Kissa-A-IAS: CM’s Favorite CS: CM के चहेते मुख्य सचिव की कहानी!
भारतीय प्रशासनिक सेवा में 1987 बैच के IAS अधिकारी बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने VRS ले लिया है। वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे चहेते और नजदीकी अफसरों में जाने जाते थे। वे 30 अप्रैल को रिटायर होने वाले थे। लेकिन, उसके दो महीने पहले ही उन्होंने कुर्सी छोड़ दी। माना जा रहा है कि बिहार में राजनीतिक गठबंधन वाले हालात बदलने के बाद ब्यूरोक्रेसी स्तर पर भी मानसिकता बदली है और आमिर सुबहानी के VRS को उसी से जोड़कर देखा जा रहा है। पहले चर्चा थी, कि आमिर सुबहानी को एक्सटेंशन मिल सकता है,नीतीश चाहते थे कि उनका एक्सटेंशन हो जाय। लेकिन,उनके एक्सटेंशन का मामला फंस गया। क्योंकि, राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद आमिर सुबहानी के एक्सटेंशन पर संभवतः NDA के घटक दलों में सहमति नहीं बनी। अनुमान है कि VRS के बाद वे बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या विद्युत रेगुलेटरी कमीशन के अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं।
बिहार के सिवान जिले के रहने वाले आमिर सुबहानी अपने बैच के IAS टॉपर रहे। वे जिले के बड़हरिया प्रखंड के बहुआरा गांव के रहने वाले हैं। इनकी स्कूली शिक्षा भी यहीं हुई। उन्होंने जीएम हाईस्कूल बड़हरिया से मैट्रिक तक की पढ़ाई की। उनकी कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है। उनके स्कूल के सहपाठी और डीसी इंटर कॉलेज बड़हरिया के प्राचार्य प्रोफेसर सुरेश प्रसाद यादव ने बताया कि आमिर बड़े ही शांत एवं सरल स्वभाव के छात्र रहे। पढ़ाई में वे शुरू से ही काफी तेज रहे। जब हम सभी स्कूल मैदान में वॉलीबॉल खेलने जाते थे, उस समय वे मैदान में बैठकर जनरल नॉलेज की पुस्तक पढ़ा करते थे। सभी छात्र उन्हें चिढ़ाकर कहते थे कि कलेक्टर साहब पढ़ रहे हैं, यही पढ़कर कलेक्टर बन जाएंगे। पर इन चिढ़ाने वालों को पता नहीं था कि आमिर एक दिन वास्तव में कलेक्टर बन ही जाएंगे।
आमिर सुबहानी 1987 बैच के बिहार कैडर के अपनी बैच के टॉपर रहे हैं। 1993 में पहली बार भोजपुर जिले के कलेक्टर बने फिर 1994 में पटना में जिला कलेक्टर बनाए गए। वे बिहार के मुख्य सचिव की कुर्सी तक पहुंचे और अब वीआरएस लेकर चर्चा में हैं। बिहार में आजादी के बाद से किसी मुस्लिम अधिकारी को मुख्य सचिव नहीं बनाया गया। वे पहले अधिकारी थे, जो निर्विवाद होकर यहां तक पहुंचे। संभवतः वे देश के किसी बड़े राज्य के भी पहले मुस्लिम मुख्य सचिव हैं। लेकिन, कभी आमिर सुबहानी का विरोध नहीं हुआ। लेकिन, इस बार हालात अलग थे और इसीलिए उन्हें कुर्सी छोड़ना पड़ी।
बिहार में जातिगत वोट बैंक सिर्फ नेताओं से ही जोड़कर नहीं देखा जाता, उसे अफसरों की पोस्टिंग से भी जोड़ा जाता है। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था। लेकिन, सभी को हार का मुंह देखना पड़ा। एक भी मुस्लिम उम्मीदवार जेडीयू के टिकट पर विधायक नहीं बना। चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने जमां खां को बसपा से जेडीयू में लाकर मंत्री बनाया। भाजपा ने शाहनवाज हुसैन को एमएलसी बनाकर मंत्री पद दिया। इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आमिर सुबहानी को राज्य की ब्यूरोक्रेसी का सबसे ऊंचा पद दिया।
आमिर सुबहानी की खासियत रही कि सरकार चाहे लालू यादव की रही हो या नीतीश कुमार की, सुबहानी को हमेशा अच्छी पोस्टिंग मिली और वे सबके प्रिय भी बने रहे। नीतीश कुमार के चहेते अफसरों में गिने जाने की वजह से कई बार हटाए भी गए। राबड़ी देवी जब मुख्यमंत्री थी उस समय आमिर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। जब नीतीश कुमार ने 2005 में राज्य की कमान संभाली, तो दो माह में आमिर को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस बुला लिया गया था। उन्हें बिहार कम्फेड का चेयरमैन बनाया गया। 2008 में आमिर को अल्पसंख्यक कल्याण विभाग का सचिव बनाया गया और अक्टूबर 2009 में गृह सचिव बनाया। लगातार चार साल तक गृह सचिव पद पर रहने के बाद उन्हें सामान्य प्रशासन विभाग में भेजा गया।
सुबहानी को 2010 के विधानसभा चुनाव के समय गृह सचिव के पद से हटा दिया था। लेकिन, 2010 में जब नीतीश कुमार की सरकार बनी तो सुबहानी फिर से गृह सचिव बना दिए गए। 2015 के विधानसभा चुनाव में भी चुनाव आयोग ने सुबहानी को गृह सचिव के पद से हटाया था। चुनाव बाद नीतीश कुमार जब 2015 में महागठबंधन के साथ सत्ता में लौटे तो आमिर को फिर गृह सचिव बनाया गया। बिहार में जब जीतनराम मांझी मुख्यमंत्री बने, तब कुछ समय के लिए आमिर सुबहानी को गृह सचिव के पद से हटाया था। किंतु, कुर्सी पर वापस आते ही नीतीश कुमार ने उन्हें फिर से गृह सचिव बना दिया। मुख्य सचिव बनने से पहले सुबहानी राज्य के विकास आयुक्त पद पर रहे। अभी भी उनका समय ख़त्म नहीं हुआ। वीआरएस के बावजूद उन्हें जल्दी किसी बड़े पद पर देखा जा सकता है। क्योंकि, आमिर सुबहानी थकने वाले अधिकारियों में नहीं हैं।