कानून और न्याय: पंजाब और हरियाणा के बीच जल बंटवारे का ताजा विवाद

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कानून और न्याय: पंजाब और हरियाणा के बीच जल बंटवारे का ताजा विवाद

– विनय झैलावत

पंजाब और हरियाणा के बीच जल बंटवारे को लेकर तनाव एक बार फिर बढ़ गया है। पंजाब ने भाखड़ा-नांगल परियोजना के माध्यम से हरियाणा को अतिरिक्त 4,500 क्यूसेक पानी देने से इंकार कर दिया है। इस मुद्दे पर पंजाब में प्रमुख राजनीतिक दलों ने एकजुट होकर इस कदम का विरोध किया है। विवाद 23 अप्रैल को शुरू हुआ, जब हरियाणा ने अपने पष्चिमी जिलों में पीने के पानी की गंभीर कमी का हवाला देते हुए भाखड़ा-नांगल परियोजना से 8,500 क्यूसेक पानी मांगा। यह उसके सामान्य हिस्से से 4,500 क्यूसेक ज्यादा है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और इस मामले को भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) में उठाया।
बीबीएमबी ने हरियाणा के अनुरोध को मंजूरी दे दी, जिसके पक्ष में हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली के सदस्य राज्यों ने मतदान किया। हिमाचल प्रदेश ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया और पंजाब ने इसके खिलाफ मतदान किया। इस निर्णय के बावजूद, पंजाब ने नांगल बांध पर अतिरिक्त जलद्वार खोलने से इंकार कर दिया है। पंजाब द्वारा इस कदम को अभूतपूर्व और जबरन बताया गया है। हरियाणा सरकार ने अपने आवंटन को लागू करवाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब और हरियाणा सरकारों को सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर विवाद को सुलझाने के लिए केंद्र के साथ सहयोग करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ को केंद्र ने सूचित किया कि उसने इस मुद्दे का सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए पहले ही प्रभावी कदम उठाए हैं। पीठ ने कहा कि हम दोनों राज्यों को सौहार्दपूर्ण समाधान पर पहुंचने में भारत संघ के साथ सहयोग करने का निर्देश देते हैं। पीठ ने कहा कि अगर तब तक यह मामला नहीं सुलझता है तो वह 13 अगस्त को मामले की सुनवाई करेगी।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ से कहा कि हमने मध्यस्थता के लिए प्रयास किए हैं, लेकिन राज्यों को अपनी बात पर अमल करना होगा। एसवाईएल नहर की परिकल्पना रावी और व्यास नदियों से पानी के प्रभावी आवंटन के लिए की गई थी। इस परियोजना में 214 किलोमीटर लंबी नहर की परिकल्पना की गई थी। इसमें 122 किलोमीटर नहर पंजाब में और 92 किलोमीटर हरियाणा में बनाई जानी थी। हरियाणा ने अपने क्षेत्र में परियोजना पूरी कर ली है, लेकिन पंजाब ने सन् 1982 में निर्माण कार्य शुरू किया था। बाद में इसे पंजाब ने ठंडे बस्ते मे डाल दिया। दोनों राज्यों के बीच विवाद दशकों से चल रहा है। शीर्ष अदालत ने 15 जनवरी, 2002 को हरियाणा द्वारा 1996 में दायर एक मुकदमे में उसके पक्ष में फैसला सुनाया था और पंजाब सरकार को एसवाईएल नहर के अपने हिस्से का निर्माण करने का निर्देश दिया था।
भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की है। इसमें बोर्ड ने पंजाब द्वारा नांगल बांध के कथित अधिग्रहण के खिलाफ हस्तक्षेप की मांग की है। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने उक्त याचिका पर सुनवाई करते हुए विवाद पर आपत्ति जताई और कहा कि हम अपने दुश्मन देश के साथ ऐसा कर रहे हैं। हमें अपने राज्यों के भीतर ऐसा नहीं करना चाहिए। पंजाब और हरियाणा के बीच बढ़ते जल विवाद ने उच्च न्यायालय को नाराज कर दिया है। जिसने आज कहा कि भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कदम उठाने का फैसला किया है। लेकिन देश के राज्यों को एक-दूसरे के खिलाफ ऐसा नहीं करना चाहिए। पंजाब ने हरियाणा को पानी देने से इंकार कर दिया है। राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें अपने हिस्से का एक भी बूंद पानी नहीं छोड़ने की कसम खाई है। अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद तब उत्पन्न होता है जब दो या दो से अधिक राज्य अपनी सीमाओं के पार बहने वाली नदियों के उपयोग, वितरण या नियंत्रण पर असहमत होते हैं।
