

Kumar Vishwas: कवि,कथावाचक ,नेता कुमार की बढ़ती कीर्ति,घटता विश्वास
रमण रावल
वह भारत के ऐसे विशिष्ट व्यक्ति हैं, जो अलग-अलग समय पर भिन्न-भिन्न भूमिकायें निभा लेते हैं। घाट-घाट का पानी पीकर,कभी गली-गली आवाज का जादू दिखाकर, कभी राजनीतिक मंचों पर जोशो-खरोश से वादे-भुलावे देकर,कभी धार्मिक आख्यान देकर,कभी राम नाम का अलख जगाकर,कभी प्रेम रस का दरिया बहाकर तो कभी राष्ट्र प्रेम के गीत गाकर वे अपने को तराशते-मांजते रहे। आज वे अपने व्यक्तित्व की चमक से सात समंदर पार तक आंखें चुंधिया रहे हैं । बतकही के धनी,मंच कोई भी हो, राजनीतिक भाषण का तड़का लगाकर तालियां बटोरने में उन्हें उस्तादी हासिल है। अनेक जोड़ से बेजोड़ बनने तक के सफर में उन्होंने कभी पीछे देखा भी तो इसलिये कि कितने लोग कतार में हैं, कितने उन्हें धकियाना चाहते हैं,कितने उन्हें आगे की ओर सम्मान से धका रहे हैं और कितने दोनों टांगों से खींचकर पटकनी देना चाह रहे हैं-यह जानने के लिये। नाम है कुमार विश्वास और काम है जो दिखता है, वो बिकता है वाले इस युग में अपने माल को ऊंची बोली पर बेचने की हर कला में पारंगत होकर अपने समय का संपूर्ण दोहन करने में दक्षता का भरपूर उपयोग करना।
कुमार विश्वास इस समय सार्वजनिक जीवन के सबसे चर्चित व्यक्तियों में एक हैं। वे स्वतंत्र भारत के ऐसे हिंदी कवि हैं,जिसने नीरज,काका हाथरसी,निर्भय हाथरसी,दुष्यंत कुमार,मुक्तिबोध,माया गोविंद,अशोक चक्रधर, प्रदीप,शैलेंद्र आदि से कहीं अधिक लोकप्रियता पाई। उन सब के कुल धन से कहीं अधिक धन-संपदा अर्जित की। उनसे कहीं ज्यादा कार्यक्रमों में भाग लिया। उन से कई गुना अधिक लोगों तक पहुंच बनाई। फिर भी बहुत कुछ ऐसा रह गया, जो उनके समकक्ष खड़ा कर सके। यह और बात है कि कुमार को इन सब बिंदुओं की चिंता भी नहीं है। चिंता तो उनके व्यक्तित्व में संभवत है भी नहीं ।वे तो दिन-रात इस चिंतन में लगे रहते हैं कि किस तरह से अपने आकर्षण को बहुगुणित करें। अपना भंडार भरें और डंके की चोट पर इसे स्वीकारें और दावा करें कि उनके जितना महंगा,दुर्लभ और सर्वग्राह्य कवि कोई दूसरा नहीं हुआ । वे स्वयं बताते हैं कि वे अकेले और पहले ऐस कवि हैं, जो चार्टर्ड प्लेन से बुलाये जाते हैं। जिनके लिये विदेशी उम्दा,महंगी कारें लेने-छोड़ने आती हैं। वे पांच-सात सितारे होटल के सूईट में ठहरते हैं। वे अपना पारिश्रमिक चेक से लेते हैं और आयकर अदा करते हैं। वे 3 से 6 महीने तक बुक रहते हैं। कुल मिलाकर यह कि वे अपनी शर्तों पर काम करते हैं। कुमार विश्वास को यह सब करने का अधिकार है। वे अपने काम के लिये कितनी रकम लें, क्या शर्तें हो, यह उनका हक है। चूंकि लोग उसे मानते हुए उन्हें कार्यक्रम के लिये बुलाते हैं तो किसी को एतराज,आलोचना या परेशान होने का अधिकार ही नहीं । यह सोलह आने सच है, फिर भी लोक जीवन के अपने कुछ नीति-नियम-तकाजे,मर्यादा होती है तो कहने वाले कहने से चूकते भी नहीं । इनमें सबसे प्रमुख बात तो यह कि वे किसी का भी माजना पटकने से नहीं चूकते । कहा तो यह भी जाता है कि वे कविता पाठ या राम कथा के लिये बुलाने पर भी राजनीतिक भाषण देने से बाज नहीं आते । सीधा-सा मतलब यह हुआ कि कविता कम सुनाते हैं,
