ये शीर्षक विश्वास करने लायक भले न हो, पर है सही! किसी वेटर का अपनी लगन के बल पर IAS बन जाना आसान बात नहीं है! इसलिए कि इस वर्ग का व्यक्ति जिन मुश्किल हालात में जीता है, उससे बहुत बड़े लक्ष्य को पाने के काबिल नहीं समझा जाता। लेकिन, इस मिथक को के जयगणेश ने खंडित कर दिया। उन्होंने साबित कर दिया कि यदि इच्छाशक्ति प्रबल हो, तो IAS बनना मुश्किल नहीं है।
अपने दृढ़ संकल्प के बल पर उन्होंने IAS बनने का वो सपना पूरा किया जो किसी भी दृष्टि से आसान नहीं था। इस सपने को साकार करने के लिए वे कई संकट और पड़ाव से गुजरे। लेकिन, के जयगणेश ने साबित कर दिया कि लक्ष्य के लिए निरंतर प्रयास करना ही अंतिम सत्य है। ये बात अलग है कि के जयगणेश ने छोटी-छोटी नौकरी करते हुए अपनी पढाई जारी रखी और वो सब पा लिया जो हर युवा का ख्वाब होता है।
तमिलनाडु के उत्तरीय अम्बर के पास स्थित वेल्लोर जिले के एक छोटे से गांव विनवमंगलम के एक गरीब परिवार में जन्में के जयगणेश के पिता एक फैक्ट्री में काम करके परिवार पालते थे। चार बच्चों में जयगणेश सबसे बड़े थे और शुरू से ही पढाई-लिखाई में अच्छे थे। तमिलनाडु के इस छोटे से गांव से ही जयगणेश ने अपनी शुरूआती पढाई की। उन्होंने अपने गांव के स्कूल में 8वीं तक पढ़ाई की और 10वीं पास करने के बाद जयगणेश ने एक पॉलिटेक्निक कॉलेज में दाखिला ले लिया। लेकिन, परिवार की आर्थिक परेशानी और पढ़ाई के लिए पैसा जमा करने के लिए कुछ न कुछ करते रहे।
उन्होंने 12वीं की परीक्षा 91% से पास की। इसके बाद उनको तांथी पेरियार इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में एडमिशन मिल गया।
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वे गांव से चेन्नई आकर पढ़ने लगे। उन्होंने यहां मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बाद में उनकी एक कंपनी में नौकरी लग गई। यहां उन्हें 2500 रुपए वेतन मिलता था। किंतु, वहां जयगणेश का मन नहीं लगा। इंजीनियर बनने के बाद भी जब अच्छी नौकरी नहीं मिली, तो वे सत्यम सिनेमा में बिलिंग क्लर्क बन गए। कई बार इंटरवल में वेटर के रूप में सर्व भी किया।
फिर उन्हें अहसास हुआ कि इस वेतन पर अपना परिवार चलाना आसान नहीं है। इसके सहारे वे अपने परिवार का गुजारा नहीं कर सकते। उन्होंने दिमाग में कुछ और ही लक्ष्य तय कर रखा था। विचार आया कि क्यों न सिविल सर्विसेज की तैयारी की जाए। इस सोच के पनपने के बाद उन्होंने तैयारी शुरू कर दी और इसकी परीक्षा भी दी। लेकिन, सफल नहीं हुए। उन्हें तो खुद का खर्च चलाना भी मुश्किल होने लगा।
कोई और रास्ता न देख उन्होंने एक छोटे से होटल में वेटर की नौकरी कर ली। दिन में वेटर का काम करते और रात में UPSC की तैयारी! इस दौरान उन्होंने इंटेलीजेंस ब्यूरो की भी परीक्षा दी और वे उसमें सफल भी हो गए। सिलेक्शन तो हो गया, पर दिमाग में इस बात की उहापोह शुरू कि नौकरी ज्वाइन करें या एक बार फिर UPSC दी जाए। फाइनल ये हुआ कि नौकरी का मोह छोड़कर 7वीं बार UPSC दी जाए। आश्चर्यजनक रूप से के जयगणेश का आत्मविश्वास सही साबित हुआ और उन्होंने सिविल सर्विस की इस परीक्षा में 156वीं रैंक पाई।
UPSC में सिलेक्शन के बाद जय गणेश का कहना था कि मैंने खुद पर विश्वास खोए बिना अपने सपने को साकार किया। निःसंदेह इसके लिए कड़ी मेहनत भी की है। लेकिन, मेरे लक्ष्य के साथ जुड़ा असली काम अब शुरू होगा। मैं गरीबी मिटाने और सभी को शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए कुछ करना चाहता हूँ। मैंने देख लिया कि शिक्षा ही गरीबी मिटाने का आसान उपाय है। मेरी इच्छा है कि केरल की तरह तमिलनाडु भी साक्षर राज्य बन जाए। अपना लक्ष्य पाने पर प्रतिक्रिया के बारे में जयगणेश का कहना है कि 2008 में जब UPSC का नतीजा आया, तो मुझे खुद पर ही विश्वास नहीं हुआ। 700 सिलेक्ट परीक्षार्थियों में मुझे 156वीं रैंक मिली, जो मेरे जैसे व्यक्ति के लिए बड़ी बात थी। मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मैंने कोई बहुत बड़ा युद्ध जीत लिया हो, जो कई सालों से चल रहा था। अब जाकर मैंने राहत की सांस ली।
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जय गणेश ने UPSC की परीक्षा छह बार दी और असफल रहे। कभी प्रीलिम्स में अटक जाते, कभी फाइनल में, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। परीक्षा में असफलता से वे कई बार हताश जरूर हुए, पर हौंसला नहीं खोया। आत्मविश्वास से मिली हिम्मत उन्हें फिर खड़ा कर देती थी। इसी का नतीजा रहा कि 7वीं बार वे परीक्षा में अपने सपने को साकार करने में सफल रहे। ये सिर्फ प्रेरणादायक कहानी नहीं, एक अनथक संघर्ष की ऐसी दास्तान है, जो लक्ष्य के प्रति जुझारूपन दर्शाती है।