Kissa-A-IAS: IAS Rishita Gupta: परिस्थिति ने डॉक्टर नहीं बनने दिया, बाद में बनी IAS 

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Kissa-A-IAS: IAS Rishita Gupta: परिस्थिति ने डॉक्टर नहीं बनने दिया, बाद में बनी IAS 

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जीवन मुश्किलों का सफर है, हर लक्ष्य की राह में कठिनाइयां आती हैं, लेकिन जो कठिनाइयों से हार नहीं मानता और लक्ष्य पर अडिग रहता है, वही आगे चलकर सफल होता है। यूपीएससी क्रेक करके IAS बनना भी मुश्किल सफर है जिसे पार कर लेना, किसी सपने के सच होने जैसी बात है। वो भी ऐसी स्थिति में जब किसी ने डॉक्टर बनना चाहा हो, पर बन नहीं सकी, वो पहली ही कोशिश में IAS बन जाए।

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दरअसल, रिशिता गुप्ता के पिता की इच्छा थी, कि उनकी बेटी डॉक्टर बने। पिता के इस सपने को बेटी ने भी लक्ष्य बना लिया, लेकिन नियती को कुछ और ही मंजूर था। कैंसर से पिता की मौत ने उनसे यह सपना छीन लिया। क्योंकि, वे वो प्रतियोगी परीक्षा पास नहीं कर सकी, जो उन्हें डॉक्टर बनने की राह पर ले जाता। इसके बाद रिशिता ने उससे कुछ आगे का सोचा और यूपीएससी का सफर तय किया।

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रिशिता जीवन को अनिश्चितता का दूसरा नाम मानती हैं। शायद इसलिए, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में जो सोचा या योजना बनाई, हुआ उससे बहुत अलग। पर, संघर्षों से न घबराने वाली रिशिता ने जीवन के हर बदलाव को स्वीकारा और कभी शिकायत नहीं की, कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ! शायद इसीलिए उन्होंने अंत में ऐसी सफलता पायी की सबकी आंखें फटी रह गई। उन्हें यह तो उम्मीद थी कि सफल हो जाएंगी पर रैंक होल्डर बनेंगी, ये उन्होंने कभी नहीं सोचा था।

रिशिता ने सफलता का ऐसा उदाहरण पेश किया, जो इस फील्ड में आने वालों के लिए सबक है। घर में उन्हें पढ़ाई का माहौल मिला, इस वजह से वे पढ़ाई में तेज रहीं। उन्होंने 11वीं में साइंस विषय चुना। लेकिन, इसके बाद उन्हें विषय बदलना पड़ा। क्योंकि, दिल्ली के अच्छे कॉलेजों में आसानी से एडमीशन नहीं मिलता और सामान्यतः कटऑफ हाई जाता है। उस साल की मेरिट लिस्ट के हिसाब से रिशिता के अंक अच्छे नहीं आए थे और मेरिट हाई गई। मजबूरी में रिशिता को वो करना पड़ा जो उन्होंने कभी प्लान नहीं किया था। उन्होंने रिशिता ने अंग्रेजी साहित्य से ग्रेजुएशन किया।

विषय और स्ट्रीम चले जाने का दुख था, पर रिशिता इस दुख को पकड़े नहीं बैठी रहीं और उन्होंने 2015 में ही तय कर लिया था, कि वे सिविल सर्विस के क्षेत्र में कैरियर बनाएंगी। गोल तय हो जाने के बाद अगला स्टेप आता है तैयारी। उन्होंने अपने मन में तो यह ठान ही लिया था, साथ ही अपनी मां से भी कह दिया कि सिलेक्ट होऊंगी तो पहली बार में वरना नहीं। रिशिता का पक्का इरादा ही था कि यह कमिटमेंट सच साबित हुआ।

