Kissa-A-IAS:कोई इतने संघर्ष के बाद IAS बने, तो उसे सलाम तो बनता है!
बहुत पुरानी कहावत है कि पूत के पांव पालने में नजर आ जाते हैं। ये कहावत किस हद तक सही है, इस बात का तो दावा नहीं किया जा सकता, पर गोविंद जायसवाल के मामले में ये कहावत बिल्कुल सही बैठती है। उन्होंने 2006 में 22 साल की उम्र में UPSC की परीक्षा में 48 वीं रैंक हासिल की। लेकिन, उनकी इस सफलता के पीछे मेहनत और उससे ज्यादा संघर्ष छुपा है। यह संघर्ष सिर्फ उनका ही नहीं, उनके पिता रहा। पैरों से चलाने वाले एक रिक्शा चालक का बेटा जब IAS बने, तो समझा जा सकता है कि संघर्ष की इंतहा क्या होगी।
गोविंद का परिवार वाराणसी में रहता था। गोविंद के पिता नारायण के पास 1995 में 35 रिक्शे थे, जिन्हें वे किराये पर देकर परिवार पालते रहे। लेकिन, उनकी पत्नी इंदू की ब्रेन हेमरेज की बीमारी के इलाज के लिए उन्हें अपने 20 रिक्शे बेचने पड़े। फिर भी वे पत्नी को बचा नहीं सके और 1995 में ही उनका निधन हो गया। उसके बाद भी उनकी स्थिति लगातार बिगड़ती गई। उस समय गोविंद 7वीं कक्षा में थे। कई बार गोविंद और उनकी तीनों बहनें और पिता सिर्फ सूखी रोटी खाकर भी गुजारा करते थे। बाद में बहनों की शादियों में रिक्शे बिकते गए।
गोविंद ने जब 2004-2005 में UPSC की तैयारी के लिए दिल्ली जाने का सोचा तो पैसे की कमी सामने आ गई। लेकिन, बेटे की क़ाबलियत पर उन्हें भरोसा था और उन्होंने बेटे का सपना पूरा करने के लिए बाकी बचे रिक्शे बेच दिए और एक रिक्शा अपने चलाने के लिए रख लिया। पिता ने बेटे की खातिर रिक्शा मालिक से रिक्शा चालक बनना स्वीकार कर लिया। गोविंद ने भी अपनी पूरी मेहनत पढ़ाई में लगा दी और साल 2006 में UPSC के पहले ही अटेंप्ट में 48 वीं रैंक हासिल की। उनकी इस सफलता ने उनके पिता का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। गोविंद जायसवाल ने एक साक्षात्कार में कहा था कि वे एपीजे अब्दुल कलाम से काफी प्रभावित हैं। वे उनकी किताबें पढ़ा करते हैं। हिंदी मीडियम से सफलता हासिल करने वाले इस IAS ने कहा था कि महात्मा गांधी के बाद कलाम ने हमें सपने देखने की ताकत दी। गोविंद जायसवाल फिलहाल उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में निदेशक के पद पर पदस्थ हैं।
गोविंद जायसवाल को सफलता के इस मुकाम तक पहुंचाने में उनके पिता और बहनों का काफी योगदान रहा। गोविंद की पढ़ाई पूरी करने के लिए उनके पिता नारायण जायसवाल ने कई त्याग किए और संघर्ष की नई दास्तां लिखी। गोविंद के पिता ने अपने चारों बच्चों की पढ़ाई में कोई कमी नहीं रखी। उस समय गोविंद का पूरा परिवार काशी के अलईपुरा की एक कोठरी में रहता था। बताया जाता है कि गोविंद अपने घर में कानों में रुई लगाकर पढ़ा करते थे, ताकि पड़ोस में चलने वाले प्रिंटिंग मशीन और जेनरेटर की आवाज से उनका ध्यान भंग न हो।
पिता ने अपनी तीनों ग्रेजुएट बेटियों की शादी में अपने बचे हुए रिक्शे भी बेच दिए। पिता ने अपने बेटे को 40 हज़ार रुपए देकर दिल्ली भेजा और आईएएस बनने का सपना लेकर गोविंद जायसवाल दिल्ली आ गए। पिता के पास वाराणसी में थोड़ी जमीन थी और उन्होंने वो जमीन अपने बेटे की पढ़ाई के लिए बेच दी। गोविंद के पिता रिक्शा चलाते थे और उनका 5 सदस्यों का परिवार बेहद ही तंगहाली में जिंदगी गुजार रहा था। बताते हैं कि गोविंद की बड़ी दीदी ममता जब स्कूल जाती, तो लोग ताने देते कि तुम्हे तो दूसरों के घर में बर्तन धोने चाहिए, जिससे दो पैसे कमा सको, पढ़ लिखकर क्या करोगी! गोविंद से भी लोग कहा करते थे कि कितने बड़े बनोगे तुम! दो रिक्शा ज्यादा खरीद लोगे खुद भी चलाओगे और दूसरों से भी चलवाओगे। बचपन में लोगों के ताने सुनकर भी गोविंद कभी टूटे नहीं और कम उम्र में ही तय कर लिया था कि बड़ा होकर कुछ बड़ा ही करना है। गोविंद अपने संघर्ष के दिनों को भूलना भी नहीं चाहते, इसलिए उन्होंने अलईपुरा की एक कोठरी में घर का कुछ सामान अभी भी रखा हुआ है, वे उसका किराया देते हैं।
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पढ़ाई के लिए परिवार ने बहुत कुछ सहा
गोविंद जायसवाल ने अपनी शुरुआती पढ़ाई वाराणसी के उस्मानपुरा में एक सरकारी स्कूल से की। उसके बाद उन्होंने वाराणसी की हरिश्चंद्र यूनिवर्सिटी से गणित में ग्रेजुएशन किया। 2006 में गोविंद यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली आ गए। गोविंद को पॉकेट मनी भेजने के लिए उनके पिता ने सेप्टिक और पैर में घाव होने के बावजूद रिक्शा चलाना बंद नहीं किया। गोविंद को पैसे भेजने के लिए उनके पिता कई बार खाना नहीं खाया। उन्होंने अपने घाव का इलाज तक नहीं करवाया। गोविंद भी दिल्ली जरूर गए, लेकिन उन्होंने कोचिंग नहीं की।
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वे वहां बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते और पैसे बचाने के लिए एक टाइम का टिफिन और चाय भी बंद कर दी। इसी संघर्ष और मेहनत का नतीजा था कि उन्होंने पहले ही प्रयास में यूपीएससी में सफलता पा ली। उनकी पत्नी चंदना एक IPS ऑफिसर हैं। दोनों की अरेंज्ड मैरिज हुई। यह रिश्ता गोविंद के जीजाजी ने तय किया था। गोविंद को चंदना की नानी देखने आई थी। उन्हें गोविंद का परिवार बहुत पसंद आया था और फिर दोनों की शादी कर दी गई।