विधानसभा चुनाव के बाद हाथ आई सत्ता गंवा कर काग्रेस विपक्ष में है। बावजूद इसके कांग्रेस के अंदर सब ठीक नहीं है। कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस के सर्वशक्तिमान नेता हैं। इतनी ताकत होने के बावजूद कमलनाथ कांग्रेस को एकजुट रख पाने में असफल हैं।इतना ही नहीं उनके द्वारा कुछ स्थापित नेताओं को कमजोर करने के काम किए जा रहे हैं।
विंध्य अंचल को ही लें, यहां पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह सबसे ताकतवर नेता हैं। अजय के समानांतर पहले कमलेश्वर पटेल को आगे बढ़ाया जा रहा था, अब भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी को हरी झंडी मिल रही है। पटेल और त्रिपाठी विंध्य अंचल में अजय सिंह के विरोधी माने जाते हैं। यदि सब योजना अनुसार चला तो नारायण त्रिपाठी अगला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ेंगे। वे भाजपा के खिलाफ लगातार बोल रहे हैं।
हाल ही में उन्होंने अवैध खनन को लेकर भाजपा सरकार को घेरा है। अजय सिंह उसी तरह त्रिपाठी को कांग्रेस में लिए जाने के विरोधी हैं, जिस तरह चौधरी राकेश सिंह के थे। दोनों ने अचानक कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था। कमलनाथ को अजय का यह रवैया पसंद नहीं। इसलिए कमलनाथ द्वारा अजय सिंह के विरोधियों को संरक्षण देने से सवाल उठ रहे हैं।
‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तरह लड़ाई….
– कांग्रेस के एजेंडे में भी जनजातीय नायक आ गए हैं। हां, कांग्रेस का तरीका कुछ अलग है। भाजपा जनजातीय नायकों को सम्मान देकर आदिवासी वोट बैंक को साधना चाहती है। इसके विपरीत कांग्रेस की योजना भाजपा की मुहिम पर पलीता लगाने की है।
कांग्रेस के आदिवासी विधायक ओमकार सिंह मरकाम ने कहा कि रानी कमलापति का नाम कमलावती था। उनका कहना है कि महिलाओं का नाम कमलापति नहीं होता। उनका आरोप है कि भाजपा अज्ञानता में जनजातीय नायकों के नामों से छेड़छाड़ कर रही है। दूसरी तरफ सज्जन सिंह वर्मा के नेतृत्व में विधायकों की एक टीम रानी कमलापति के गिन्नौरगढ़ किले का दौरा करने पहुंच गई।
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार जिन रानी कमलापति के नाम पर राजनीति कर रही है, उनका किला जीर्ण-शीर्ण है। पुरातत्व महत्व की इस धरोहर को सहेजने की ओर सरकार का ध्यान नहीं है। वर्मा ने कहा कि भाजपा सिर्फ वोट की राजनीति कर रही है। पोल खुलने के डर में सरकार ने काग्रेस की टीम को गिन्नौरगढ़ महल तक जाने ही नहीं दिया। इस तरह आदिवासी वोट बैंक के लिए ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तर्ज पर पांसे फेंके जा रहे हैं।
पंचायत चुनाव: कांग्रेस पर उलटा पड़ता दांव….
– गांव की पुरानी कहावत है, ‘चौबे छब्बे बनने निकले लेकिन दुबे बनकर लौटे’। पंचायत चुनावों के मामले में यह कहावत कांग्रेस पर चरितार्थ होती दिख रही है। पंचायत चुनावों में रोक लगाने का दांव कांग्रेस पर उल्टा पड़ता नजर आ रहा है। आरक्षण को लेकर कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट तक गई थी। हालांकि कांग्रेस में एक वर्ग इसके पक्ष में नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर राज्य निर्वाचन आयोग ने पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित जिला-जनपद पंचायत सदस्यों, सरपंच एवं पंचों के चुनावों पर रोक लगा दी। कांग्रेस यही मात खा गई। मैसेज जा रहा है कि कांग्रेस अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिए जाने के विरोध में है। इससे कांग्रेस सकते में है। अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह, विवेक तन्खा, अरुण यादव मांग कर रहे हैं कि अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण तय कर पंचायतों के चुनाव कराए जाएं। अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण को लेकर पहले से भाजपा-कांग्रेस एक दूसरे पर हमलावर हैं।
भाजपा को कांग्रेस पर हमला करने का एक और अवसर मिल गया है। वह कांग्रेस को पिछड़ा विरोधी ठहराने पर आमादा है जबकि कांग्रेस पिछड़ों को आरक्षण देकर ही पंचायत चुनाव कराने की मांग कर रही है। हालांकि विवेक तन्खा ने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह को 10 करोड़ के मानहानि का नोटिस जारी कर भाजपा को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है।
राशिद अल्वी जैसा बोल कर फंस गए उमंग….
