने के आरोप अब तक लगाते रहते हैं। डॉ गोविंद सिंह ने कहा कि कुछ विधायकों को तय रकम नहीं मिली। 18 करोड़ पहले दिए गए थे, शेष रकम नहीं मिल रही है। ऐसे विधायक अब कांग्रेस में वापसी करना चाहते हैं। मिली रकम को लेकर भी एक राय नहीं है। साफ है, कांग्रेस सिंधिया को भूल नहीं पा रही है।