कानून और न्याय : नेक्रोफीलिया पर रोक के लिए विधिक प्रावधान जरूरी!

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कानून और न्यायने: क्रोफीलिया पर रोक के लिए विधिक प्रावधान जरूरी!

पूर्व असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल एवं वरिष्ठ अधिवक्ता विनय झैलावत का कॉलम

नेक्रोफीलिया शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है। जहां ‘नेक्रो’ का मतलब होता है मृत शरीर और ‘फीलिया’ यानी प्यार अथवा आकर्षण। इस प्रकार नेक्रोफीलिया का अर्थ होता है मृत शरीर के प्रति यौन आकर्षण का होना। नेक्रोफिलिया को एक घिनौना मनोविकार यानी मेंटल डिसऑर्डर कहा गया है। नेक्रोफीलिया को मेडिकल क्षेत्र में अन्य कई और नामों से भी जाना जाता है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना है कि महिला के शव पर यौन हमला भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दंडनीय बलात्कार का अपराध नहीं होगा। उच्च न्यायालय ने एक 21 साल की लड़की की हत्या के बाद उसके शव पर यौन हमला करने के लिए बलात्कार के आरोप से एक व्यक्ति को बरी कर दिया।
उच्च न्यायालय ने दोषी रंगराजू उर्फ वाजपेयी द्वारा दायर अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया। इसमें संहिता की धारा 376 के तहत सजा को रद्द कर दिया गया। हालांकि, अदालत ने हत्या के लिए उसकी सजा को बरकरार रखा और ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए आजीवन कारावास की सजा की पुष्टि की। कनार्टक उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 और धारा 377 के प्रावधानों को सावधानीपूर्वक पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि मृत शरीर को मानव या व्यक्ति नहीं कहा जा सकता। इस कारण भारतीय दंड संहिता की धारा 375 या 377 के प्रावधान आकर्षित नहीं होंगे।
उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष का यह विषिष्ट मामला है कि आरोपी ने पहले पीड़िता की हत्या की और फिर शव के साथ यौन संबंध बनाए। इस प्रकार इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 375 और धारा 377 के तहत परिभाषित यौन अपराध या अप्राकृतिक अपराध के रूप में नहीं ठहराया जा सकता। इसे परपीड़न, नेक्रोफिलिया माना जा सकता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दंडित करने के लिए कोई अपराध नहीं है। उच्च न्यायालय ने सरकार से ऐसे कृत्यों को दंडित करने के लिए एक कानून में संशोधन या नया कानून बनाने पर विचार करने की सिफारिश की।
इस मामले में आरोपी ने 25 जून 2015 को 21 वर्षीय लड़की की गर्दन काटकर हत्या कर दी थी। फिर उसके साथ कथित तौर पर बलात्कार किया। पुलिस ने जांच के दौरान आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। बाद में उसके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया। अधीनस्थ न्यायालय ने सबूतों के आधार पर आरोपी को दोषी करार दिया। दोषी ने अपनी अपील में तर्क दिया कि कथित कृत्य नेक्रोफिलिया के अलावा और कुछ नहीं है। इस अपराध के लिए दंडित करने के लिए आईपीसी में कोई विशेष प्रावधान नहीं है। अभियोजन पक्ष ने इसका विरोध किया। अभियोजन का तर्क था कि आईपीसी की धारा 375 (ए) और (सी) के प्रावधानों, यानी यौन अपराधों को 1983 में संशोधित किया गया था। इस कारण शव पर बलात्कार यौन अपराधों में सम्मिलित है और आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय है।
