सुदामा का मंदिर और बापू-बा के घर, यही तो है पूरा पोरबंदर (Sudama Temple Porbander)…

1882
सुदामा का मंदिर और बापू-बा के घर, यही तो है पूरा पोरबंदर (Sudama Temple Porbander)…
पोरबंदर यानि महात्मा गांधी, सामान्य तौर पर हम यही समझते हैं। पर पोरबंदर में सुदामा का मंदिर भी है और सुदामा का जन्म यहीं हुआ था, यह जानकारी शायद कम लोगों को ही होगी। सुदामा, जिन्हें कुचेला (दक्षिणी भारत में) के नाम से भी जाना जाता है, श्रीकृष्ण के बचपन के दोस्त थे। जिनकी कहानी कृष्ण से मिलने के लिए द्वारका की यात्रा का उल्लेख भागवत पुराण में किया गया है। पारलौकिक लीलाओं का आनंद लेने के लिए उनका जन्म एक गरीब व्यक्ति के रूप में हुआ था। सुदामा पोरबंदर के रहने वाले थे। पोरबंदर में सुदामा का मंदिर इस बात की गवाही देता है। मंदिर में फोटो लेना और वीडियो शूट करना मना है।
यहां सुदामा कुंड भी है और शिव और देवी मंदिर भी है। लख चौरासी परिक्रमा भी है, जिसे मोक्ष का द्वार कहा जाता है। लख चौरासी का मतलब यह कतई नहीं कि यह मीलों दूरी का मामला है, बल्कि यह तो दस फीट लंबा और दस फीट चौड़ा स्थान है, जिसमें एक सिरे से प्रवेश कर अंदर बने मार्ग से परिक्रमा कर दूसरे रास्ते से बाहर निकलना होता है। मार्ग को प्रणाम कर और वहीं दान पेटी पर रखी सुदामा-कृष्ण की मूर्ति को प्रणाम कर व्यक्ति की लख चौरासी परिक्रमा पूरी हो जाती है। सुदामा मंदिर बड़े परिसर में बना है। मंदिर में सुदामा की मूर्ति मुख्य है, उनके वाम अंग में सुशीला जी हैं और दाईं तरफ राधा-कृष्ण की मूर्ति है। तो यह है सुदामा मंदिर जो पोरबंदर का एक खास आकर्षण है। पोरबंदर को मोहनदास करमचंद गांधी के अलावा मोहन के सखा सुदामा के नाम से भी जाना जाता है, यह बहुत ही खास लगा मुझे यहां पहुंचकर।
तो इसके बाद हम पहुंचे कीर्ति मंदिर यानि महात्मा गांधी का जन्म स्थान देखने। जिस कमरे में महात्मा का जन्म हुआ था, वह जस का तस यहां देखा जा सकता है। पर बापू की याद में पोरबंदर के सेठ श्री नानजीभाई कालीदास मेहता ने मेमोरियल के रूप में कीर्ति मंदिर का निर्माण किया था, जिसको देश के पहले गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री विट्ठलभाई पटेल ने 27 मई 1950 को लोकार्पित किया था। इसे कीर्ति मंदिर के नाम से जाना जाता है। महात्मा गांधी का ऐतिहासिक घर इसी का हिस्सा है और फिलहाल कलेक्टर के अधीन स्थित इस विरासत में करीब दस कर्मचारी पदस्थ हैं। यहां गांधी के जीवन को चित्रों और वस्तुओं के जरिए पूरी तरह से समझा जा सकता है, तो गांधी बनकर अपना फोटो भी लिया जा सकता है, चरखा भी चलाकर फोटो लेकर सहेजा जा सकता है। गांधी से संबंधित पुस्तकें, चरखा और अन्य सामग्री भी क्रय की जा सकती है। इस इमारत में पहुंचकर पूरी तरह गांधीमय हो जाता है हर व्यक्ति।
और कीर्ति मंदिर से ही रास्ता जाता है “बा” यानि कस्तूरबा के पैतृक घर के लिए। जहां उनका जन्म हुआ था। जहां उनका बचपन बीता था। यह दो मंजिला घर बहुत व्यवस्थित तरीके से बनाया गया है। यहां घर के अंदर फोटोग्राफी करना मना है। पर बाहर ही बोर्ड पर पूरी जानकारी मिल जाती है। बा के घर को देखकर लगता है कि गांधी जी की ससुराल समृद्ध थी। दो मंजिला घर में अलग-अलग मंजिल पर किचन, बेडरूम, गेस्ट रूम सहित एक कम्पलीट घर की झलक “बा” के घर से मिलती है। यह 19 वीं सदी का वणिक परिवार का घर है। दरवाजों और खिड़कियों पर लकड़ी की बेहतरीन नक्काशी की गई है। कुछ कमरों की दीवारों पर बेहतरीन वाल पेंटिंग अब भी प्रभावित करती है। कमरे की सीलिंग्स भी सुसज्जित हैं। “बा” का जन्म भी 1869 में ही हुआ था और बापू के साथ उनका विवाह 1882 में हुआ था। और उनका निधन 1944 में पूना में हुआ था, जब वह पति महात्मा गांधी के साथ जेल में थीं। यह घर अब विरासत है और संरक्षित है।
तो वैसे पोरबंदर में और भी कई स्थान देखने योग्य हैं, जिसमें महात्मा गांधी म्यूजियम भी शामिल है। पर सुदामा मंदिर, बापू का जन्मस्थान, जहां वह पुतली बा की चौथी संतान के रूप में पैदा हुए थे। अब यह कीर्ति मंदिर है। और “बा” का पैतृक घर, जहां उनका जन्म हुआ था, जो अब खास धरोहर है। यह तीनों महत्वपूर्ण स्थान पोरबंदर को पूर्णता प्रदान कर देते हैं और फिर नहीं लगता कि पोरबंदर में पर्यटक की नजर से देखने लायक कुछ और भी बचा है। हालांकि पोरबंदर के निवासियों को जरूर इन स्थानों की तुलना में दूसरे स्थान मनोरंजन, धार्मिक और अलग नजरियों से काफी महत्वपूर्ण नजर आते होंगे।