

Kashmir Problem:युद्ध के बिना भी बरबाद हो सकता है पाक
रमण रावल
भारत को स्वतंत्रता देते समय कुटिल अंग्रेजों ने धर्म आधरित विभाजन का जो बीज बोया था, वो अब ऐसा वट वृक्ष बन चुका है,जिसकी जमीन छूती शाखाओं से विष टपक कर इस धरती को बंजर,विषाक्त बना रहा है। 1947 से पहलगाम तक जब भी कोई आतंकी वारदात होती है, तब-तब उस विष वृक्ष को बोने,फिर खाद-पानी देने,उसे पल्लवित करने वालों के प्रति घृणा,प्रतिशोध का सैलाब बह निकलता है। फिर कुछ कथित बुद्धिजीवी,वामपंथी व छद्म मानवतावादी दुहाई देते हैं कि अतीत के जख्मों को क्यों कुरेदा जाता है। वे ही दुनिया को ज्ञान देने लग जाते हैं कि युद्ध किसी समस्या का हल नहीं । वे ही हमें यह बताने-समझाने लग जाते हैं कि हमें बड़े भाई का धर्म निभाना चाहिये। बताइये,इतने भ्रम,फरेब व मत-मतांतर वाले देश में किसी भी समस्या से एकमत होकर कैसे लड़ा जा सकता है ? जबकि हमारे घोषित दुश्मन पाकिस्तान व अब बांग्लादेश जैसे मुल्कों में भी हमें लेकर कोई भ्रम,संदेह नहीं । क्या हम इसी मानसिकता के साथ पाकिस्तान व उसके पाले हुए सपोले आतंकवादियों से कभी निपट भी पायेंगे।
आप गौर कीजिये कि जैसे ही पहलगाम में आतंकवादियों ने धर्म पूछकर हत्याएं की और भारत सरकार तथा समूचे देश से जिस तरह की उग्र प्रतिक्रियायें सामने आई व विश्व समुदाय भी हमारे साथ खड़ा हुआ, वैसे ही पाकिस्तान सरकार व सेना ने क्या किया? उसने तत्काल फाइटर जेट सीमावर्ती अड्डों पर तैनात किये। पीओके के आतंकवादियों को अपने शिविरों,बंकरों में संरक्षित किया। सेना को सीमा पर भेजना प्रारंभ किया। तत्काल उच्च स्तरीय बैठकें कर योजनाएं बनाई जाने लगीं। अपने साहूकार मित्र देश चीन,तुर्की से ताबड़तोड़ फाइटर विमान व सैन्य मदद बुलवायई । हमें घुड़काया कि यदि जल समझौते का पानी रोका तो हम इसे युद्ध मानेंगे । आखिरकार ये सब क्यों? इसलिये कि वह अच्छी तरह जानता है कि आतंकवादी उसने ही पाले हैं। हम ही उन्हें रसद-पानी देकर भारत में दाखिल करवाते हैं। हम ही हैं जो वहां दहशत पैदा कर दुनिया में दुष्प्रचारित करना चाहते हैं कि भारत में अस्थिरता है।
Next Step of Modi Govt: पहले कश्मीर,फिर पाकिस्तान से निपटें
इधर हम हैं कि टीवी चर्चा से लेकर तो अखबारों में हमारे बुद्धि बहादुर ज्ञान दे रहे हैं कि युद्ध से नुकसान तो हमें भी होगा और अर्थ व्यवस्था चरमरा जायेगी। पाकिस्तान परमाणु बम भी चला सकता है। तबाही मच जायेगी। हमें तो उससे चर्चा-चर्चा खेलना चाहिये और किसी मध्यस्थ के जरिये हल निकालना चाहिये। कितने बोथरे,दिमागी दिवालिये हैं ऐसे लोग , जो इस घनघोर विपत्ति की घड़ी में भी वर्ग विशेष के घर पहुंचकर सांत्वना दे रहे हैं। उनके जीजा-फूफा कह रहे हैं कि पहलगाम हमले के लिये हिदुत्व जिम्मेदार है। एक मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि