कमलनाथ का ‘निक्कर’ बना ‘गले की फांस’

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तजुर्बेकार नेता होने के बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ कई बार ऐसा कुछ बोल जाते हैं, जो विरोधी के लिए संजीवनी बन जाती है, अपने भी नाराज हो जाते हैं। खंडवा में कमलनाथ द्वारा बोले गए ‘निक्कर’ शब्द को ही ले लीजिए, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने इसे उप चुनाव का मुद्दा बना दिया। कमलनाथ के ‘निक्कर’ का आशय कुछ भी हो लेकिन यह उनके ‘गले की फांस’ बन गया।

वीडी देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं, इसलिए कमलनाथ का यह कहना शोभा नहीं देता कि वीडी जब ‘निक्कर’ पहनना सीख रहे थे तब वे सांसद बन गए थे। गांव में पहले अंडरवियर को ‘निक्कर’ या ‘नेकर’ ही बोलते थे, लेकिन कई जगह ‘निक्कर’ को आरएसएस की ड्रेस से जोड़कर भी देखते हैं। लिहाजा, वीडी ने कहा कि हां मैं आरएसएस का ‘निक्कर’ पहनकर ही यहां तक पहुंचा हूं। आरएसएस के संस्कारों में ही पला-बढ़ा हूं।

हालात यह कि भाजपा हमलावर और कमलनाथ स्पष्टीकरण तक नहीं दे पा रहे। भला जिस बात की सफाई न दी जा सके, वह बात बोलना ही क्यों? कमलनाथ पहले भी ऐसा कर चुके हैं। उनके बयानों के कारण पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया, फिर अजय सिंह और अरुण यादव जैसे नेताओं के साथ उनकी दूरी बढ़ी।

क्या होगा, मुकाबला बराबरी पर छूटा तो….
– कहा जा रहा है कि प्रदेश की एक लोकसभा एवं तीन विधानसभा सीटों के उप चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की प्रतिष्ठा से जुड़े हैं। इसीलिए उप चुनावों को आम चुनावों की तर्ज पर लड़ा जा रहा है। पहले टिकट पर मशक्कत, इसके बाद बागियों को मनाने की कवायद और अब धुंआधार प्रचार अभियान।

यदि मुकाबले में सभी सीटें भाजपा या कांग्रेस के खाते में गर्इं तो सामने वाले का बोरिया बिस्तर बंध सकता है। एक दल ने तीन और दूसरे ने सिर्फ एक सीट जीती तब भी राजनीतिक कद घट-बढ़ सकता है लेकिन यदि भाजपा अपने कब्जे वाली खंडवा एवं रैगांव सीटें जीतने में सफल रही और कांगेस भी अपनी प्रथ्वीपुर एवं जोबट बचाने में कामयाब। अर्थात मुकाबला बराबरी पर छूटा, न किसी को नफा और न किसी को नुकसान, तब क्या होगा?

किसका कद घटेगा और कौन तरक्की पाएगा, इस पर राजनीतिक विश्लेषक मौन हैं। जबकि यह भी हो सकता है। तब न शिवराज सिंह चौहान, वीडी शर्मा की पराजय होगी, न ही कमलनाथ की। मतलब, जैसा चल रहा है, चलता रहेगा। सभी अपनी जगह काम करते रहेंगे। हां, मुकाबला बराबरी पर न छूटा तो ‘खतरे की घंटी’ बजना तय है।

‘सांडों’ की नसबंदी’ पर बैकफुट में भाजपा….
– गौवंश भाजपा का मुद्दा रहा है, लेकिन उप चुनाव के समय वह इस मसले पर बैकफुट में है। वजह है ‘सांडों की नसबंदी’। सरकार ने बाकायदा आदेश जारी कर बैलों की नसंबदी करने के निर्देश दिए। सांडों को पकड़कर नसबंदी की जाने लगी। पहले इसे संस्कृति मंच ने उठाया। इसके बाद भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर इसमें कूदीं। प्रज्ञा ने सरकार से इसे तत्काल रोकने की मांग की। इसके बाद कांग्रेस ने मुद्दे को लपका।

