यूक्रेन जल रहा है, तबाही का मंजर असहनीय है …

1424
यूक्रेन के शहरों में तबाही का मंजर दिलों को झकझोरने वाला है। कहीं तेल डिपो राख हो रहा है, कहीं प्रशासनिक भवन की बहुमंजिला इमारत जमीन में मिल रही है, रहवासी बहुमंजिला इमारतें जमींदोज हो रही हैं, लोग जान बचाने के लिए भूखे प्यासे संघर्ष करने को मजबूर हैं तो निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं। डर और मौत फिजां में घुल गई है। शहर के शहर तबाह हो चुके हैं। राजधानी कीव बदसूरत हो चली है। चर्नीहिव, इरपिन और दूसरे शहर तबाही का दंश झेल रहे हैं। रूस के विदेश मंत्री सर्जेई लवरोव कह रहे हैं कि रूस न्यूक्लियर वार नहीं चाहता लेकिन खुली धमकी है कि अगर छेड़ा तो हम किसी को नहीं छोड़ेंगे। इशारा अमेरिका की तरफ ही है।
कहा भी है कि यूक्रेन वाशिंगटन के इशारे पर काम कर रहा है। तो जंग के बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की का बयान है कि यूक्रेन रूस के सैनिकों के शवों से ढकना नहीं चाहता है। और यूक्रेन अब रक्षात्मक की जगह आक्रामक रवैया अख्तियार करने जा रहा है। हम डरने वाले नहीं हैं, टूटने वाले नहीं हैं और समर्पण करने वाले नहीं हैं। यह भी साहस कि यूक्रेन नवनिर्माण करेगा और इसकी भरपाई रूस को करनी पड़ेगी। जेलेंस्की के साहस को सलाम किया जा सकता है, लेकिन यूक्रेन की दुर्दशा और पलायन को मजबूर आबादी कहीं न कहीं बदहाली पर मातम मनाने की गवाही दे रही है।
स्थितियां यूक्रेन के प्रतिकूल हैं। यूक्रेन और रूस के बीच सैन्य संसाधनों की कोई तुलना नहीं हैं। यूक्रेन की पीठ थपथपाने वाले देशों को भी यह मालूम है कि अगर रण में कूदे तो तीसरे विश्व युद्ध का आगाज तय है। और इस युद्ध में परमाणु शक्ति का महाविनाश सब कुछ सत्यानाश कर देगा। फिर नवनिर्माण की कल्पना भी खौफ से भरी होगी और जीवन को पटरी पर लाने की सोच भी डरी हुई होगी। रूस अगर मरेगा तो परमाणु शक्ति का तांडव करने से भी नहीं चूकेगा।
मरता क्या न करता, की तर्ज पर पुतिन वह सब करेंगे जो उनकी जद में होगा। ऐसे में यूक्रेन तो क्या पूरा यूरोप-अमेरिका, एशिया समेत पूरी दुनिया विनाश का दंश भुगतने को मजबूर होगी। और इंसान खुद पर ही शर्मिंदा होगा। यह युद्ध जेलेंस्की की अपरिपक्व राजनीतिक समझ का परिचायक है या फिर पुतिन की राजनीतिक परिपक्वता और अहंकार की हुंकार। लेकिन परिणाम यही है कि विकास की जगह विनाश ने ले ली है। 21वीं सदी सोच को बदलने की होनी चाहिए, उसकी जगह सदी सोच पर तरस खाने की बन गई है।
यूक्रेन अपनी किस्मत पर रोने को मजबूर है। कीव की नींव हिल चुकी है। ब्लादिमीर पुतिन ने ठान लिया है कि विजय से कम कुछ भी मंजूर नहीं। चाहे किसी भी हद तक जाना पड़े। लेकिन सब कुछ तहस-नहस और बर्बाद कर यूक्रेन पर जीत दर्ज कर भी ली, तब भी रूस हार की तरह मातम मनाने को मजबूर होगा। क्योंकि रूस भी दरिद्रता की कब्र में दफन हुए बिना नहीं रह सकेगा। और यूक्रेन का हाल तो कुछ वैसा ही हो चुका होगा जैसा कि नीरो के समय रोम जलकर खाक हुआ था। वैश्विक रणनीति और कूटनीति शासकों की गुलाम है और विश्व पर बर्चस्व की परिणति ही रूस-यूक्रेन युद्ध है।
कल इस तरह की स्थितियां भारत-पाक युद्ध की साक्षी भी बन सकती हैं। या चीन-भारत को आमने-सामने खड़ा कर सकती हैं। और तब हम भी तबाही के मंजर देखने को मजबूर होंगे। लेकिन युद्ध हमेशा दुःखदायी थे, दुःखदायी हैं और दुःखदायी रहेंगे। युद्ध विनाश के पर्याय ही रहेंगे। बहुत से लोग मरकर दफन होंगे तो जिंदा बचे लोग भी लाश बनकर अपने दुर्भाग्य पर रुदन करेंगे। आज यूक्रेन जल रहा है, लेकिन तबाही का मंजर असहनीय है …। यूक्रेन की तबाही की तस्वीरें और कराहती आबादी आंखों को नम करने और युद्ध के प्रति घृणा दिल में भर देती हैं। बेहतर है कि ऐसी तस्वीरें फिर न दिखें।

Vallabh Bhavan to Central Vista

प्रधानमंत्री कार्यालय में बड़े बदलाव की चर्चा,जानिए ब्यूरोक्रेसी से जुड़ी और भी खबरें