कानून और न्याय! मौखिक आदेश को लागू नहीं किया जा सकता

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कानून और न्याय! मौखिक आदेश को लागू नहीं किया जा सकता

यह मामला हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया था। मामला तमिलनाडु सरकार द्वारा राम मंदिर के कार्यक्रम के प्रसारण पर मौखिक आदेश से रोक लगाने का था। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय तमिलनाडु सरकार से कहा कि राम मंदिर उद्घाटन के लाइव टेलीकास्ट की इजाजत को खारिज नहीं किया जा सकता है। तमिलनाडू की डीएमके सरकार ने राज्यभर में राम मंदिर कार्यक्रमों के लाइव प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर कहा कि राम मंदिर उद्घाटन के लाइव टेलीकास्ट की इजाजत को खारिज नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि द्रमुक के नेतृत्व वाली सरकार ने कथित तौर पर प्राण प्रतिष्ठा के लाइव टेलीकास्ट पर प्रतिबंध लगा दिया है। न्यायालय ने कहा कि अनुमति को केवल इसलिए अस्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि पड़ोस में अन्य समुदाय रहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार की सुनवाई के दौरान तमिलनाडू सरकार से कहा, यह एक समरूप समाज है। इसे केवल इस आधार पर नहीं रोका जा सकता कि वहां अन्य समुदाय भी हैं।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने तमिलनाडु के मंदिरों में अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के सीधे प्रसारण पर प्रतिबंध लगाने वाले 20 जनवरी के मौखिक आदेश को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कोई भी मौखिक आदेश का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है। पीठ ने तमिलनाडु के वरिष्ठ वकील अमित आनंद तिवारी के बयान को रिकॉर्ड पर लिया कि मंदिरों में पूजा अर्चना या अयोध्या के प्राण प्रतिष्ठा के समारोह के लाइव टेलीकास्ट पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

तमिलनाडु सरकार के वकील ने कहा कि याचिका राजनीति से प्रेरित है। पीठ ने अधिकारियों से कारणों को रिकॉर्ड में रखने और उन आवेदनों डेटा तैयार करने को कहा है जिन्हें पूजा अर्चना के लिए अनुमति दी गई थी और जिन्हें नहीं दी गई है। पीठ ने याचिका पर तमिलनाडु सरकार से 29 जनवरी तक जवाब भी मांगा है। यह याचिका विनोद नाम के व्यक्ति ने दायर की है। इसमें कहा गया कि द्रमुक द्वारा संचालित तमिलनाडु सरकार ने प्राण प्रतिष्ठा के लाइव टेलीकास्ट पर प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि राज्य सरकार ने आरोपों को झूठा बताकर खारिज कर दिया था।

इस मामले पर तमिलनाडु सरकार पर हमला करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि दुर्भाग्य से डीएमके सरकार द्वारा पुलिस का दुरुपयोग किया जा रहा है। क्या किसी भी नागरिक को पीएम का कार्यक्रम देखने से मना किया जा सकता है? डीएमके प्रधानमंत्री के प्रति अपनी व्यक्तिगत नफरत दिखा रही है और उपासकों का दमन कर रही है। जो लोग राम की पूजा करना चाहते हैं वे इसे देखना पसंद करेंगे। मेरे पूजा करने के अधिकार का उल्लंघन करना कौन सा अधिकार है? यह मेरे और प्रत्येक हिंदू के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है। राम मंदिर के प्रसारण पर प्रतिबंध लगाने पर तमिलनाडु को सर्वोच्च न्यायालय का नोटिस यह मानकर दिया गया कि यह एक समान समाज है। सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार और अन्य को राज्य के मौखिक आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर नोटिस जारी किया। इसके द्वारा उसने पूरे तमिलनाडु के मंदिरों में अयोध्या में भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा के लाइव प्रसारण पर कथित रूप से प्रतिबंध लगा दिया था।

सीतारमण ने रविवार को एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली तमिलनाडू सरकार पर अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक से जुड़े कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाने का आरोप लगाया। भाजपा के वरिष्ठ नेता ने द्रमुक सरकार पर घृणित कार्रवाई करने का आरोप लगाया क्योंकि प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तैयारी अंतिम चरण में प्रवेष कर गई थी। पूर्व में ट्विटर की एक पोस्ट में वित्त मंत्री ने लिखा, तमिलनाडू सरकार ने 22 जनवरी के अयोध्या राम मंदिर कार्यक्रमों के सीधा प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया है। तमिलनाडु में श्री राम के 200 से अधिक मंदिर हैं। हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्त अधिनियम द्वारा इनके प्रावधानों के अंतर्गत कुछ मंदिरों में श्री राम के नाम पर पूजा, भजन, प्रसाद या अन्नदान की अनुमति नहीं है। न्यायालय ने कहा कि हालांकि राज्य प्रशासन ने इन दावों को गलत उद्देश्यों के साथ झूठी खबर के रूप में खारिज कर दिया था। लेकिन इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि अगर उक्त कार्य किया गया है तो वह अनुच्छेद 19 एवं अनुच्छेद 25 के प्रावधानों का उल्लंघन है।

