Kissa-A-IAS: From Slum To An IAS: Story Of A Divyang Girl: झुग्गी से निकलकर ऐसे IAS बनी यह लड़की

16 फ्रैक्चर और 8 सर्जरी के बाद भी हौसला नहीं छोड़ा

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Kissa-A-IAS: From Slum To An IAS: Story Of A Divyang Girl: झुग्गी से निकलकर ऐसे IAS बनी यह लड़की

Kissa-A-IAS: From Slum To An IAS: Story Of A Divyang Girl: झुग्गी से निकलकर ऐसे IAS बनी यह लड़की

प्रशासनिक सेवाओं में आने वालों को लेकर बरसों से एक धारणा बनी है कि ये हाई प्रोफाइल सर्विस है और इसमें उन लोगों का ही चयन होता है, जिनका बैकग्राउंड हाई प्रोफाइल होता है! कई बार ये सही भी लगता है, पर हर बार नहीं! कुछ कैंडिडेट ऐसे अपवाद होते हैं, जो हाई प्रोफाइल वाली धारणा को खंडित कर ये बताते हैं कि लगन, मेहनत और जुनून ही UPSC परीक्षा पास करने का सबसे बड़ा कारण होता है। इस बार एक ऐसी ही लड़की की कहानी जो शारीरिक रूप से कमजोर होने के साथ आर्थिक और पारिवारिक रूप से भी सक्षम नहीं थी! फिर भी उसने पहले अटेम्प्ट में UPSC में झंडा गाड़ा और IAS बनी।

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राजस्थान के पाली इलाके की रहने वाली उम्मुल खेर जन्मजात से पीड़ित थीं। लेकिन, उन्होंने कभी इस कमजोरी को अपने आप पर हावी नहीं होने दिया। वे हड्डियों की एक बीमारी ‘बोन फ्रेजाइल डिसऑर्डर’ से पीड़ित हैं। इस बीमारी से पीड़ित होने के चलते उनकी हड्डियां बहुत कमजोर थीं। कई बार उनकी हड्डियां टूट जाती थीं। इस कारण उन्होंने 16 फ्रैक्चर और 8 सर्जरियों को झेला। उन्होंने बीमारी के साथ गरीबी और परिवार में बिखराव देखते हुए कई परेशानियों का सामना किया। इसके बावजूद उम्मुल ने अपने अंदर का जुनून कमजोर नहीं पड़ने दिया। उन्होंने अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया और UPSC की परीक्षा दी। उनके दृढ निश्चय का ही नतीजा था कि UPSC-2020 में उन्होंने 420वीं रैंक पाई और सपना साकार किया।

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उम्मुल खेर जब छोटी थी, तभी उनके पिता गुजर-बसर के लिए दिल्ली आ गए थे। पर, यहाँ उनकी जिंदगी मुश्किलों से घिर गई। फिर भी उनके पिता ने हिम्मत नहीं हारी और फेरी लगाकर परिवार का पेट भरा। उनका परिवार दिल्ली के निजामुद्दीन में झुग्गी-झोपड़ी में रहता था। यहाँ भी उनके परिवार को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा। 2001 में तो यहां की सारी झुग्गियों को उजाड़ दिया गया। जिस वजह उम्मुल का परिवार भी सड़क पर आ गया। निजामुद्दीन से उनके पिता त्रिलोकपुरी रहने आ गए। तब उम्मुल 7वीं में पढ़ती थीं। पढ़ाई पूरी करने के लिए उम्मुल ने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। ट्यूशन से जो पैसे मिलते उससे स्कूल की फीस दिया करती। उन्हें पढ़ाई का मोल पता था,‌ इसलिए उन्होंने अपनी पढ़ाई पर खासा जोर दिया। 10वीं में उन्होंने आर्ट वर्ग में टॉप किया।

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जब वे स्कूल में थीं, तब उनकी मां का निधन हो गया। पिता ने दूसरी शादी कर ली, सौतेली मां को उम्मुल का पढ़ना-लिखना पसंद नहीं था। सबने कोशिश की कि उम्मुल पढ़ाई छोड़ दें। लेकिन, उन्होंने पढ़ाई तो नहीं छोड़ी, घर जरूर छोड़ दिया और त्रिलोकपुरी में ही एक छोटा सा कमरा किराए पर लेकर रहने लगीं। इस समय वे 9वीं कक्षा में थीं। इस कम उम्र में अलग रहकर उन्होंने ट्यूशन के दम पर ही अपना और अपनी पढ़ाई का खर्च उठाया। उम्मुल एक दिन में आठ-आठ घंटे बच्चों को पढ़ाती थीं।

उम्मुल की स्कूली शिक्षा दिव्यांग बच्चों के स्कूल से हुई। क्योंकि, यहां पढ़ाई की फीस नहीं लगती थी। आगे की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप हासिल की। उम्मुल को 10वीं में 91% और 12वीं में 90% अंक मिले। इसके बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज से साइकोलॉजी में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद जेएनयू से एमए किया और यहीं से एमफिल का फॉर्म भर दिया। 2014 में उम्मुल का जापान के इंटरनेशनल लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए चयन हो गया। 18 साल के इतिहास में सिर्फ तीन भारतीय इस प्रोग्राम के लिए सेलेक्ट हुए थे और उम्मुल ऐसी चौथी भारतीय थीं। एमफिल के बाद उम्मुल ने जेआरएफ क्लियर किया और यहां से उनके पैसे की समस्या को लगाम लग गई।

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जेआरएफ के साथ ही उम्मुल IAS की तैयारी करने लगीं। उनके अभी तक के जीवन में उन्होंने पूरा समय केवल पढाई को ही दिया था। वे न सिर्फ पढ़ने में अच्छी थीं, उनकी मेहनत का भी कोई जोड़ नहीं था। शायद यही कारण था कि जब उम्मुल ने अपने पहले प्रयास में UPSC की परीक्षा 420 वीं रैंक के साथ पास की, तो किसी को हैरानी नहीं हुई। इसलिए कि उम्मुल का जन्म ही शायद सफलता की नई कहानियां गढ़ने के लिए हुआ है। उम्मुल का संघर्ष दिखाता है कि जरा सी परेशानी में लोग हार मान लेते हैं। वहीं उम्मुल खेर जैसे भी लोग हैं, जो मुसीबत में भी हौसला नहीं खोते।

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