नारायण-नारायण (Narayan Narayan), यह कैसा हाहाकार है …

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Narayan Narayan

नारायण-नारायण (Narayan Narayan), यह कैसा हाहाकार है …

तुम इस लाइन से हटो और उस दक्षिण की तरफ बनी लाइन में लग जाओ…!
यह क्या है, मेरी योग्यता तो उसी उत्तर वाली लाइन में लगने की है, फिर दक्षिण वाली लाइन में क्यों भेजा जा रहा है? मैं इसकी शिकायत हाईकमान से करूंगा।
और हम धरना देंगे, प्रदर्शन करेंगे और फिर भी हमारे साथ अन्याय किया गया…तो और भी कड़े कदम उठाने से चूकेंगे नहीं।
यहां आने के बाद भी यदि अन्याय हुआ, तो हम किसी भी कीमत पर सहन नहीं करेंगे।
और इसके साथ ही जोर-जोर से नारेबाजी शुरू हो गई। तानाशाही नहीं चलेगी, नहीं चलेगी-नहीं चलेगी। हर जोर-जुल्म की टक्कर में, संघर्ष हमारा नारा है…।
और इसके आगे भी कुछ-कुछ आवाजें कानों में गूंजती रहीं…मुर्दाबाद-मुर्दाबाद।
आज तक इस तरह का माहौल नहीं देखा गया था, इसलिए देवर्षि नारद कुछ चिंतित हो गए।
और नारायण-नारायण (Narayan Narayan) रटते हुए उसी स्थान पर पहुंच गए, जहां से यह कर्कश स्वर उनके कानों के परदों को फोड़ने की हरसंभव कोशिश कर रहे थे।
वह तो भला उनकी खान-खुराक और जप-तप का…कि कोई हानि नहीं पहुंचा पा रहे थे।
दरअसल यह स्थान वह था, जहां यमदूत पृथ्वीलोक से शरीर से विदा हुई आत्माओं संग यमलोक पहुंचते थे और इस प्रवेश द्वार पर पहले जिनका स्वर्ग जाने के लिए रजिस्ट्रेशन हुआ था|
उनसे अब नरक जाने वाली लाइन में लगने के लिए कहा जा रहा था।
जीवन भर नेककर्म करने वाली रूहों को इस पर कड़ी आपत्ति थी। और तब और ज्यादा जबकि पहले वह निंश्चिंत हो गए थे कि स्वर्ग में उनकी जगह सुनिश्चित है।
Narayan Bhagwan
इसके बाद अचानक दूसरा फरमान आ गया। देवर्षि को माजरा समझ में आ गया कि दाल में कुछ काला है। उन्होंने मामले की पूरी तहकीकात करने पर ध्यान लगाया। तो दूध का दूध और पानी का पानी हो गया।
दरअसल पृथ्वीलोक में अचानक संवैधानिक प्रावधान और नियम-कानूनों में बदलाव की आग यमलोक तक पहुंच रही थी।
और यमलोक की नियमावली में अचानक बदलाव करने से सब कुछ उल्टा-पुल्टा सा होता दिख रहा था।
जब पृथ्वीलोक के मुताबिक नियम-कानूनों को मनमाफिक तरीके से बदला जा रहा था, सो रूहों ने भी विरोध का पृथ्वीलोक का तरीका अख्तियार करने में तनिक भी देर नहीं की थी|
और विरोध भी लगातार इतना बढ़ता जा रहा था कि यमलोक में भी कानून-व्यवस्था की स्थिति निर्मित हो गई थी।
आखिरकार मामला ऊपर तक पहुंच गया था और यमराज ने खुद मौका मुआयना करने का मन बनाया और विशेष सुरक्षा व्यवस्था में घटना स्थल पर पहुंच गए।
देवर्षि भी नारायण-नारायण (Narayan-Narayan) जपते हुए यमराज के पास पहुंच गए और मुस्कराकर पूछने लगे कि क्या माजरा है यमदेव…
narayan Bhagwan 1
आपके राज में भी कानून-व्यवस्था बिगड़ रही है। यमलोक में यह स्थितियां निर्मित होने की वजह क्या है देव? यमराज भी समझ गए कि अब बात ऊपर तक और हर कान तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी।
देवर्षि बोले कि देव पृथ्वीलोक से शरीरों के मायाजाल में यह रूहें भी कलपती रहती हैं और फिर ऐसी क्या वजह है कि यमलोक में आकर भी इन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है?
व्यक्ति मरता है तो सबसे पहले यमदूतों के पल्ले पड़ता है, जो उसे ‘यमराज’ के समक्ष उपस्थित कर देते हैं।
यमराज को दंड देने का अधिकार प्रदान है। वही आत्माओं को उनके कर्म अनुसार नरक, स्वर्ग, पितृलोक आदि लोकों में भेज देते हैं।
उनमें से कुछ को पुन: धरती पर फेंक दिया जाता है। विधाता किस्मत लिखता है, चित्रगुप्त बांचता है, यमदूत पकड़कर लाते हैं और यमराज दंड देते हैं।
मृत्य का समय ही नहीं, स्थान भी निश्चित है जिसे कोई टाल नहीं सकता।
फिर यहां तो सारे काम पारदर्शिता, बिना भ्रष्टाचार और न्याय के साथ होते हैं…फिर इस तरह का कोलाहल यहां अब से पहले तो कभी सुनाई नहीं दिया।
आखिर क्या यहां भी पृथ्वीलोक की तरह कलियुग का प्रभाव सिर तक पहुंच रहा है।