अंतर्राज्यीय जल विवाद का मुख्य कारण जल के समान वितरण को लेकर अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम राज्यों के बीच संघर्ष है। जब कोई राज्य असमान हिस्से या अनुचित आवंटन से व्यथित महसूस करता है, तो समझौतों में अस्पष्टता अक्सर विवादों को बढ़ावा देती है। सूखे और बदलते मौसम के पैटर्न के कारण प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है। इसके अलावा राजनीतिक और चुनावी विचार विवाद समाधान को जटिल बनाते हैं। कृषि और औद्योगिक जल आवश्यकताओं के बीच तनाव। बेहतर बुनियादी ढांचे वाले अमीर राज्य जल पहुंच पर हावी हैं। अंत में लंबे समय तक चलने वाले न्यायाधिकरण या सर्वोच्च न्यायालय के फैसले समाधान में देरी करते हैं।
जल और इसके विभिन्न मामलों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों को 3 सूचियों में सूचीबद्ध किया गया है। संघ सूची की प्रविष्टि 56, संसद द्वारा जनहित के लिए आवष्यक समझे जाने पर, अंतर्राज्यीय नदियों और नदी घाटियों को विनियमित और विकसित करने के लिए संघ सरकार को अधिकार प्रदान करती है। समवर्ती सूची की प्रविष्टि 32, यांत्रिक रूप से चालित जहाजों के संबंध में अंतर्देषीय जलमार्गों पर नौवहन और नौवहन तथा ऐसे जलमार्गों पर सड़क के नियम से संबंधित है। जबकि, राज्य सूची की प्रविष्टि 17, जल से संबंधित है, जिसमें जल आपूर्ति, सिंचाई, नहरें, जल निकासी, तटबंध, जल भंडारण और जल विद्युत जैसे पहलू शामिल हैं।
संविधान संसद को अनुच्छेद 262 जैसे विवाद समाधान प्रावधानों से भी सशक्त बनाता है। अनुच्छेद 262 के अनुसार, जल से संबंधित विवादों के मामले में संसद को किसी भी अंतर्राज्यीय नदी या नदी घाटी में जल के उपयोग, वितरण या नियंत्रण से संबंधित किसी भी विवाद या शिकायत के निपटारे के लिए कानून बनाने का अधिकार है। संसद कानून के माध्यम से यह निर्दिष्ट कर सकती है कि न तो सर्वोच्च न्यायालय और न ही किसी अन्य न्यायालय को ऊपर बताए गए ऐसे विवादों या शिकायतों पर अधिकार क्षेत्र होगा। अनुच्छेद 262 में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए संसद ने नदी बोर्ड अधिनियम, 1956 पारित किया, जिसने केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के परामर्श से अंतरराज्यीय नदियों और नदी घाटियों के लिए बोर्ड स्थापित करने का अधिकार दिया। अब तक इस अधिनियम के तहत कोई नदी बोर्ड स्थापित नहीं किया गया है। अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत यदि कोई राज्य या राज्य न्यायाधिकरण का अनुरोध करते हैं तो केंद्र सरकार को पहले परामर्श के माध्यम से मुद्दे को हल करने का प्रयास करना चाहिए। असफल होने पर वह न्यायाधिकरण का गठन कर सकती है।
अधिनियम के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए अवार्ड या फार्मूले पर सवाल नहीं उठाएगा, लेकिन वह न्यायाधिकरण के कामकाज पर सवाल उठा सकता है। हालांकि उक्त अधिनियम को 2002 में संशोधित किया गया था जिसमें जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना के लिए एक वर्ष की समय सीमा और सरकारिया आयोग की सिफारिषों के अनुसार निर्णय देने के लिए तीन साल की समय सीमा निर्दिष्ट की गई थी। पंजाब-हरियाणा जल विवाद अंतर्राज्यीय नदी जल बंटवारे की जटिलताओं को उजागर करता है, जो कानूनी, राजनीतिक और पर्यावरणीय चुनौतियों से और भी बढ़ जाती है। प्रभावी समाधान के लिए संस्थागत ढांचे को मजबूत करना, सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना, वैज्ञानिक जल प्रबंधन को लागू करना और सभी राज्यों की जरूरतों को पूरा करने और सतत जल उपयोग को बढ़ावा देने के लिए समान बुनियादी ढांचे का विकास सुनिश्चित करना आवश्यक है।