न्यायालय ने कहा कि पुलिस सरयू नदी पर लगातार अंतराल पर नाव द्वारा गश्त कर रही है और अयोध्या के महर्षि वाल्मीकि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एंटी-बम स्क्वायड और डाॅग स्क्वाड टीमों को तैनात किया गया है। हवाई अड्डे पर पहुंचने और जाने वाले वाहनों की अच्छी तरह से जांच की जा रही थी और किसी को भी बिना पास के हवाई अड्डे में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा रही थी। अतः उक्त मंदिर के दर्शन लाभ के लिए तमिलनाडु एवं शेष देश के लिए लाइव टेलीकास्ट एकमात्र साधन था जिससे राज्य सरकार द्वारा लोगों को कथित तौर पर वंचित किया गया।

तमिलनाडु सरकार द्वारा यह उक्त कार्य अनुच्छेद 19 एवं अनुच्छेद 25 के द्वारा दिये मौलिक अधिकारों के विपरीत है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रावधान है और आमतौर पर राज्य के खिलाफ लागू होता है। भारतीय संविधान, 1949 का अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को स्वतंत्रता के अधिकारों की गारंटी प्रदान करता है। इनमें वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार महत्वपूर्ण है। शांतिपूर्वक सम्मेलन में भाग लेने की स्वतंत्रता का अधिकार, संगम या संघ बनाने का अधिकार, भारत के संपूर्ण क्षेत्र में अबाध संचरण की स्वतंत्रता का अधिकार, भारत के किसी भी क्षेत्र में निवास का अधिकार, व्यवसाय आदि की स्वतंत्रता का अधिकार, नागरिकों के महत्वपूर्ण मौलिक अधिकारों में सम्मिलित है। भारतीय संविधान, 1949 का अनुच्छेद 19 (2) कहता है कि खंड (1) का उपखंड (ए) किसी भी मौजूदा कानून के संचालन को प्रभावित नहीं करेगा या राज्य को कोई भी कानून बनाने से नहीं रोकेगा। हालांकि उक्त उपखंड प्रदत्त अधिकार के प्रयोग पर भारत की संप्रभुता और अखंडता के संदर्भ में उचित प्रतिबंध लगाता है। इनमें राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, या न्यायालय की अवमानना, मानहानि या हिंसा के लिये उकसाना सम्मिलित है।

उक्त अनुच्छेद द्वारा अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकारों के अंतर्गत राम मंदिर के ‘‘प्राण प्रतिष्ठा‘‘ के प्रसारण को नहीं रोका जा सकता था। सरकार का यह कृत्य अनुच्छेद 25 के भी विपरित है। यह अनुच्छेद धर्म से जुड़े मौलिक अधिकारों की बात करता है। अनुच्छेद 25 (1) के अंतर्गत लोक व्यवस्था, सदाचार/नैतिकता, स्वास्थ्य, भाग 3 के अन्य उपबंध सम्मिलित है। अनुच्छेद 25 (1) के अंतर्गत सभी व्यक्ति अंतःकरण की स्वतंत्रता का अधिकार किसी भी धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता का अधिकारों के हकदार है।

अंतःकरण की स्वतंत्रता में ईश्वर के साथ संबंध स्थापित करने की स्वतंत्रता का अधिकार, पूर्ण आंतरिक स्वतंत्रता, आस्था और विश्वास के विषय में बाह्य विवशता का अभाव या स्वतंत्रता, अन्तःकरण से तात्पर्य नैसर्गिक रूप से विकसित आंतरिक भावनाएं सम्मिलित है। किसी भी धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता से, धर्म को अबाध रूप से मानने से तात्पर्य धर्म के प्रति श्रद्धा एवं विश्वास को स्वतंत्रता पूर्वक घोषित करना शामिल है। धर्म का आचरण करने में धार्मिक कर्तव्यों का पालन, धार्मिक रीति रिवाजों का पालन एवं धार्मिक अधिकारों का उपभोग शामिल है। अपने धर्म का प्रचार करना धार्मिक अधिकार का भाग है।

प्रत्येक व्यक्ति को अपनी धार्मिक आस्था एवं विश्वास दूसरों को सम्प्रेषित करने का अधिकार है। इसमें अपने धर्म के मूल तत्वों तथा शिक्षाओं को अभिव्यक्ति एवं अघोषित करने का अधिकार शामिल है। परन्तु राज्य बलात् धर्म परिवर्तन की अनुमति नहीं देता है। उकसाकर एवं उत्प्रेरित करके धर्म परिवर्तन करना अनुच्छेद 25 (1) की परिधि से बाहर है। इस कारण तमिलनाडु सरकार द्वारा कथित प्रतिबंध ना केवल न्याय सिद्धांत के विपरीत है बल्कि वहां रहने वालों के मौलिक अधिकारों का भी हनन था। यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार एवं उच्चतम न्यायालय भविष्य में होने वाले राज्यों के ऐसे कृत्यों पर किस प्रकार रोक लगाने में सक्षम होगी।