चुटकुले,किस्से,कहानी,टिप्पणी अधिक करते हैं। यह सब भी चूंकि आयोजक व श्रोता बरदाश्त करते हैं तो यह सिलसिला जारी है। दूसरा मसला यह भी है कि इन दिनों वे कविता पाठ से कहीं अधिक राम कथा में व्यस्त रहते हैं। चूंकि,इसमें धन भी ज्यादा है, नाम भी, लोकप्रियता के अवसर भी । यह और बात है कि वे इन धार्मिक,आध्यात्मिक मंचों पर भी राजनीतिक टीका से बाज नहीं आते। खासकर अपने पुराने राजनीतिक मित्र,दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल के बारे में बोलना,कटाक्ष करना, ताने-उलाहने देना,आलोचना करना,उन्हें भ्रष्ट करार देना जारी रखे हुए हैं। जबकि लोग वहां राम कथा सुनने आये होते हैं। आम तौर पर यह होता है कि किसी की जिंदगी में कोई समय ऐसा भी आता है जब उसकी धूल भी सोने के भाव बिकने लगती है तो यह समय कुमार विश्वास का वैसा ही चल रहा है। उनके नजदीकी पुराने कुछ लोग इसे कुमार का दंभी हो जाना मानते हैं और यदा-कदा बड़बोलोपन से बचने की सलाह भी देते हैं, लेकिन कुमार इस समय शायद कुछ सुनने की स्थिति में रहे नहीं । वे बस अपनी सुनाये जा रहे हैं और जनता-जर्नादन मंत्र मुग्ध होकर उनके मुखारविंद से निकले शब्दों से सम्मोहित होकर सुन रही है तो कोई करता रहे आलोचना,क्या फर्क पड़ता है? एक और बात की चर्चा इस समय जोरों पर है कि जो कुमार मुकेश अंबानी के बेटे अनंत की शादी का समारोह एक महीने चलने की जी भर-भर कर आलोचना करते रहे,उन्हीं कुमार विश्वास ने हाल ही में अपनी बेटी की शादी का जलसा उदयपुर के एक पांच सितारा होटल में तीन दिन तक किया और दिल्ली में भी एक भव्य स्वागत समारोह आयोजित किया। यह भी कि इस शादी में उन्होंने करोड़ों रुपये खर्च किये,फिर किस मुंह से वे अंबानी की आलोचना करते रहे ? वैसे अपने परिजन के लिये किसी भी आयोजन पर कितना भी खर्च करना निहायत निजी मामला है, फिर भी सार्वजनिक जीवन में जिन मुद्दों पर आप किसी अन्य पर अंगुली उठाते रहे हो, ठीक वैसे ही मामले में अपने आचरण की शुद्धता की अपेक्षा तो की ही जायेगी।
वे जब आम आदमी पार्टी में सक्रिय थे, तब भी उनकी अपेक्षा राज्यसभा में जाने की थी, क्योंकि वे अमेठी से तो लोकसभा का चुनाव जमानत जब्ती के साथ हार चुके थे। अब जबकि वे अपने राष्ट्रवादी,सनातनी सोच के साथ खड़े होने का अभियान जारी रखे हुए हैं तो इस परिप्रेक्ष्य में उनकी ख्वाहिश है कि भाजपा नेतृत्व उनके मन की इस मुराद को पूरी करे। अभी तक तो भाजपा नेतृत्व ने ऐसे कोई संकेत नहीं दिये, जिसका दर्द कुमार की बातों में झलकता भी रहता है। हालांकि बेटी की शादी के दिल्ली में आयोजित स्वागत समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित तमाम बड़े भाजपा नेताओं का आना बताता है कि कुमार जल्द ही संसद में व्याख्यान देते दिख सकते हैं।
एक और बात- राहुल गांधी को पप्पू कहना संभवत कुमार विश्वास ने ही प्रारंभ किया था, जो अब अंतरराष्ट्रीय ख्याति पा चुका है। हैरत नहीं आने वाले समय में विश्व भाषा कोश में पप्पू शब्द को समाहित कर लिया जाये।