आत्मनिर्भर भारत का सपना 103 साल पहले गांधी ने देखा था…

172

आत्मनिर्भर भारत का सपना 103 साल पहले गांधी ने देखा था

आज आत्मनिर्भर भारत और आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश जैसी बातें हो रही हैं। यह आत्मनिर्भरता का मंत्र राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने 103 साल पहले 1921 में दे दिया था। 1921 विदेशी परिधान के खिलाफ गांधीजी के उग्र विरोध का साल था। 22 अगस्त 1921 में महात्मा गांधी ने सार्वजनिक रूप से विदेशी कपड़ों को जलाकर प्रतिरोध की प्रतीकात्मक लौ जलाई थी। इस साहसिक कार्य ने स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की, जो आत्मनिर्भरता और ब्रिटिश वस्तुओं की अस्वीकृति का आह्वान था। गांधी द्वारा कपड़ों को एक प्रतीकात्मक युद्धभूमि के रूप में इस्तेमाल करने के विकल्प ने आदर्शों को मूर्त कार्यों में बदलने में उनकी रणनीतिक प्रतिभा को प्रदर्शित किया, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्थन की लहर उठी। स्वदेशी के जरिए आत्मनिर्भरता का गांधी का यह मंत्र आज भी प्रासंगिक है। चाहे मोटे अनाजों के उत्पादन की बात हो, चाहे मेक इन इंडिया की तरफ बढ़ते भारत के कदम हों या फिर विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पंख लगाकर अंतरिक्ष को यह बता रही हो कि गांधी के आह्वान के 103 साल बाद आज भारत आत्मनिर्भर होने की तरफ लगातार आगे बढ़ रहा है।

तो आत्मनिर्भर भारत का सपना महात्मा गांधी ने बीसवीं सदी में देखा था, वहीं 21वीं सदी में आत्मनिर्भर भारत अभियान  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा परिकल्पित नए भारत का दृष्टिकोण है। गांधी की सोच के करीब सौ साल बाद 12 मई 2020 को, मोदी ने राष्ट्र को आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरुआत करते हुए एक स्पष्ट आह्वान किया और भारत में कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद के 10% के बराबर 20 लाख करोड़ रुपये के विशेष आर्थिक और व्यापक पैकेज की घोषणा की। इसका उद्देश्य देश और उसके नागरिकों को हर मायने में स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाना है। उन्होंने आगे आत्मनिर्भर भारत के पांच स्तंभों – अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचे, प्रणाली, जीवंत जनसांख्यिकी और मांग को रेखांकित किया। वित्त मंत्री ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत सात क्षेत्रों में सरकारी सुधारों और समर्थनों की घोषणा की। सरकार ने आत्मनिर्भर लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में कृषि के लिए आपूर्ति श्रृंखला सुधार, तर्कसंगत कर प्रणाली, सरल और स्पष्ट कानून, सक्षम मानव संसाधन और मजबूत वित्तीय प्रणाली जैसे सुधार किए।

हालांकि भारत आत्मनिर्भरता के साथ स्वदेशी की दिशा में लगातार आगे बढ़ रहा है। पर कहीं न कहीं इसमें स्वदेशी की वह ललक जन-जन के मन में समा नहीं रही है, जो गांधी की एक आवाज पर विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर पूरे भारत ने 103 साल पहले अपना भाव प्रकट किया था। खादी के वस्त्रों को अपनाने का मोदी का आह्वान भी धीरे-धीरे ही असर करता नजर आ रहा है। पर जरूरी है कि क्रांति की तरह स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत का शंखनाद हो और गांधी का स्वदेशी संग आत्मनिर्भरता का सपना साकार हो, इसके लिए भारत के युवाओं को आगे आना पड़ेगा…हर भारतवासी को विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार या सीमित उपयोग की तरफ कदम बढ़ाना ही चाहिए। तब ही मोदी के प्रयास सार्थक होंगे और 103 साल पहले गाँधी का देखा आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होगा…।