– राजनीति के मौजूदा दौर में मुद्दे पकड़ना, उठाना और उन्हें भुनाना सीखना है तो हर दल के नेता को कुछ समय के लिए भाजपा में जाकर ट्रेनिंग लेना चाहिए। कांग्रेस नेता राशिद अल्वी एवं प्रदेश के आदिवासी विधायक उमंग सिंगार के मसलों ने इसे और प्रमाणित किया है। अल्वी ने राक्षस कालनेमि का प्रसंग सुनाते हुए कहा था
कि वे हनुमान जी को रोकने के लिए रावण के कहने पर श्रीराम-श्रीराम बोल रहे थे ताकि हनुमान उसके झांसे में आकर रुक जाएं और समय पर लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी न ले जा सकें। अल्वी ने कहा था कि इसलिए श्रीराम बोलने वाला हर सख्श संत नहीं होता। बस क्या था, भाजपा मुद्दे को ले उड़ी और आरोप लगाया कि कांग्रेस नेता ने श्रीराम बोलने वालों को राक्षस कह दिया, जबकि सच यह नहीं था।
इसी तर्ज पर कांग्रेस के आदिवासी विधायक उमंग सिंगार ने कह दिया कि हर राक्षस भगवान शिव की भक्ति कर शक्तियां अर्जित करता था। ट्वीट के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बनारस का फोटो भी जोड़ दिया। भाजपा ने इसे भी लपका और कहा कि उमंग सिंगार भगवान शिव और प्रधानमंत्री मोदी का अपमान कर रहे हैं। जबकि उमंग के कहने का तात्पर्य भी यह नहीं था। यही तो है मुद्दा पकड़ना और उसे भुनाना।
केंद्रीय मंत्री के व्यवहार में तब्दीली के मायने….
– केंद्रीय राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल के व्यवहार में बदलाव की खासी चर्चा है। उनके मिलने, बातचीत के तरीके और पुराने परिचितों को याद कर उनके घर पहुंचने की शैली देखकर सब हैरत में हैं। पटेल में यह बदलाव तब से आया है, जब से केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री से हटाकर सिर्फ राज्यमंत्री बना दिया गया। इससे पहले उन्हें मुख्यमंत्री तक का दावेदार माना जा रहा था।
संभवत: यह पहला अवसर है जब प्रहलाद भोपाल आए और चुनिंदा पत्रकार मित्रों से दो किश्तों में मुलाकात की। सभी के पास बाकायदा फोन पहुंचे। पहले दिन एक रेस्टोरेंट में बुलाया गया और दूसरे दिन एक होटल में। इसमें कोई बुराई नहीं है। सार्वजनिक जीवन में रहने वाले हर नेता को अपने संबंधों को रिन्यू करते रहना चाहिए। प्रहलाद की चर्चा इसलिए ज्यादा है क्योंकि वे ऐसे कभी नहीं रहे। उन्हें अकड़ वाला नेता माना जाता है।
वे कभी किसी की परवाह नहीं करते। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं कद्दावर नेता गोपाल भार्गव जैसे नेताओं से उनके विवाद सुर्खियों में रहे हैं। उमा भारती के वे सबसे नजदीक रहे और बाद में नाराज भी हुए। ऐसा नेता अचानक इतना विनम्र और संबंधों को सहेजता कैसे दिखने लगा? यह खोज का विषय है।