कांग्रेस ने कहा कि भाजपा गाय और गौवंश के संरक्षण की बात करती है। इसके नाम पर वोट लेती है लेकिन ‘सांडों की नसबंदी’ कर गौवंश को बढ़ने से रोका जा रहा है। मामला भोपाल से दिल्ली तक गूंजा। अंतत: भाजपा सरकार को बैकफुट पर आकर अपना आदेश निरस्त करना पड़ा।

सरकार ने निर्देश दिए कि अब ‘सांडों की नसबंदी’ नहीं होगी। सवाल यह है कि सरकार को यह क्यों करना पड़ा? जब कुत्तों की नसबंदी तक का विरोध हुआ था तो सांडों की नसबंदी क्यों? इसका तीखा विरोध होना था, सो हुआ। दरअसल, कांग्रेस गाय और गौवंश को लेकर भाजपा को घेरती रहती है। उसका कहना है कि भाजपा गाय पर राजनीति तो करती है लेकिन उसके शासन में गौ माता सड़कों पर भूखी-प्यासी आवारा घूमने को मजबूर है।

प्रज्ञा जी, न संत ऐसा बोलते, न ही राजनेता….
– भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर फिर चर्चा में हैं। इस बार भी वजह हैं उनके बोल। आमतौर पर गैर राजनीतिक कार्यक्रमों में जहां सभी दलों के नेता शामिल होते हैं, वहां एक दूसरे की आलोचना से हर नेता बचता है।

सामान्य शिष्टाचार का पालन करता है लेकिन विजयादशमी के अवसर पर आयोजित दो कार्यक्रमों में सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने न इस सामान्य शिष्टाचार का पालन किया, न ही संत पंरपरा का। एक कार्यक्रम में उनके अलावा कांग्रेस विधायक पूर्व मंत्री पीसी शर्मा भी अतिथि थे। यहां प्रज्ञा ठाकुर ने संबोधित किया तो कांग्रेस को तो भला-बुरा कहा ही, पीसी शर्मा को भी खरी-खोटी सुना डालीं।

मजबूर होकर पीसी को मंच छोड़कर जाना पड़ा। उन्होंने कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को भी विधर्मी कह डाला। उन्होंने कहा कि ऐसे विधर्मियों के पाप नर्मदा परिक्रमा से धुल नहीं जाते। इसे लेकर नर्मदा परिक्रमा करने वाले साध्वी पर हमलावर हैं। इनका कहना है कि नर्मदा के दर्शन मात्र से व्यक्ति पवित्र हो जाता है, साध्वी को इतना भी ज्ञान नहीं है। एक अन्य कार्यक्रम में प्रज्ञा ने एक युवक को बुढ़ापा खराब होने का श्राप दे डाला और कबड्डी खेलते उनका वीडियो वायरल करने वाले को रावण कह दिया। आमतौर पर ऐसा न कोई राजनेता बोलता, न ही संत।

 सिंधिया के प्रचार में हिस्सा न लेने के मायने….
– प्रदेश की एक लोकसभा एवं तीन विधानसभा सीटों के लिए हो रहे उप चुनावों के नतीजे सरकार बनाने-बिगाड़ने का काम नहीं करेंगे, लेकिन इनसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की प्रतिष्ठा जुड़ी है।

नतीजों का असर किसी की भी राजनीतिक सेहत पर पड़ सकता है। ऐसे में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का मैदान में न दिखना गले नहीं उतर रहा। पहला, उन्हें भाजपा और भाजपा के नेताओं की चिंता करना चाहिए और दूसरा, कमलनाथ से बदला लेने का उनके पास यह एक और मौका है।

बावजूद इसके वे प्रचार अभियान में हिस्सा लेते दिखाइे नहीं पड़ रहे। न वे भाजपा के किसी प्रत्याशी का नामांकन दाखिल कराने आए, न ही किसी क्षेत्र में दौरे का उनका कार्यक्रम आया। इस दौरान वे ग्वालियर होकर चले गए। वहां दो दिन तक रहे। कुछ उद्घाटन, लोकार्पण किए और क्रिकेट खेलते भी नजर आए लेकिन उप चुनाव वाले किसी क्षेत्र का रुख नहीं किया। राजनीतिक हलकों में इसके मायने तलाशे जा रहे हैं। सवाल है कि प्रदेश भाजपा उनका उपयोग नहीं करना चाहती या वे खुद दूरी बनाकर रखना चाहते हैं। हालांकि उनके समर्थक मंत्रियों को जोबट में दायित्व सौंपा गया है।