कानून और न्याय: ‘हेट स्पीच’ पर काबू के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी मंथन 

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कानून और न्याय: ‘हेट स्पीच’ पर काबू के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी मंथन 

हेट स्पीच की कोई कानूनी भाषा तय नहीं है। लेकिन बोलकर, लिखकर, इशारों से अथवा किसी भी अन्य तरीके से हिंसा भड़काने की कोशिश होती है या दो समुदायों या समुहों के बीच सौहार्द्र बिगाड़ने की कोशिश होती है, तो ऐसा करना अपराध होगा। इसे ही ‘हेट स्पीच’ समझा जाता है। नेशनल क्राइम रिकाॅर्डस ब्यूरों के आंकड़े बताते हैं कि देश में हर साल धारा 153-अ के तहत दर्ज होने वाले मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है।

इन दिनों हेट स्पीच अथवा अभद्र भाषा का प्रयोग खूब हो रहा है। इनमें राजनेता भी अपना पूरा योगदान दे रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री सहित अनेक नेताओं के लिए जिन अपशब्दों का प्रयोग हो रहा है तथा उनके खिलाफ जिस निचले स्तर पर जाकर अभद्र भाषा का प्रयोग हो रहा है, उससे आम जनता भी स्वयं को असहज महसूस कर रही है। इसी विषय को लेकर शाहीन अब्दुल्ला द्वारा प्रस्तुत एक लोकहित याचिका पर सुनवाई के समय सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीर चिंता जताई। इस याचिका में हेट स्पीच पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका में यह कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद हेट स्पीच पर रोक नहीं लगी। हिंदू संगठन अभी भी हेट स्पीच दे रहे हैं एवं महाराष्ट्र सरकार इस पर रोक लगाने में विफल रही है। इसलिए महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से इस पर जवाब मांगा है। अब मामले में अगली सुनवाई 28 अप्रैल को होगी। न्यायालय ने अभी इस याचिका पर कोई फैसला नहीं दिया। लेकिन, न्याय कक्ष में जो चर्चा हुई है, वह चिंतन एवं मनन के लिए काफी सामग्री देती है।

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सर्वोच्च न्यायालय ने हेट स्पीच पर जो बात कही है वह नफरत फैलाने वालों को कड़वी लगेगी। नफरती बयानों यानी हेट स्पीच को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी की। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ ने कहा कि हर रोज टीवी और सार्वजनिक मंचों पर नफरत फैलाने वाले बयान दिए जा रहे हैं। क्या ऐसे लोग खुद पर कंट्रोल नहीं रख सकते! कोर्ट ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों का भी जिक्र किया और कहा कि उनके भाषणों को सुनने के लिए दूर-दराज के इलाकों से लोग इकट्ठा होते थे। गो टू पाकिस्तान जैसे बयानों से नियमित रूप से गरिमा को तोड़ा जाता है। हमें यह सोचना होगा कि अब हम कहां पहुंच गए! न्यायालय ने कहा कि जिस वक्त राजनीति और धर्म अलग हो जाएगी और नेता राजनीति में धर्म का उपयोग बंद कर देंगे तो ऐसे भाषण स्वमेव ही समाप्त हो जाएंगे। हम अपने हालिया फैसलों में भी कह चुके हैं कि धर्म को राजनीति के साथ मिलाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ ने मामले में महाराष्ट्र राज्य सरकार के रवैये को लेकर कहा कि जब राज्य सरकारें ऐसे मसलों पर चुप्पी साध लेंगी, तो फिर उनके होने का क्या मतलब है? याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने खंडपीठ को सूचित किया कि उन्होंने अभद्र भाषा के कुछ अन्य उदाहरणों के साथ यह आवेदन प्रस्तुत किया है। सिर कलम करने की आवाजें आ रही हैं, नारे लग रहे हैं। लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं की गई। मैं कुछ ऐसे उदाहरणों का उल्लेख करना चाहूंगा जो उन नारों के प्रत्युत्तर में हुए हैं। सकल हिंदू समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने इस याचिका की विचारणीयता पर आपत्ति जताई। उन्होंने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल के खिलाफ आरोप तो लगाए गए, लेकिन उन्हें कार्यवाही में पक्षकार नहीं बनाया गया। उन्होंने तर्क दिया कि, इस आधार पर इस याचिका को निरस्त किया जाना चाहिए। समाज को अपने स्वयं के विश्वास के अनुसार जुलूस निकालने का अधिकार है। इसे किसी अन्य धार्मिक विश्वास वाले व्यक्ति द्वारा चुनौती नहीं दी जा सकती।

