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इन दिनों बरसों तक ‘लिव-इन’ में रहने के बाद जब किसी भी कारण से संबंध समाप्त होते हैं, तो कुछ महिलाओं द्वारा दुष्कर्म के आरोप अपने मित्र पर लगाए जाते हैं। पुलिस भी कानून की मजबूरी के कारण संबंधित पुरुष के विरुद्ध दुष्कर्म के आरोप में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 के तहत कार्यवाही करती है। यह आरोप समझ से परे है। ‘लिव-इन’ की परिकल्पना इन विदेशी सिद्धान्तों के अनुरूप की गई थी, कि वयस्क पुरूष एवं स्त्री स्वेच्छा एवं सहमति से जब तक इच्छा हो बगैर जवाबदारियों के साथ रहे। इच्छा न होने पर दोनों अलग-अलग राह पर जाने के लिए स्वतंत्र होते है।
अनबन होने पर विवाह के आश्वासन की आड़ में पुरूष के खिलाफ दुष्कर्म का आरोप लगाना भारतीय दण्ड संहिता का दुरूपयोग है। इस बात पर कोई मतभेद नहीं हो सकते कि दुष्कर्म के वास्तविक मामलों में गंभीर कदम उठाए जाने चाहिए। लेकिन, इस प्रकार के झूठे मामलों में न्यायालयों को उदार दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। आज कल दिन-प्रतिदिन समाचार पत्रों एवं समाचारों में इस प्रकार की घटनाएं प्रकाशित एवं प्रसारित होती है। दुर्भाग्य यह है कि इस प्रकार के आरोपों एवं घटनाओं में निरंतर वृद्धि होती जा रही है।
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गत कुछ समय से न्यायालयों ने भी इस प्रकार की घटनाओं पर अलग दृष्टिकोण अपनाया है। शादी का वादा कर शारीरिक संबंध बनाने पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि शादी का वादा कर संबंध बनाना हर बार दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है। न्यायालय ने यह भी कहा कि आपसी सहमति से लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाना दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि इस आधार पर दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज नहीं करवाया जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में महिला और अभियुक्त ने लंबे समय तक आपसी सहमति से संबंध बनाए है। ऐसे में दुष्कर्म का प्रकरण नहीं बनता है। इस मामले में रिपोर्ट में भी लंबी अवधि का विलंब भी था। न्यायालय ने कहा कि शारीरिक संबंध बनाने के लिए शादी का वादा करने का प्रलोभन देना और पीड़िता के इस तरह के झांसे में आना संभव हो सकता है। लेकिन शादी का वादा एक लंबे तथा अनिष्चित समय की अवधि में शारीरिक संबंध बनाने के बाद इस तरह के आरोपों को संरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी एक प्रकरण में दिए अपने निर्णय में यही कहा है कि यदि शादी का वादा शुरू से ही झूठा हो तो ही दुष्कर्म माना जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट तथा आरोप पत्र पढ़ने से ही यह स्पष्ट होता है कि जब दोनों के बीच संबंध बना तब उनका शादी करने का कोई इरादा नहीं था और न यह कहा जा सकता है कि शादी करने का वादा झूठा था।
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सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दोनों इस रिश्ते में लगभग डेढ़ वर्ष से थे। बाद में जब प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाई तब तक अभियुक्त और शिकायतकर्ता के बीच संबंध की अवधि एक साल से अधिक की हो चुकी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह दुष्कर्म का मामला नहीं है। इसमें यह भी सिद्ध नहीं हुआ कि शादी का झूठा वादा करके संबंध बनाए हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने पीबी पंवार विरुद्ध महाराष्ट्र राज्य के न्याय दृष्टांत का भी हवाला दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस फैसले में यह ठहराया जा चुका है कि इस प्रकार के आरोपों के लिए यह आवश्यक होना चाहिए कि शादी का वादा झूठा और बुरी नियत से दिया जाना चाहिए।
वादे के समय ही उसे पूरा करने की कोई इच्छा नहीं होनी चाहिए। साथ ही इस प्रकार का वादा किए जाने के बाद तुरन्त कार्यवाही की जानी चाहिए। अभी हाल ही में एक फैसले में कहा गया है कि इस प्रकार के अंतरंग संबंधों के मामलों में दुष्कर्म का कानून लागू नहीं होना चाहिए। कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी एक मामले में कहा कि परिवार के विरोध के कारण शादी का वादा पूरा न करने को दुष्कर्म का मामला नहीं माना जा सकता है। ऐसे मामलों में यह विचारणीय प्रश्न है कि आखिर आपसी सहमति से बने संबंधों को दुष्कर्म कैसे माना जा सकता है।
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‘लिव-इन’ के अलावा आपसी संबंधों के खराब होने, संपत्ति का विवाद अथवा अनबन होने पर दुष्कर्म के आरोप लगाने के प्रकरण तथा कानून के दुरुपयोग के मामले भी प्रकाश में आए हैं। साथ ही मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में दुष्कर्म के मामलों में मुआवजे के प्रावधान होने से भी इस प्रकार के असत्य एवं झूठे आरोप लगाने के मामलों में वृद्धि भी चिंता का विषय है। सन् 2019 में शादी का झांसा देकर दुष्कर्म के 1187 तथा सन् 2020 में 1042 मामले दर्ज करवाए गए। जबकि, दुष्कर्म के मामले क्रमशः 2485 तथा 2339 थे।
ऐसे कई मामले भी प्रकाश में आए हैं जिनमें महिला ने आरोप वापस ले लिए। केवल भोपाल जिले में ही 30 जून 2021 तक 51 पीड़ित महिलाओं को 92 लाख का मुआवजा दिया गया। पीड़िताओं के पुनर्वास के लिए प्रतिकर योजना का उद्देश्य अच्छा है। लेकिन, इसका लाभ लेने के लिए ऐसे प्रकरणों की संख्या का बढ़ना चिंता का सबब है। इस क्षेत्र में कार्य करने वाली माई वेलफेयर सोसायटी ने हाल ही में इस समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया है। देष में इसी प्रकार की कुछ सामाजिक संस्थाएं पीड़ितों को सहायता उपलब्ध करवा रही है।
यह सही है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून है तथा होने भी चाहिए। बनाए भी जाने चाहिए। यह आवश्यक भी है। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस प्रकार की घटनाओं का असर वास्तविक दुष्कर्म के प्रकरणों पर भी होता है। यह भी चिंताजनक स्थिति है कि पुरुष के सम्मान और गरिमा की की बात नहीं की जाती है। इस प्रकार के झूठे प्रकरणों में दोषी पुरुष की प्रतिष्ठा और गरिमा को बहाल करना काफी कठिन है। कानून से बरी होने के बाद भी समाज की नजर से बरी होना कठिन है। इस प्रकार की घटनाओं के बढ़ने से ऐसे पुरूषों की गरिमा की रक्षा के लिए भी आवष्यक कदम उठाए जाने चाहिए। क्योंकि, ऐसे मामलों के आरोपी को काफी समय तक जेल में भी रहना होता है। घटनाओं में दोषी न होते हुए भी बरसों तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद भी ऐसे पुरूषों की सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक प्रभावों की भरपाई असंभव है।
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विनय झैलावत
लेखक : पूर्व असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल एवं इंदौर हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं