यह बात अब तय है कि मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव और निकाय चुनाव को टालने की सभी गुंजाइश खत्म हो गई हैं।’मोडिफिकेशन’ या ‘रिव्यू पिटीशन’ जैसे शब्द अब महज औपचारिकता भर हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बदलाव की अब उम्मीद नहीं बची है। और यही वजह है कि अब रास्ता एक ही है, वह यह कि एक-दूसरे को पानी पी-पीकर कोसते हुए खुद को ओबीसी हितैषी साबित किया जाए। साथ ही पिछड़ा वर्ग को टिकट वितरण में किसी तरह की कंजूसी न बरती जाए। जैसा कि शिवराज ने कहा है कि मैंने भी विदेश यात्रा रद्द कर दी है।
अब केवल एक ही चीज है कि ओबीसी को न्याय भी दिलाना है, चुनाव की तैयारी करके जीतना भी है। हो जाओ तैयार साथियों हो जाओ तैयार,सोचने का समय गया, चलो रचें इतिहास नया। तो नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर समस्या के समाधान के लिए विशेष सत्र बुलाकर केंद्र को आरक्षण का प्रस्ताव भेजने और संविधान संशोधन की मांग की है। हालांकि यह बात साफ है कि यह मांग अब पूरी हो पाना संभव नहीं है, क्योंकि यह लंबी कानूनी प्रक्रिया है और पूरे देश को ध्यान में रखते हुए केवल एक राज्य के लिए संविधान संशोधन होना बहुत सहज नहीं है।
ऐसे में अब समय आ गया है कि पंचायत और निकाय चुनाव को सेमीफाइनल मानते हुए दोनों बड़े दल इसकी तैयारी पूरे मन से कर महाविजय का सपना देखें। और 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव को फाइनल मानें। यह चुनाव साफ संकेत दे देंगे कि वास्तव में 2023 का रण जीतने के काबिल कौन है? या फिर काबिलियत हासिल करने के लिए किसको कितना जोर लगाना पड़ेगा, यह बात पूरी तरह से साफ हो जाएगी।
संगठन के साथ बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज ने जो कहा, उससे तस्वीर साफ है कि अब पंचायत और निकाय चुनाव की बेला आ गई है। उन्होंने कहा कि “न दैन्यं न पलायनम्”। महाविजय के संकल्प के साथ शंखनाद प्रारंभ करें। पूरे आत्म विश्वास के साथ महाविजय का इतिहास रचने ओबीसी को न्याय देकर, समाज के सब वर्गों को न्याय देकर हम आगे बढ़ने का काम करेंगे। हम 27 पर्सेंट से ज्यादा टिकट देकर ओबीसी वर्ग के साथ न्याय करेंगे। 27 परसेंट से ज्यादा टिकट भारतीय जनता पार्टी ओबीसी वर्ग के भाई बहनों को देगी। हमने ओबीसी वर्ग के लिए ईमानदार प्रयास किए।
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हमने ओबीसी आयोग बनाया, ओबीसी कमीशन गाँव-गाँव घूमा, हमने पूरी रिपोर्ट तैयार की। ओबीसी कमीशन ने रिपोर्ट सबमिट की। हमने वो रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय में सबमिट की। कांग्रेस के पाप का पर्दाफाश करने के लिए कल यानि 13 मई को हम हर जिले में प्रेस कॉन्फ्रेंस करें। प्रेस कॉन्फ्रेंस करके हम भारतीय जनता पार्टी के प्रयासों की जानकारी देंगे। चलते चुनाव को रुकवाने का पाप कांग्रेस ने किया है।
हम लोगों की तैयारी पूरी हो गई थी, हम लोग तो मैदान में जा रहे थे। कांग्रेस पराजय के डर से कोर्ट चली गई और इतना बड़ा महापाप किया कि उसी के कारण ओबीसी का आरक्षण रुक गया।तीन-तीन मुख्यमंत्री कांग्रेस ने नहीं, भारतीय जनता पार्टी ने दिए। कांग्रेस ने तो ओबीसी के किसी आदमी को कभी मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया, लेकिन कांग्रेस ने षड्यंत्र और महापाप किया है। इनके इस पाप का पर्दाफाश भी करना है।
तो नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मध्यप्रदेश विधानसभा का एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाऩे की मांग की है। उन्होंने पत्र में हवाला दिया है कि दिनांक 10 मई, 2022 को माननीय सर्वाेच्च न्यायालय ने मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के बिना ही निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया है। मुख्यमंत्री ने अन्य पिछडा वर्ग को न्याय मिले, इस हेतु अपनी प्रतिबद्धता विधानसभा में जाहिर की है, इसी आशय को लेकर दिनांक 23 दिसंबर 2021 को विधानसभा में सरकार की ओर से संकल्प लाया गया था, जिसमें “प्रदेश में बगैर अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के आरक्षण के त्रिस्तरीय पंचायत के चुनाव न कराये जायें, यह संकल्प सदन में सर्वसम्मति से पारित किया गया था।
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इस दौरान मुख्यमंत्री ने सदन में कहा था कि माननीय सर्वाेच्च न्यायालय में अपने पक्ष को पूरी ताकत के साथ रखेंगे। उसके बावजूद सरकार की ओर से माननीय सर्वाेच्च न्यायालय में अन्य पिछड़ा वर्ग के संबंध में ठोस तथ्य प्रस्तुत न किये जाने के कारण पिछड़ा वर्ग के पक्ष में माननीय उच्चतम न्यायालय का निर्णय नहीं आया है। सिंह ने लिखा कि जब पक्ष तथा विपक्ष दोंनों प्रदेश के अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के पक्षधर है, ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि मध्यप्रदेश विधानसभा का एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाया जाकर इस सत्र में एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया जाये। जिनमें केन्द्र सरकार से अनुरोध किया जाये कि प्रदेश के अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को 27 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने के लिये संविधान में संशोधन किया जाये।
पर जब मुख्यमंत्री खुद साफ तौर पर चुनाव तैयारी और महाविजय हासिल करने की बात कह रहे हैं। ऐसे में विशेष सत्र बुलाने की संभावना नजर नहीं आती। और जो प्रस्ताव केंद्र को पहले भेजा जा चुका है, वह कवायद फिर की जाएगी…ऐसी संभावना भी नहीं दिख रही है। ऐसी स्थिति में जब पंचायत चुनाव गैर दलीय आधार पर होते हैं, दलों के टिकट देने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। और निकाय चुनाव दलीय आधार पर होंगे, तब भी पिछड़ा वर्ग बाहुल्य क्षेत्र में उन्हें टिकट दिए जाने पर भी 27 फीसदी का आंकड़ा पार हो जाता है। ऐसे में बिना विशेष जद्दोजहद के खुद को पिछड़ा वर्ग हितैषी साबित करने का संकल्प करना ही काफी है। बाकी सब चुनाव के बाद साफ हो जाएगा कि पिछड़ा वर्ग ने किसको अपना कितना हितैषी माना। तो अब सभी दलों के लिए पंचायत और निकाय चुनाव में विजय का इतिहास रचकर नया रिकार्ड बनाने का समय आ गया है…बाकी प्रयासों का समय बीत गया है।