कानून और न्याय:’राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग कानून’ खिलाड़ियों का कितना मददगार होगा!
खिलाड़ी अपने खेल प्रदर्शन में सुधार करने के लिए कुछ प्रतिबंधित पदार्थों का उपभोग करते हैं। इसे डोपिंग (अपमिश्रण) कहा जाता है। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी के अंतर्गत नवंबर 1999 में विश्व एंटी-डोपिंग एजेंसी (वाडा) की स्थापना की गई थी। उल्लेखनीय है कि ‘वाडा’ को खेलों में डोपिंग के खिलाफ यूनेस्को के इंटरनेशनल कन्वेंशन द्वारा मान्यता प्राप्त है। ‘वाडा’ का मुख्य काम, सभी प्रकार के खेलों और देशों में एंटी-डोपिंग रेगुलेशन को विकसित करना, उनके बीच सामंजस्य पैदा करना और उनका समन्वय करना है।
पिछले साल दिसंबर में आई वर्ल्ड एंटी-डोपिंग एजेंसी की रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत डोपिंग (अपमिश्रण) के मामले में तीसरे नंबर पर है। यानी भारत एक ऐसा देश है, जहां के खिलाड़ी बड़ी संख्या में डोपिंग अर्थात प्रतिबंधित ड्रग्स का सेवन कर रहे हैं। साल 2019 में एंटी डोपिंग रूल के उल्लंघन के 152 सामने आये थे। यह आंकड़ा बताता है कि दुनियाभर में डोपिंग के जितने मामले सामने आए उसका 17% भारत के हिस्से आया। इस मामले में भारत से ऊपर सिर्फ दो ही देश हैं, रूस और इटली। भारतीय खेलों में एंटी डोपिंग एक्टिविटीज को रेगुलेट करने के लिए बनी नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी और नेशनल डोप टेस्ट लैबोरेटरी को संवैधानिक मान्यता देने के लिए केंद्र सरकार ने द नेशनल एंटी डोपिंग बिल, 2022 को पहले लोकसभा तथा मंजूरी मिलने के बाद इसे राज्यसभा में भी लम्बी चर्चा के बाद सर्वसम्मति से पास कर दिया गया।
बिल को सदन में चर्चा के लिए पेश करने के दौरान खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने हाल के दिनों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय खिलाड़ियों की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि भारतीय खिलाड़ी भविष्य में और अधिक पदक जीतेंगे। अनुराग ठाकुर ने कहा था कि, इस बिल से न केवल खेल और खिलाड़ियों को मदद मिलेगी, बल्कि इससे आत्मनिर्भर भारत को भी बल मिलेगा। उन्होंने सदन को बिल के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि वर्ष 2008 में राष्ट्रीय डोप टेस्ट लेबोरेटरी बनाई गई थी। नियम भी बनाए गए थे। लेकिन, उसे वैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं हो सका। अमेरिका, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में डोप जांच को लेकर पहले से ही ऐसी व्यवस्था है। अब भारत भी इसमें शामिल हो गया है। इससे भारत की साख बढ़ेगी।
खिलाड़ी अपने खेल प्रदर्शन में सुधार करने के लिए कुछ प्रतिबंधित पदार्थों का उपभोग करते हैं। इसे डोपिंग (अपमिश्रण) कहा जाता है। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी के अंतर्गत नवंबर 1999 में विश्व एंटी-डोपिंग एजेंसी (वाडा) की स्थापना की गई थी। उल्लेखनीय है कि वाडा को खेलों में डोपिंग के खिलाफ यूनेस्को के इंटरनेशनल कन्वेंशन द्वारा मान्यता प्राप्त है। वाडा का मुख्य काम, सभी प्रकार के खेलों और देषों में एंटी-डोपिंग रेगुलेशंस को विकसित करना, उनके बीच सामंजस्य पैदा करना और उनका समन्वय करना है। इसके लिए एजेंसी विश्व एंटी-डोपिंग कोड (वाडा कोड) तथा उसके मानकों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करती है, डोपिंग के मामलों की जांच करती है, डोपिंग पर शोध करती है तथा खिलाड़ियों और संबंधित कर्मचारियों को एंटी-डोपिंग रेगुलेशंस के बारे में शिक्षित करती है।
‘वाडा’ वर्ष में कम से कम एक बार प्रतिबंधित पदार्थों की सूची छापती है और अपने सभी हस्ताक्षरकर्ता देशों में बांटती है। खिलाड़ियों को प्रतिबंधित पदार्थों के इस्तेमाल की छूट है, अगर वे पदार्थ चिकित्सकीय उपयोग के लिए निर्दिष्ट हो तथा इसके लिए जरूरी हों। ‘वाडा’ के अनुसार, 2019 में डोपिंग के नियमों के सबसे ज्यादा उल्लंघन बाॅडी-बिल्डिंग में 22%, एथलेटिक्स में 18%, साइकिलिंग में 14% तथा वेटलिफ्टिंग में 13% में किया गया। ‘वाडा’ के अंतर्गत काम करने वाले राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग संगठनों में से अधिकतम पाॅजिटीव सैंपल भारत 4,004 में से 225 सैंपल, यूएसए में 11,213 में से 194 सैंपल और रूस में 9,516 में से 85 मामलों में दर्ज किए गए।
