
Kajirang’s ‘Mohanmala’ is no More: काज़ीरंगा की अमर हथिनी मोहनमाला का निधन, 85 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस
गोवाहाटी, असम: काज़ीरंगा नेशनल पार्क ने अपनी सबसे बुजुर्ग और वीर हथिनी मोहनमाला को 14 अगस्त 2025 को 85 वर्ष की आयु में खो दिया। उनके निधन की सूचना सुबह 9:40 बजे पार्क के कोहोरा रेंज के वन अधिकारी डॉ. विभूति रंजन गोगोई ने दी। मोहनमाला 17 मई 1970 को पार्क में आई थीं और तब से ले कर 55 वर्षों तक काज़ीरंगा की सुरक्षा और संरक्षण में उनकी भूमिका मिसाल बनी।

**जीवन और सेवा का क़िस्सा**
दिवंगत वन अधिकारी दुर्गा प्रसाद नियोग द्वारा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए उन्हें उपहार स्वरूप भेंट किया गया था। मोहनमाला ने पार्क के घने जंगलों से लेकर घास के मैदानों तक, शिकारियों से लड़ते हुए और संकट के समय अपने बछड़े के साथ लोकल वन विभाग के टीम के लिए एक अहम सुरक्षात्मक भूमिका निभाई।
उनके दो शावक हुए, जिनमें से एक बाघ के हमले का शिकार हुआ और दूसरा ड्यूटी के समय अचानक मृत्यु को प्राप्त हुआ।

**निडरता और साहस का परिचय**
महावत किरण राभा बताते हैं, “एक सर्दियों की सुबह, जब मोहनमाला अपने बछड़े मालती के साथ मिहिमुख बील के पास गश्त कर रही थीं, तभी एक जंगली हाथी ने उन पर हमला कर दिया। लेकिन मोहनमाला ने अपने महावत को बगैर हानि के गोद में उठाकर उफनते पानी में तैरते हुए सुरक्षा सुनिश्चित की।”
मोहनमाला बाढ़ के समय घायल वन कर्मचारियों को नदी पार कर बचाने के लिए भी जानी जाती थीं, जिन्होंने कई बार खुद को संकट में डालकर पार्क की ‘एम्बुलेंस’ की भूमिका निभाई।

**चिकित्सा और अंतिम समय**
जनवरी से मोहनमाला की मेडिकल देखरेख चल रही थी। काज़ीरंगा के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. सौरव बोरगोहेन के अनुसार, उनका निधन एक शांतिपूर्ण और बिना किसी दर्द के हुआ। कई अनुभवी पशु चिकित्सकों का दल उम्र के मद्देनजर इलाज और सेवा कार्य में अंतिम समय तक जुटा रहा।
**अंतिम श्रद्धांजलि**
पार्क के अधिकारी, वनकर्मी और पशु चिकित्सा विशेषज्ञ उनकी याद में एकत्रित हुए और कहा कि मोहनमाला न केवल काज़ीरंगा की सबसे वृद्ध हथिनी थीं, बल्कि उनकी बहादुरी, समर्पण और सेवा सदैव प्रेरणा बनेगी।
वन विभाग ने कहा, “उनके जाने से हम केवल एक सदस्य नहीं, बल्कि साहस और समर्पण की एक जीती-जागती मिसाल खो बैठे हैं। उनके अमूल्य योगदान को काज़ीरंगा के इतिहास में सदा के लिए अंकित किया जाएगा।”