उच्च न्यायालय ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता को विस्तृत विचार-विमर्श और तर्क के लिए न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) भी नियुक्त किया। उन्होंने तर्क दिया कि भारतीय आपराधिक कानून नेक्रोफीलिया को अपने आप में एक अपराध के रूप में मान्यता नहीं देते हैं। लेकिन, किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद के मानवाधिकारों को मान्यता मिल गई है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 न केवल गरिमा और सम्मान के साथ जीवन के अधिकार को मान्यता देता है, बल्कि गरिमापूर्ण तरीके से मरने का अधिकार और मृत्यु, दफनाने आदि के बाद उपचार के कुछ अधिकार भी शामिल करता है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस प्रश्न पर विचार किया कि क्या किसी शव के साथ यौन संबंध बनाने पर भारतीय दंड संहिता के किसी प्रावधान के तहत बलात्कार का आरोप लगाया जा सकता है। न्यायालय ने धारा 46 का भी उल्लेख किया जो मृत्यु को परिभाषित करती है। बलात्कार जीवित व्यक्ति के साथ संभव है, न कि एक मृत शरीर के साथ। इसे किसी व्यक्ति की इच्छा के विरूद्ध पूरा किया जाना चाहिए। एक मृत शरीर बलात्कार के लिए सहमति या विरोध नहीं कर सकता है और न उसे शारीरिक चोट का डर होता है। बलात्कार के अपराध में व्यक्ति के प्रति आक्रोश और बलात्कार के पीड़ित की भावनाएं शामिल हैं। एक मृत शरीर में आक्रोश की कोई भावना नहीं होती है।
इस प्रकार यह माना गया कि मृत शरीर पर यौन संभोग और कुछ नहीं बल्कि लाशों के लिए एक कामुक आकर्षण है। कोर्ट ने नोट किया कि नेक्रोफीलिया एक साइकोसेक्सुअल डिसऑर्डर है जिसे क्रेडप्ट (डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ़ मेंटल डिसऑर्डर) विकारों के एक समूह के बीच वर्गीकृत करता है। इसे पैराफीलिया कहा जाता है। इसमें पीडोफीलिया, प्रदर्शनीवाद और यौन स्वपीड़न शामिल हैं। कोर्ट ने कहा कि हालांकि यह आईपीसी में यौन अपराधों के तहत वर्गीकृत एक विशिष्ट अपराध नहीं है। लेकिन, इसे धारा 297 के तहत लाया जा सकता है। क्योंकि, अंतिम संस्कार के लिए अलग किए गए स्थान पर अतिचार द्वारा किसी भी मानव लाश के लिए अपमान का कारण बनता है। न्यायालय ने कहा कि सभी कानूनी तत्व संतुष्ट हैं, तो इसे किसी भी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचाने या किसी धर्म का अपमान करने के अपराध के रूप में भी दंडित किया जा सकता है।
उच्च न्यायालय ने पं. परमानंद कटारा, एडवोकेट बनाम भारत संघ, (1995)3 एससीसी 248 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया। इसमें यह माना गया था कि एक इंसान के मृत शरीर की गरिमा को बनाए रखा जाना चाहिए। यह एक अप्राकृतिक अपराध है। इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत परिभाषित किया गया है। दुर्भाग्य से उक्त प्रावधान में मृत शरीर शब्द शामिल नहीं है।
इस प्रकार न्यायालय भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत सजा को रद्द कर दी। इसमें कहा गया है कि उक्त भौतिक पहलू पर विद्वान सत्र न्यायाधीश द्वारा विचार नहीं किया गया है। इससे भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत अपराध को आकर्षित करने वाले किसी भी प्रावधान के अभाव में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के प्रावधानों के तहत आरोपी को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया है। उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को किसी भी पुरुष, महिला या जानवर के मृत शरीर को शामिल करने के लिए आईपीसी की धारा 377 के प्रावधानों में संशोधन करने या मृत महिला के खिलाफ अपराध के रूप में एक अलग प्रावधान पेश करने की सिफारिश की। ऐसा यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका में किया गया है।
