Khajuraho Dance Festival: पांचवा दिन, खजुराहो के मंदिरों में उतरा रंग रंगीला फागुन

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छतरपुर से राजेश चौरसिया की रिपोर्ट

खजुराहो: होली हमारी संस्कृति कवऐसा रंग-रंगीला त्यौहार है जो संपूर्ण वातावरण को ही नृत्य और संगीतमय संगीतमय कर देता है। पर्यटन नगरी खजुराहों में इसके साक्षात दर्शन हुए।

प्रख्यात भरतनाट्यम नृत्यांगना संध्या पुरेचा के नृत्य समूह ने जब होली की प्रस्तुति दी तो मानो मदमाता फागुन खजुराहो के विस्तीर्ण परिसर में उतर आया और यहां के मंदिरों में उत्कीर्ण नायिकाएं मंदिरों की दरो दीवार से निकलकर नृत्यरत हो उठी हों। सचमुच ऐसी ही अनुभूति आज यहां की गई। कथक कुचिपुड़ी की लाजवाब प्रस्तुतियां अरसे तक याद रहेंगी।

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आज समारोह के पांचवे दिन का आगाज़ कादिरी आंध्रप्रदेश से तशरीफ़ लाये डॉ बसंत किरण और उनके साथियों के कुचिपुड़ी नृत्य से हुई। परिधान से लेकर नृत भाव अंग संचालन और तैयारी के स्तर पर सौ टंच खरी इस पस्तुति को देख रसिक अभिभूत थे। आदि शंकराचार्य द्वारा रचित अर्धनारीश्वर नटेश्वर पर एक रूपक रचते हुए डॉ बसंत किरण ने यह प्रस्तुति दी।

इसे नाम दिया था – शंकरी शंकरेयम्”। यह कथा प्रकृति और पुरुष का एक साथ आने की है। जिसे वैले स्टाइल में किया गया।

सबसे पहले सभी बाधाओं को दूर करने केबलिये गणेश पूजा की गई। इसके बाद अष्टदिकपालकों की पूजा से मंच की शुद्धि की गई।इसके बाद रागमालिका और तालमालिका से सजी प्रस्तुति अर्धनारीश्वर की प्रस्तुति दी गई।

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नारद एक त्रिलोक संचारी हैं। उन्होंने देखा कि इस प्रकृति के चारों ओर सब कुछ बहुत संतुलित, बहुत खुश और आश्चर्यजनक रूप से बहुत शांतिपूर्ण दिखता है और वह यह जानने के लिए उत्सुक है कि इसका क्या कारण हो सकता है।

जवाब के लिए वे शिव पार्वती के पास जाते हैं ओर देखते हैं कि शिव पार्वती दोनों ही नृत्यरत हैं उन्हें जवाब मिल जाता है कि क्यों दुनिया इतनी शांतिपूर्ण है।

दिलचस्प बात यह है कि बसन्त किरण ने अर्धनारीश्वर के किरदार में पार्वती के लास्य और शिव से तांडव नृत्य का बखूबी प्रदर्शन किया।

प्रस्तुति का समापन आपने भावनृत्य से किया। तीनताल में काफी की होली – “रंग की पिचकारी मारी” पर उन्होंने होली और फागुन को साकार करने की कोशिश की। आपने गत भावसे तीनताल की खुबसूरती दिखाई। आपके साथ इस प्रस्तुति में आपकी शिष्या मुग्धा तिवारी, वैष्णवी देशपाण्डे, जूही सगदेव ने भी नृत्य भावों से खूब रंग भरे।

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कार्यक्रम का समापन संध्या पुरेचा और उनके समूह के भरतनाट्यम नृत्य से हुआ। संध्या जी भरत नाट्यम की विदुषी नृत्यांगनाओं में शुमार होती हैं और देश विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं। आपने अपनी प्रस्तुति का आगाज़ सनातन धर्म की तीनों धाराओं शैव, वैष्णव एवं शाक्त पर केंद्रित बैले पेश किया।

राग और ताल मालिका से सजी इस प्रस्तुति में अर्धनारीश्वर ,उमा महेश्वर स्त्रोत पर शानदार प्रस्तुति दी गई। उमा महेश्वर स्त्रोत के श्लोक रूपम देहि, जयं देहि पर उन्होंने भगवान विष्णु के द्वारिकाधीश ओर विट्ठल स्वरूप को नृत भावों से साकार किया।आपने अभंग अबीर गुलाल उदधि तरंग पर होली की भावपूर्ण प्रस्तुति दी। ब्राग आरवी ओर चतुस्त्र ताल की ये रचना खूब पसंद की गई। आपने दुर्गा शप्तशती के अर्गला स्त्रोत से शक्ति उपासना को भाव नृत्य से पेश किया।