आओ सब मिलकर सबके स्वास्थ्य की चिंता करें…

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आओ सब मिलकर सबके स्वास्थ्य की चिंता करें…

देश में छोटी-छोटी जगह तक स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करने का काम सभी राज्यों में चल रहा है। पर सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी को पूरा करना अब भी सरकारों के लिए बड़ी चुनौती है। इस चुनौती से पार पाने की तैयारी भी जगह-जगह मेडिकल कॉलेज खोलकर की जा रही है। ताकि गरीब व्यक्ति को इलाज के लिए परेशान न होना पड़े। आज यह बात इसलिए, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाता है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक स्वास्थ्य का मतलब सिर्फ स्वस्थ खाना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि कैसे दुनिया एक साथ आकर सभी को लंबा और स्वस्थ जीवन जीने में मदद कर सकती है।
चिकित्सा के क्षेत्र में नए खोज, नई दवाओं और नए टीकों को बनाने के साथ ही स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाना भी विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्राथमिकता है। यह उपलब्धि तभी हासिल हो सकती है, जबकि इलाज बेचकर अरबपति और खरबपति बनने का खेल खत्म हो सके। दवाओं को महंगा बेचकर गरीबों की दो वक्त की रोटी पर ग्रहण लगने के हालात पूरी तरह खत्म हो सकें। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस साल “हेल्थ फॉर ऑल” थीम के साथ विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने का फैसला किया है। यह तभी संभव है, जब डॉक्टर की संवेदनशीलता दैवीय स्वरूप में ढलकर मरीजों की सेवा का पर्याय बन जाए। वहीं दवाओं का बाजार गरीबों की लूट का साधन बन चमड़ी निकालने के रूप में अस्तित्व में न रह पाए। गरीबों के इलाज के लिए पांच लाख का आयुष्मान कार्ड‌ किसी साजिश का शिकार न बने और इतनी राशि से हर गरीब का इलाज संभव हो सके।
भारत की आबादी में आज भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का बड़ा हिस्सा गरीबी से जूझ रहा है। तो छोटा किसान दैवीय आपदा का मारा अब भी बेचारा की श्रेणी में ही समाहित है। और सभी वर्गों में गरीबी के हालात आंखों को नम करने के लिए काफी हैं। ऐसे में इस बार का विषय इस सोच को दर्शाता है कि स्वास्थ्य एक बुनियादी मानव अधिकार है और हर किसी को बिना किसी वित्तीय कठिनाइयों के जब और जहां इसकी आवश्यकता हो उसे स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी ही चाहिए। इस साल डब्ल्यूएचओ अपनी 75वीं वर्षगांठ भी मना रहा है।
इस दिन खास बनाने के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन उन सार्वजनिक स्वास्थ्य सफलताओं को भी देखेगा, जिन्होंने पिछले सात दशकों के दौरान जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया है। पर एक पक्ष यह भी है कि दुनिया की करीब 30 फीसदी आबादी आज तक जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं तक नहीं पहुंच पाई है। दो अरब लोग स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं क्योंकि उनके पास सेहत पर खर्च करने के लिए पैसे नहीं हैं। दुनिया भर में लगभग 930 मिलियन लोगों को अपने घरेलू बजट का 10 प्रतिशत या उससे अधिक स्वास्थ्य पर खर्च करना पड़ रहा है, जिससे उनकी वित्तीय हालत और खराब हो रही है। इन हालातों में सुधार हो, यह सभी की संवेदनशीलता, मानवीयता और करुणा से ही संभव है।
विश्व स्वास्थ्य दिवस की शुरुआत विश्व स्वास्थ्य संगठन की नींव रखने के दिन के रूप में की गई थी। साल 1948 में, दुनिया के तमाम देशों ने एक साथ मिलकर स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, दुनिया को सुरक्षित रखने और कमजोर लोगों की सेवा करने के लिए डब्ल्यूएचओ की स्थापना की, ताकि हर व्यक्ति हर जगह स्वस्थ्य रहे और उच्चतम स्तर की मदद प्राप्त कर सके। इसके दो साल बाद 1950 में पहला विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल को मनाया गया और तब से यह हर साल इसी दिन मनाया जाता है। तो डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी डेटा ने भारत में एक और बढ़ते स्वास्थ्य संकट पर प्रकाश डाला है और यह है मोटापा और एनीमिया।
रिपोर्ट के अनुसार, अब पुरुषों की तुलना में दोगुनी संख्या में महिलाएं एनीमिया से प्रभावित हो रही हैं। वहीं मोटापे के मामले में आंकड़ों पर नजर डालें तो महिलाओं में मोटापा 2015-16 में 21 प्रतिशत से बढ़कर 2019-20 में 24 प्रतिशत हो गया है। इनके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात, महाराष्ट्र सहित भारत के प्रमुख राज्यों में बच्चों में भी मोटापे में वृद्धि देखी जा रही है। मोटापे की यह बीमारी अब सब बीमारियों पर भारी पड़ रही है। इसके समाधान की दिशा में सब मिलकर ही सार्थक परिणाम की उम्मीद जगा सकते हैं। तभी सभी के लिए स्वास्थ्य का सपना साकार हो सकेगा।आओ सब मिलकर सबके स्वास्थ्य की चिंता करें… तभी विश्व स्वास्थ्य संगठन की यह थीम “सबके लिए स्वास्थ्य” चरितार्थ हो सकेगी। और डॉक्टर धरती पर भगवान का वरदान बन सभी के दिलों को खुशियों से भर सकेगा।