नेक्रोफीलिया शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है। जहां नेक्रो का मतलब होता है मृत शरीर और फीलिया यानी प्यार अथवा आकर्षण। इस प्रकार नेक्रोफीलिया का अर्थ होता है मृत शरीर के प्रति यौन आकर्षण। नेक्रोफीलिया को एक घिनौना मनोविकार यानी मेंटल डिसऑर्डर कहा गया है। नेक्रोफीलिया को मेडिकल क्षेत्र में अन्य कई और नामों से भी जाना जाता है। इसे नेक्रोफिलिज्म, नेक्रोलाग्निया, नेक्रोकाइटस, नेक्रोक्लेसिस और थानाटोफिलिया भी कहा गया है। नेक्रोफिलिया पर किए एक रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक नेक्रोफीलिया एक बेहद गंभीर किस्म की मानसिक बीमारी कही जा सकती है। क्योंकि, इसमें शव के साथ यौन आकर्षण होने पर मरीज किसी की हत्या करने से भी गुरेज नहीं करता। अगर किसी मरीज की शव के साथ यौन संबंध बनाने की इच्छा हो रही है और उसे शव न मिले तो वह किसी की हत्या करके उसके शव के साथ यौन संबंध बनाने का काम भी कर सकता है।
यूनाइटेड किंगडम में यौन अपराध अधिनियम, 2003 की धारा 70 के तहत जानबूझकर या लापरवाही से शव के साथ संबंध बनाने पर आरोपी को 6 महीने से लेकर 2 साल तक की सजा का प्रावधान है। वहीं, कनाडा की आपराधिक संहिता, 1985 की धारा 182 नेक्रोफीलिया को दंडनीय बनाती है। गौरतलब है कि कनाडा में तो नेक्रोफीलिया शब्द का उपयोग किए बिना यह बताया गया है कि मृत शरीर की गरिमा व अधिकार को नुकसान पहुंचाने पर ज्यादा से ज्यादा 5 साल की सजा का हवाला दिया जा सकता है। दक्षिण अफ्रीका में आपराधिक कानून (यौन अपराध और संबंधित मामले) संशोधन अधिनियम, 2007 की धारा 14 नेक्रोफीलिया पर रोक लगाती है। यहां इसे यौन अपराध से जुड़ा मामला माना जाता है। इसके अलावा, न्यूजीलैंड, स्वीडन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इस कानून को लेकर अधिकतम 2 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
नेक्रोफीलिया का पहला मामला साल 1948 में कैलिफोर्निया में मिला था। इसका मरीज करीब 50 महिलाओं की हत्या करके उनके शव के साथ यौन संबंध बना चुका था। जबकि, सबसे जघन्य मामला ब्रिटेन में साल 1987 का है। जहां केंट एंड सेसेक्स हॉस्पिटल में इलेक्ट्रीशियन के पद पर कार्यरत 67 साल के डेविड ने दो महिलाओं की हत्या कर उनके शवों के साथ बलात्कार किया था। पकड़े जाने के बाद उसने जो कहानी बताई, उसे सुनकर सिर्फ इंग्लैंड ही नहीं, पूरी दुनिया ही हिल गई थी। डेविड ने स्वीकारा कि अस्पताल में 99 मृत महिलाओं के साथ यौन संबंध बनाए थे। इतना ही नहीं, उसके घर की तलाशी ली गई तो पुलिस को लाशों के साथ सेक्सुअल एब्यूज की लाखों तस्वीरें मिली थीं।
भारत में साल 2006 के निठारी कांड में भी नेक्रोफीलिया का अपराध सामने आया था। नोएडा के सेक्टर-31 के डी-5 कोठी में रहने वाले मनिंदर सिंह पंधेर और सुरेंद्र कोली ने 19 लड़कियों और महिलाओं की हत्या कर शवों के साथ बलात्कार करने की बात स्वीकार की थी। अक्टूबर 2015 में गाजियाबाद में तीन लोगों ने 26 साल की महिला की कब्र खोदकर लाश निकाली और उसका सामूहिक बलात्कार किया था। साल 2019 में हापुड़ जिले के हाफिजपुर थाना के गिरधरपुर-तुमरैल गांव की एक 50 वर्षीय महिला का शव दो दिन बाद कब्र से गायब हो गया। शव की तलाश की गई तो वह कुछ दूर गन्ने के खेत में मिला। वर्तमान युग में जहां मानसिक विकार अपने चरम पर है वहीं इन अपराधों एवं अपराधियों की पहचान कठिन भी है, अपराधों के खिलाफ सख्त कानून बनाए जाना आवश्यक है। आशा की जानी चाहिए कि भारत सरकार इस संबंध में शीघ्र ही कठोर कदम उठाएगी।