भारत सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाकर्ता की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने के लिए हस्तक्षेप किया। उन्होंने आरोप लगाया कि कार्रवाई की मांग में पक्षपात हो रहा है। यदि याचिकाकर्ता वास्तव में नफरत फैलाने वाले भाषणों को लेकर चिंतित है तो उसे ऐसे सभी मामलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करनी चाहिए थी। उन्होंने प्रश्न उठाया कि केरल का याचिकाकर्ता केवल महाराष्ट्र की घटनाओं को ही क्यों निशाना बना रहा है। न्यायमूर्ति नागरत्थना ने कहा कि जिस समय संविधान लागू हुआ, उस समय इस तरह के नफरत फैलाने वाले भाषण प्रचलित नहीं थे। भाईचारे के अर्थ में अब दरारें आ रही हैं। उन्होंने पूछा कि राज्य सरकारें अभद्र भाषा की घटनाओं से निपटने के लिए तंत्र क्यों नहीं बना पा रही।

हेट स्पीच की वारदात इन दिनों आम बात हो चुकी है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन ने एक समारोह में बोलते हुए यह सुझाव दिया कि संसद को हेट स्पीच के लिए न्यूनतम सजा का प्रावधान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हेट स्पीच के आरोपी को 3 साल तक की कैद की सजा दी जा सकती है। लेकिन, ऐसा होता नहीं है, क्योंकि कोई न्यूनतम सजा तय नहीं है।

नेशनल क्राइम रिकाॅर्डस ब्यूरों के आंकड़े बताते हैं कि देश में हर साल धारा 153-अ के तहत दर्ज होने वाले मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। सन 2014 में देश में हेट स्पीच के 336 मामले दर्ज हुए थे। सन् 2020 में 1804 मामले दर्ज हुए हैं। इसका मतलब है 7 साल में हेट स्पीच के मामले 6 गुना तब बढ़ गए हैं। लेकिन, सजा की दर अब भी कम है। सन 2014 में अदालतों में हेट स्पीच से जुड़े 19 मामलों का ही ट्रायल पूरा हुआ है। इनमें से केवल 4 में ही सजा मिली थी। सन् 2020 में 186 मामलों में ट्रायल पूरा हुआ है और उनमें से 38 मामलों में सजा मिली। सन 2020 में हेट स्पीच के मामलों में सजा की दर 20.4% था। इससे पहले सन् 2019 में 159 मामलों का ट्रायल पूरा हुआ था और 42 मामलों में सजा मिली थी। इसका मतलब हुआ कि ज्यादातर मामलों में आरोपी बरी हो जाते है।

यह भी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि हेट स्पीच पर लॉ कमीशन की सिफारिश अब तक लागू नहीं की गई है। हेट स्पीच पर लाॅ कमीशन ने सन 2017 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें आयोग ने सरकार से हेट स्पीच के लिए अगल धारा जोड़ने की सिफारिश की गई थी। आयोग ने धारा 153-स और 505-अ जोड़ने का सुझाव दिया था। प्रस्तावित 153-स में धर्म, जाति या समुदाय आदि के आधार पर बोलकर, लिखकर या इशारों से धमकाने पर दो साल की कैद और पांच हजार रूपये का जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है।

वहीं, कुछ मामलों में भय या हिंसा भड़काने पर सजा देने के लिए 505-ए को जोड़ा जाए। इस धारा के तहत एक साल की कैद या पांच हजार रूपए का जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान करने का सुझाव दिया गया है। हालांकि, सरकार की और से अभी तक इन सिफारिशों को लागू नहीं किया गया। इन सिफारिशों को लागू करवाने के लिए भी बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। यह मामला अभी उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है। आशा की जानी चाहिए कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय जो फैसला देगा उससे हेट स्पीच पर लगाम लग सकेगी तथा देश के नेताओं द्वारा जिन निम्न शब्दावली का प्रयोग किया जा रहा है, उससे देश की जनता राहत महसूस करेगी।