Law and Justice: पति-पत्नी के विवाद में ससुराल को पक्ष न बनाएं

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दहेज उत्पीड़न और वैवाहिक विवादों के मामलों में विवाद इस हद तक बढ़ जाते हैं कि पूरे परिवार अर्थात सास, ससुर, जेठ, जेठानी, ननद तथा कई मामलों में परिवार के अन्य सदस्यों के विरूद्ध आपराधिक मामलें दर्ज करा दिए जाते हैं । कई मामलों में ये सही होते हैं लेकिन कई मामलों में सरासर झूठे होते हैं तथा इसके पीछे भावना बदले की आग की होती है । हाल ही में एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भी एक महिला और एक पुरूष के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी । सर्वोच्च अदालत ने कहा कि वैवाहिक मामलों में बार-बार पति के परिवार के सदस्यों के विरूद्ध पुलिस रिपोर्ट कर उन्हें अनावश्यक रूप से आरोपी बनाया जा रहा है।

सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के उस आदेश को निरस्त कर दिया जिसमें हत्या के मामले में आरोपित सास और देवर को समर्पण करने और जमानत के लिए आवेदन प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पुलिस रिपोर्ट में इनके नामों का उल्लेख किया गया है।  लेकिन, विषय-वस्तु उनकी सक्रिय भागीदारी को प्रकट नहीं करती है। इसलिए उनके खिलाफ संज्ञान लेना उचित नहीं है। इस आदेश में यह भी कहा गया है कि इस तरह के मामलों में संज्ञान लेने से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होता है।

इस मामलें में पुलिस में रिपोर्ट करवाई गई थी कि संबंधित महिला का पति, देवर, ननद और सास दहेज में कार की मांग कर रहे हैं । इसे न देने पर उसके साथ मारपीट और गले में फंदा डालकर उसकी हत्या कर बाद में लटका दिया। दहेज प्रताड़ना के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए को लेकर यह बहस जारी है कि इसका महिलाएं दुरूपयोग कर रही हैं। इस प्रावधान के दोनों ही पक्ष हैं। यह कुछ महिलाओं के लिए वरदान से कम नहीं है। दहेज के लिए होने वाली हत्याओं के कटु सत्य को नकारा नहीं जा सकता है। लेकिन साथ ही गलत मंशा से इसका प्रयोग करने वाली महिलाओं के लिए यह एक हथियार की तरह है।

इस प्रावधान में पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा किए गए अत्याचार के खिलाफ कार्यवाही का प्रावधान है। इसमें यदि कोई महिला शिकायत करती है तथा यदि कोई दोषी पाया जाता है, तो तीन साल तक की जेल हो सकती है। साथ ही इस प्रावधान में आर्थिक दंड के प्रावधान भी है। जानबूझकर किया गया कोई ऐसा कार्य जो किसी महिला को आत्मघात करने पर मजबूर करे या फिर उसे गंभीर तरह से चोट पहुंचाई गई हो, तो ऐसा व्यक्ति दोषी माना जाएगा। ऐसी चोट जिससे उसके जीवन पर बन आए। भले ही वह शारीरिक हो या मानसिक।

दूसरा, महिला को इस कदर प्रताड़ित करना कि वह अपने परिजनों के पास ससुराल पक्ष की मांग को लेकर जाए। महिला से अपने मायके से कुछ लाने को कहा जाए। यदि महिला को दहेज या किसी और कारण से परेशान किया जा रहा है तो वह शिकायत करने की हकदार है। ऐसे में उसके पति और ससुराल पक्ष के लोगों को जेल भेजा जा सकता है। परंतु हाल ही कुछ वर्षों में इस कानून के प्रावधानों का दुरुपयोग होने लगा है। कई बार महिलाओं ने अपने पति या उसके घरवालों को सबक सिखाने के लिए इस कानून का दुरुपयोग किया है। महिलाएं ससुराल पक्ष के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करा देती हैं।

सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा है कि दहेज के मामलों में पुलिस को तुरंत गिरफ्तारी नहीं करना चाहिए। जब तक कानूनी रूप से दहेज मामले की जांच न हो, गिरफ्तारी नहीं की जा सकती। इस संबंध में सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया है कि वे पुलिस से इस आदेश का पालन करने को कहे। दुर्भाग्य से भारतीय न्यायालयों में ऐसे मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है। भारतीय दंड संहिता के इस प्रावधान को महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ लाया गया था। इस कानून के पीछे दहेज पर रोक लगाने की भावना थी।

भारत में महिलाओं के अधिकारों की स्थिति अच्छी नहीं थी। ऐसे में उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं। ये तमाम कानून काफी सख्त भी हैं। महिलाओं के लिए सामाजिक संगठन भी आगे रहते हैं। लेकिन, इन्हीं महिला अधिकारों के बीच देश में पुरुष अधिकारों की बात भी होने लगी है। जहां पहले पुरुष अधिकारों की बात कहीं नहीं होती, वहीं अब पुरुष भी अधिकारों की बात भी करने लगे हैं।

भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी पुरूषों के साथ कानून बराबरी का बर्ताव नहीं कर रहा है। भारत में भी पुरुषों के अधिकारों की शुरुआत हुई। ‘सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन’ एक ऐसा संगठन है, जो पुरुष अधिकारों की बात और कार्यवाही करने में मदद करता है। इस संगठन की अलग-अलग राज्यों, अलग-अलग शहरों में कई शाखाएं हैं।

    यह रजिस्टर्ड संगठन है और पुरूषों के हकों की लड़ाई लड़ने की बात करता है। ऐसे ही अन्य कई संगठन भी पुरूष अधिकारों की रक्षा के लिए गत सालों में सक्रिय हुए हैं। घरेलू हिंसा या उत्पीड़न के शिकार पुरूषों की मदद के लिए एक स्वयंसेवी संस्था ने ‘सिफ’ नाम का एक ऐप बनाया है, जिस पर पुरूष अपनी पीड़ा दर्ज करा सकते हैं।

ऐसे पुरूषों को इस संस्था द्वारा कई मामलों में कानूनी मदद भी दिलाई जा चुकी है और कई परिवारों की काउंसलिंग कराकर उनकी समस्या का समाधान किया गया है। यह दुर्भाग्य है कि पत्नी के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए पति के पास घरेलू हिंसा जैसा कानून नहीं है। घरेलू हिंसा अधिनियम का जिक्र करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने एक प्रकरण में कहा कि यह ‘दुर्भाग्यपूर्ण‘ है कि एक पति के पास अपनी पत्नी के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराने के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम जैसा कोई प्रावधान नहीं है।

इस मामले में पति ने जज के सामने एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसकी पत्नी उसके साथ क्रूरता कर रही थी। पत्नी ने स्वेच्छा से उसे छोड़ दिया, इसके बाद अब उसने तलाक का केस भी दर्ज करा दिया। तलाक की याचिका पर फैसला आने के ठीक चार दिन पहले महिला ने पशुपालन और पशु चिकित्सा सेवा के निदेशक को घरेलू हिंसा की शिकायत भेज दी, जिसका मामला कोर्ट में था।

इसके बाद, पति को सेवा से निलंबित कर दिया गया। एक दिन बाद न्यायालय ने तलाक की डिक्री पारित कर दी। इसी आधार पर कोर्ट ने आगे कहा ‘पति और पत्नी को यह समझना चाहिए कि अहंकार और असहिष्णुता जूते की तरह हैं और घर में आने से पहले उन्हें बाहर ही उतार देना चाहिए। अन्यथा बच्चों को दयनीय जीवन का सामना करना पड़ता है। न्यायालय ने कहा कि विवाह किसी व्यक्ति के जीवन की पवित्र घटना है। न्यायालय ने पति को पंद्रह दिनों के भीतर सेवा में वापस लाने का आदेश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि अगर पत्नी सास-ससुर से अलग रहने की जिद करे तो पति तलाक दे सकता है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि हिन्दू लॉ के मुताबिक कोई भी महिला किसी भी बेटे को उसके माँ-बाप के प्रति पवित्र दायित्वों के निर्वहन से मना नहीं कर सकती। खंडपीठ ने कहा कि एक महिला शादी के बाद पति के परिवार की सदस्य बन जाती है। वह इस आधार पर उस परिवार से अपने पति को अलग नहीं कर सकती है, कि वो अपने पति की आय का पूरा उपभोग नहीं कर पा रही है।

कोर्ट ने टिप्पणी की कि माता-पिता से अलग रहने की पश्चिमी सोच हमारी सभ्यता-संस्कृति और मूल्यों के खिलाफ है। इस बात की और भी ध्यान देना आवश्यक है कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 केवल पत्नी के लिए नहीं है। सास और बिन ब्याही ननद भी अपनी बहू और भाभी के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत प्रकरण प्रस्तुत कर सकती है। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार घरेलू हिंसा कानून सभी महिलाओं के लिए है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिला अपने ससुराल पक्ष से विवाद होने की दशा में अपने सभी ससुराल के सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही करती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के दुरूपयोग को रोका जाए। प्रताड़ना के प्रकरण में किसी भी बहन-बेटियों के विरूद्ध होने वाली कार्यवाही से उनकी रक्षा की जानी चाहिए। लेकिन, साथ ही  यह भी आवश्यक है कि निरअपराध ससुराल के सदस्यों को भी इस प्रावधान के दुरूपयोग से बचाया जाए, ताकि किसी भी निरअपराध व्यक्ति इस कानूनी प्रावधान के दुरूपयोग का शिकार न बने।