सरकार को युद्ध नहीं सुरक्षा मजबूत करना चाहिये। ये ज्ञान वे 1989 से 2014 तक अपनी सरकार को देते तो कश्मीरी पंडियों का व्यापक नरसंहार नहीं होता। हजारों लोग नहीं मारे जाते। एक विधायक फरमाते हैं कि आतंकवादियों के पास इतना समय नहीं होता कि वे धर्म पूछकर गोली मारे। आप सोचिये, किस मानसिकता के लोगों के साथ हम रह रहे हैं। बेशर्मी की हद देखिये कि इनका आलाकमान कहता है, ये उनके निजी विचार हैं।
इस मानसिकता के साथ कश्मीर मसले व आतंकवाद का हल निकालना तो छोड़िये, किसी गली-मोहल्ले की समस्या नहीं सुलझाई जा सकती। इसका यह मतलब नहीं कि भारत सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। वहां तो निश्चित ही 360 डिग्री पर विचार मंथन होकर रणनीति पर काम प्रारंभ हो चुका होगा। इस बार हमें यह देखना है कि भारत सरकार इन विषैले सांप-बिच्छुओं का किस तरह इलाज करती है। यह प्रत्यक्ष युद्ध भी हो सकता है। सांकेतिक हमले भी हो सकते हैं। दुनिया के साथ उसके रिश्तों पर पलीता भी डाल सकते हैं। उधर, पाकिस्तान के भीतर जन असंतोष इस हद तक उभर सकता है कि वह 56 छेद लेकर इधर-भागने को विविश हो जाये और उपचार कहीं से हो ही न पाये। दुनिया जानती है कि बलूचिस्तान,खैबर पख्तूनख्वाह,पीओके में किस तरह लोगों में विद्रोह पनप चुका है। वहां के लोग इसे अंजाम तक ले जाने को तत्पर हैं। भारत के साथ मौजूदा तनाव के मद्देनजर वे अपनी लड़ाई को तीव्रता प्रदान कर सकते हैं। इसके लिये भी पाकिस्तान का निशाना भारत हो सकता हैं।
War Preparation, Comparison of India & Pakistan: हथियार,हिम्मत,रणनीति में भारत बेहद विशाल,पाकिस्तान बौना
प्रत्यक्ष युद्ध के दो-तीन उदाहरण ही हमारे लिये काफी होंगे। फलस्तीन-इजराइल,रूस-यूक्रैन व दशकों तक हुए रूस-अफगानिस्तान व बाद में अमेरिका-अफगानिस्तान युद्ध का क्या नतीजा निकला। अमेरिका-वियतनाम युद्ध से भी क्या हासिल हुआ ? इसलिये मुझे निजी तौर पर लगता है कि युद्ध से निर्णायक नतीजा निकालने की बजाय अन्य रणनीतिक व कूटनीतिक उपायों के माध्यम से पाकिस्तान को पस्त करने की किसी योजना पर भारत सरकार काम कर रही होगी। यह भी प्रयास रहेगा कि हताश पाकिस्तान जब खुद ही हम पर हमला बोल दे तो फिर उसे ऐसा सबक सिखाया जाये कि आने वाले 25-50 साल तो वह युद्ध का सपना भी न देखे। वैसे भी पाकिस्तान से यदि बलूचिस्तान,खैबर पख्तूनख्वाह,पीओके व सिंध प्रांत अलग हो जायें तो वहां बचेगा, केवल पंजाब प्रांत। इसी पंजाब के लोगों का पाकिस्तान की राजनीति व सेना में प्रभुत्व है। इससे शेष पाकिस्तान के लोग बेहद खफा रहते हैं।
कुल मिलाकर पाकिस्तान बहुत सारी मुसीबतों की खाई के फिसलन भरे किनारों पर तेजी से खिसकता जा रहा है। एक भी जोर का धक्का उसे रसातल में धकेल देगा। वह धक्का उसे भारत भी दे सकता है और उसकी अपनी जनता भी तैयार बैठी है।