यमराज चाह रहे थे कि देवर्षि के सामने मुंह न खोला जाए वरना पूरी पोल खुल जाएगी और फिर बात का बतंगड़ बनने में देर नहीं लगेगी और तीनों लोकों में यमलोक की बदनामी होगी।
यमराज ने कहा देवर्षि आप परेशान न हों, हम मामले का समाधान तुरंत ही कर लेंगे।
देह में वर्षों तक कैद रही रूहों के साथ यमलोक में अन्याय नहीं होने देंगे। हो सकता है, इन्हें कोई गलतफहमी हुई हो…मैं व्यक्तिगत तौर पर समस्या समझकर समाधान करता हूं।
यमराज ने यह कहते हुए देवर्षि की तरफ से मुंह मोड़ा ही था कि इतने में आवाजें तेज हो गईं कि न्याय के देवता के फैसले के बिना हमें कुछ भी मंजूर नहीं है।
शनिदेव को बुलाइए… हमारी अर्जी पर वही फैसला करेंगे। दरअसल कुछ आत्माओं को तीनों लोकों की विभूतियों का ज्ञान था, जो भीड़ से निकलकर चीखते हुए शनि देव के नाम के नारे लगाने लगी थीं।
यमराज उनके सामने पहुंचे, तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें सुरक्षा घेरे में ले लिया और रूहों को शांत रहने का इशारा किया। यमराज ने भरोसा दिलाया कि न्याय मिलेगा।
आप बिलकुल चिंता न करें। मैं शनिदेव का भाई हूं। अगर हमारे न्याय से संतुष्टि न मिले तो हमारे भाई के पास जाने के लिए तुम्हें पूरी आजादी है।
पहले मुझे बताओ कि तुम्हारी समस्या क्या है और पृथ्वीलोक से छुटकारा मिलने के बाद भी इतनी अकुलाहट किस बात की है?
फिर कोलाहल बढ़ता, इससे पहले ही सुरक्षाकर्मियों ने शिकंजा कड़ा कर दिया था।
चारों तरफ अस्त्र-शस्त्र लिए सुरक्षाकर्मियों को देखकर रूहों ने शांत होकर अपनी बात यमराज के सामने रख दी। कहा कि उनके साथ अन्याय हो रहा है।
अच्छे कर्म और आचरण के बाद भी पहले स्वर्ग की लाइन में खड़ा किया और अब नरक की लाइन में भेजा जा रहा है। यह घोर अन्याय हम सहन नहीं करेंगे।
यमराज ने कहा कि आप लोग थोड़ी देर विश्राम करें, मैं मामले की पड़ताल कर मामले का समाधान निकालता हूं। किसी के साथ अन्याय नहीं होगा।
यमराज की भाव अभिव्यक्ति देख रूहों को भरोसा हो गया कि न्याय मिल जाएगा और माहौल एकदम शांत हो गया।
यमराज अपने दफ्तर में पहुंचे और सारी फाइलें अपनी टेबल पर तलब कीं। सारे बाबुओं को भी सामने खड़ा किया। तो पता चला कि जिस बाबू को स्वर्ग-नरक का आवंटन कर रूहों को गेट का प्रवेश पत्र जारी करना था।
उसी के यहां से सारी गड़बड़ हुई है। बाबू का काम देखने वाली रूह कुछ समय पहले ही पृथ्वीलोक से आई थी और उसका रिकार्ड देखकर उसे यह महती जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
और इस नेक आत्मा का दिमाग पृथ्वीलोक के आरक्षण में अटक गया था। फिर क्या है आनन-फानन में सबके पास कैंसिल कर यह हिसाब लगाया गया कि स्वर्ग-नरक में आरक्षण के मुताबिक हर वर्ग का प्रतिनिधित्व बराबर है या नहीं।
और फिर क्या था…कई स्वर्ग जाने की योग्यता रखने वालों को नरक में और कई नरक में जाने वाली रूहों को स्वर्ग की लाइन में लगने का पास जारी कर दिया गया।
अब बेचारी रूह पृथ्वीलोक की व्यवस्था के असर से मुक्त नहीं हो पाई थी और उसे यह खास जवाबदारी देने की जो भूल हुई थी, सो मामला कानून-व्यवस्था तक पहुंचने की नौबत आ गई थी। मामला यमराज की समझ में आ गया था।
और त्रुटि सुधार करने का फरमान जारी कर यमराज ने यमलोक में अराजकता फैलाने की जिम्मेदारी का दोषी मानते हुए उस बाबू रूह को तत्काल प्रभाव से पृथ्वीलोक वापस भेजने का फरमान जारी कर दिया।
साथ ही ऑफिस सुपरिटेंडेंट की दो वेतनवृद्धि स्थायी प्रभाव से रोकते हुए निर्देश दिए कि भविष्य में इस तरह की गलती की पुनरावृत्ति न हो। यमराज के फैसले से रूहें संतुष्ट हो गईं और धर्मराज संबोधन के साथ यमराज का जयकारा करने लगीं।
उधर नारायण-नारायण (Narayan-Narayan) जपते हुए देवर्षि अपने धाम को प्रस्थान कर गए।
धर्मराज ने देवर्षि की खुशामद कर यह वचन ले लिया कि बाबू के स्तर पर हुई भूल की चर्चा आगे न करें। खुश होकर देवर्षि ने भी मुस्कराते हुए यमलोक से विदा ले ली।
(नोट- इस पूरे मामले का पृथ्वीलोक की देवभूमि से कोई लेना-देना नहीं है।)