Krishna Janmbhumi Dispute : सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जन्मभूमि परिसर के सर्वे पर रोक लगाई!
New Delhi : मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद के विवादित परिसर के सर्वे पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से लगे हुए शाही ईदगाह मस्जिद में कमिश्नर ने सर्वे का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने शाही ईदगाह के सर्वे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ मस्जिद समिति की याचिका पर जवाब मांगा है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 14 दिसंबर 2023 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के विवादित स्थल पर सर्वे की मंज़ूरी दी थी। एडवोकेट कमिश्नर के जरिए सर्वे कराने का आदेश दिया था। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। हिंदू पक्ष का दावा है कि इस जगह पर भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर था। मुगल काल में मंदिर को तोड़कर यहां मस्जिद बना दी गई। प्रतिवादी, शाही ईदगाह मस्जिद समिति और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का तर्क है कि शाही ईदगाह मस्जिद कटरा केशव देव में 13.37 एकड़ भूमि के अंतर्गत नहीं आती। उनका कहना है कि याचिकाकर्ताओं का यह दावा कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान मस्जिद के नीचे है, बिल्कुल निराधार है। इसमें दस्तावेजी सबूतों का अभाव है। मस्जिद को हटाने की हिंदू पक्ष की मांग पर मुस्लिम पक्ष ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ की दलील देता है।
कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद
ये पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर है. इस जमीन के 11 एकड़ में श्रीकृष्ण मंदिर है। 2.37 एकड़ हिस्सा शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। हिंदू पक्ष यहां श्रीकृष्ण जन्मभूमि होने का दावा करता है. इस पूरे विवाद की शुरुआत 350 साल पुरानी है, जब दिल्ली की गद्दी पर औरंगजेब का शासन था।
क्या है आधार हिंदू पक्ष के दावे का?
हिंदू पक्ष ने 15 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि UP सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और शाही ईदगाह मस्जिद समिति को तुरंत अतिक्रमण की गई जमीन को खाली करना चाहिए. याचिका में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट को ये जमीन जल्द से जल्द सौंपे जाने की अपील की गई है. इसके अलावा कृष्ण भूमि से जुड़ी 13.37 एकड़ के परिसर में मुस्लिम पक्ष के प्रवेश करने पर रोक लगाने की मांग भी की गई है. हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कोर्ट को बताया है कि मस्जिद की दीवारों पर जो कलश बना है, वो हिंदू शैली का है। मस्जिद के पिलर के टॉप पर कमल बना है। हिंदू पक्ष ने मस्जिद को हटाने की मांग की है।
मराठों ने बनवाया था मंदिर
मस्जिद बनने के बाद ये जमीन मुसलमानों के हाथ में चली गई। करीब 100 साल तक यहां हिंदुओं की एंट्री पर बैन लगा था। फिर 1770 में मुगल-मराठा युद्ध हुआ। जंग में मराठों की जीत हुई और मराठों ने मंदिर बनवाया। इसका नाम केशवदेव मंदिर हुआ करता था। इस बीच भूकंप की चपेट में आकर मंदिर को नुकसान हुआ।
नीलाम की थी अंग्रेजों ने जमीन
1815 में अंग्रेजों ने जमीन को नीलाम कर दिया, जिसे काशी के राजा ने खरीद लिया था। हालांकि, काशी के राजा मंदिर नहीं बनवा सके। ये जमीन खाली पड़ी रही। अब मुस्लिमों ने दावा किया कि जमीन उनकी है। मशहूर उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने 1944 में ये जमीन खरीद ली. जमीन का सौदा राजा पटनीमल के वारिसों के साथ हुआ था। इस दौरान देश आजाद हुआ। 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बना। जिसके बाद ये जमीन ट्रस्ट को दे दी गई।
मंदिर का निर्माण 1953 में फिर शुरू हुआ
1953 में ट्रस्ट के पैसे से जमीन पर मंदिर का निर्माण शुरू किया, जो 1958 में बनकर तैयार हुआ। 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान नाम से नई संस्था बनी। इसी संस्था ने 1968 में मुस्लिम पक्ष के साथ एक समझौता किया। इसमें कहा गया कि जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों रहेंगे। हालांकि, इस संस्था का जन्मभूमि पर कोई कानूनी दावा नहीं है। वहीं, श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट का कहना है कि वह इस समझौते को नहीं मानता।