दरअसल, उन्होंने अपने पहले अटेम्प्ट को ही आखिरी माना और जो गलतियां लोग करते थे, उनसे भी सीखा। रिशिता ने जितना हो सका हर एंगल को कवर करके तैयारी की। किताबें सीमित रखीं पर बार-बार उन्हें दोहराया। कांसेप्ट्स हमेशा क्लियर रखे और बेस मजबूत करने के लिए सबसे पहले एनसीईआरटी की किताबें पढ़ीं। रिशिता मानती हैं कि यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के लिए बहुत संसाधनों की जरूरत नहीं है। एक लैपटॉप, नेट कनेक्शन, कुछ किताबें, प्रिंटर और संभव हो तो कोचिंग के एनुअल नोट्स। बस इतना ही तैयारी के लिए काफी है। क्योंकि, आजकल ऑनलाइन लगभग सारी सामग्री उपलब्ध है। इसके अलावा ऑप्शनल विषय चुनते समय अपने दिल की सुनें और पूरी तैयारी स्ट्रेटजी बनाकर करें नोट्स बनाते चलें और उतना ही पढ़ें जितने को रिवाइज़ कर सकें। ऐसे टॉपिक्स या किताबें पढ़ने से कोई लाभ नहीं जिन्हें रिवाइज़ न किया जा सकता हो। न्यूज़पेपर और मंथली मैगज़ीन जरूर पढ़ें।

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साथ ही रिशिता ने लिखने के अभ्यास पर बहुत जोर दिया। उन्होंने मेन्स पेपर के पहले 15 दिन तक लगभग रोज़ मॉक टेस्ट दिए, जिससे उनकी स्पीड बहुत सुधरी। इन सब तैयारियों का फायदा रिशिता को पहली ही बार में सफलता पाकर हुआ। यूपीएससी के कैंडिडेट्स को रिशिता यही सलाह देती हैं, कि रिजल्ट्स पर फोकस न करने की जगह केवल तैयारियों पर ध्यान दें। अगर तैयारियां अच्छी होंगी तो रिजल्ट अच्छा आना स्वाभाविक है।

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4 अगस्त 1996 को दिल्ली में जन्मी रिशिता का रुझान हमेशा से पढ़ाई में रहा है। परिवार ने भी उनकी आकांक्षाओं का समर्थन करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसे अपना लक्ष्य पाने के लिए जरूरी माहौल और संसाधन दिए। इसी का नतीजा था कि रिशिता को यूपीएससी की मुख्य परीक्षा में 879 अंक और इंटरव्यू में 180 अंक मिले। उन्हें कुल 1059 अंक मिले, जो उनके असाधारण प्रदर्शन का प्रमाण है।

इस मुश्किल परीक्षा में उनकी सफलता उनके अडिग समर्पण, फोकस और लचीलेपन का प्रमाण है। उन्होंने खुद को एक अनुशासित लक्ष्य के लिए समर्पित किया, कठिन विषयों को पीछे छोड़ा और सफलता पाने के लिए अपनी रणनीतियों में लगातार सुधार किया। अपनी शैक्षणिक क्षमताओं के अलावा, चुनौतियों को संभालने और दृढ़ निश्चयी बने रहने की उनकी काबलियत ने उन्हें कठोर परीक्षा प्रक्रिया की जटिलताओं को दूर करने में मदद की।

मेहनत और काबिलियत का नतीजा यह निकला कि उन्होंने अपनी पहली ही कोशिश में यूपीएससी परीक्षा क्लियर कर ली। उनकी यूपीएससी-2018 की परीक्षा में 18वीं रैंक आई। जिस रिशिता को डॉक्टर बनने का मौका नहीं मिला था, वो आईएएस बन गई वो भी अच्छी रैंक के साथ। 2019 बैच की IAS रिशिता गुप्ता को AGMUT (अरुणाचल, गोआ, मिजोरम, यूनियन टेरिटरी) कैडर अलॉट किया गया। रिशिता फिलहाल दिल्ली के शाहदरा की जिला मजिस्ट्रेट / उपायुक्त (डीसी) के पद पर कार्यरत हैं।