‘वाडा’ यह अपेक्षा करती है कि सभी देशों में एंटी-डोपिंग नियमों को लागू करने के लिए राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग संगठन बनाए जाएं। भारत में राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग एजेंसी (नाडा) एंटी-डोपिंग प्रक्रिया का संचालन करती है। नवंबर 2009 में सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के अंतर्गत ‘नाडा’ को एक स्वायत्त निकाय के रूप में स्थापित किया गया था। ‘नाडा’ के कार्यों में विश्व एंटी-डोपिंग कोड के अनुसार एंटी-डोपिंग नियमों को लागू करना, डोपिंग नियंत्रण कार्यक्रमों को रेगुलेट करना, डोप टेस्ट करना तथा उल्लंघनों के मामले में सजा को अधिकृत करना शामिल है। भारत में एंटी-डोपिंग कानून नहीं था। सन् 2021 में खेल संबंधी स्टैंडिंग कमेटी ने कहा था कि एंटी-डोपिंग नियम किसी कानून द्वारा समर्थित नहीं हैं और उन्हें अदालत में कोई भी चुनौती दे सकता है। उसने खेल विभाग को सुझाव दिया था कि 2021-22 में एंटी-डोपिंग कानून लाया जाए।
विधेयक में डोपिंग का निषेध है। यह विधेयक एथलीटों, एथलीट सपोर्ट कर्मियों और अन्य व्यक्तियों को खेल में डोपिंग में शामिल होने से रोकता है। डोपिंग रोधी नियम के उल्लंघन के परिणामस्वरूप खिलाड़ी को अयोग्य ठहराया जा सकता है, जिसमें पदक, अंक और पुरस्कार की जब्ती, निर्धारित अवधि के लिये किसी प्रतियोगिता या कार्यक्रम में भाग लेने की अयोग्यता, वित्तीय प्रतिबंध आदि शामिल है। विधेयक राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी को वैधानिक निकाय के रूप में गठित करने का प्रावधान करता है। इसकी अध्यक्षता केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त महानिदेशक करेगा। एजेंसी के कार्यों में डोपिंग रोधी गतिविधियों की योजना बनाना, उन्हें लागू करना और उनकी निगरानी करना। डोपिंग रोधी नियमों के उल्लंघन की जाॅंच।
डोपिंग रोधी अनुसंधान को बढ़ावा देना। खेल में राष्ट्रीय डोपिंग रोधी बोर्ड सम्मिलित है। साथ ही डोपिंग रोधी विनियमन और डोपिंग रोधी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुपालन पर सरकार को सिफारिशें करने के लिये विधेयक खेल क्षेत्र में राष्ट्रीय डोपिंग रोधी बोर्ड की स्थापना, बोर्ड एजेंसी की गतिविधियों की निगरानी करेगा और उसे निर्देश जारी करेगा। मौजूदा राष्ट्रीय डोप परीक्षण प्रयोगशाला को प्रमुख डोप परीक्षण प्रयोगशाला माना जाएगा। केंद्र सरकार और अधिक राष्ट्रीय डोप परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित कर सकती है। यह विधेयक डोपिंग से लड़ने में एजेंसियों के बीच सहयोग बढ़ाने के अलावा विधेयक एथलीटों को समयबद्ध न्याय प्राप्त करने का प्रयास करता है। साथ ही यह खेलों के लिए अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने हेतु भारत की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करने का भी एक प्रयास है। इसके अलावा यह विधेयक डोपिंग रोधी निर्णय के लिए एक मजबूत, स्वतंत्र तंत्र स्थापित करने में मदद करेगा। साथ ही यह विधेयक नाडा और राष्ट्रीय डोप परीक्षण प्रयोगशाला के कामकाज को कानूनी मान्यता देगा।
राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी को भारत में डोप मुक्त खेलों के लिये एक जनादेश के साथ 24 नवंबर, 2005 को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में स्थापित किया गया था। इसका प्राथमिक उद्देश्य विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी कोड के अनुसार डोपिंग रोधी नियमों को लागू करना, डोप नियंत्रण कार्यक्रम को विनियमित करना, शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देना तथा डोपिंग एवं इसके दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा करना है। ‘नाडा’ के पास इसके लिए आवश्यक अधिकार और जिम्मेदारी है। इसका काम डोपिंग नियंत्रण में योजना, समन्वय, कार्यान्वयन, निगरानी और सुधार की पैरवी करना तथा अन्य प्रासंगिक राष्ट्रीय संगठनों, एजेंसियों और अन्य डोपिंग रोधी संगठनों आदि के साथ सहयोग करना भी है।
नवंबर, 1999 में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के तहत विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी की स्थापना की गई थी। खेल में डोपिंग के खिलाफ यूनेस्को अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा वाडा को मान्यता दी गई। वाडा की प्राथमिक भूमिका सभी खेलों और देशों में एंटी-डोपिंग नियमों को विकसित करना, सामंजस्य तथा समन्वय स्थापित करना है। यह विश्व डोपिंग रोधी संहिता (वाडा कोड) और उसके मानकों के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने, डोपिंग की घटनाओं की जाॅंच करने, डोपिंग पर शोध करने, खिलाड़ियों व संबंधित कर्मियों को डोपिंग रोधी नियमों के बारे में शिक्षित करने का कार्य भी करता है।
निश्चित ही यह विधेयक खिलाड़ियों के हितों की रक्षा करेगा क्योंकि यह उन्हें अपना पक्ष रखने के लिये पर्याप्त जगह प्रदान करेगा, खासकर जब वे डोपिंग रोधी आरोपों का सामना कर रहे हों। यहां भारतीय पहलवान नरसिंह यादव का उदाहरण देना माकूल होगा। यादव भारत में डोप टेस्ट पास करके गए थे लेकिन विदेश में फेल हो गए थे। कानून बनने के बाद देश में एक उचित प्लेटफार्म होगा, जहां खिलाड़ियों को खुद को साबित करने का मौका दिया जाएगा। नेशनल एंटी-डोपिंग कानून के तहत सरकार के पास एथलीट्स का पर्सनल डेटा जुटाने का कानूनी अधिकार होगा।