गांधी-शास्त्री से आज मिलवाते हैं हंगपन दादा को…
आज यानि 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री का जन्मदिन है। दोनों नेताओं को ही पूरा देश और देशवासी जानते हैं। मोहनदास करमचन्द गांधी (जन्म: 2 अक्टूबर 1869 – निधन: 30 जनवरी 1948) जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है, भारत एवं भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार का प्रतिकार करने के समर्थक अग्रणी नेता थे। उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी, जिसने भारत सहित पूरे विश्व में जनता को नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया महात्मा गांधी के नाम से जानती है। वहीं लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, मुगलसराय में हुआ था।लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। उनका पूरा जीवन ही प्रेरणादायक है। ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा में वह आदर्श हैं। यह दोनों ही महापुरुष आजादी के पहले जन्मे थे और आजाद भारत में इनका निधन हुआ था। गांधी और शास्त्री आओ आज हम तुम्हें एक और महान पुरुष हंगपन दादा से मिलवाते हैं। जिनकी शहादत एक मिसाल हैं। राष्ट्र की सेवा में जिन्होंने कर्तव्य की बलिबेदी पर खुद को न्यौछावर कर दिया। थे तो वह सैनिक, पर उनका समर्पण और त्याग अतुलनीय है। हवलदार हंगपन दादा , ए.सी. (2 अक्टूबर 1979 – 26 मई 2016) भारतीय सेना की असम रेजिमेंट में एक सैनिक थे। उन्हें अगस्त 2016 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च शांतिकालीन सैन्य सम्मान अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था। दादा का जन्म भारत के अरुणाचल प्रदेश के तिरप जिले के बोरदुरिया गाँव में हुआ था। बचपन में उन्होंने अपने दोस्त को नदी में डूबने से बचाया था। और बड़े होकर भारत की सेना को गौरवान्वित होने का अवसर दिया था।
‘अशोक चक्र’ से सम्मानित भारतीय सेना के जांबाज सैनिक हंगपन दादा 28 अक्टूबर 1997 को 3 पैरा (एसएफ) में शामिल हुए। 2005 में, उन्हें असम रेजिमेंटल सेंटर में स्थानांतरित कर दिया गया और 24 जनवरी 2008 को, वे 4 वीं बटालियन, असम रेजिमेंट में शामिल हो गए। इसके बाद उन्होंने जम्मू और कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में ऑपरेशन पर 26 वीं राष्ट्रीय राइफल्स बटालियन में स्थानांतरण का अनुरोध किया। उन्हें मई 2016 में 35 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात किया गया था, जिस इकाई के साथ सेवा करते हुए वह शहीद हुए थे। 26 मई 2016 की रात को, दादा ने 35 राष्ट्रीय राइफल्स के साबू पोस्ट कमांडर के रूप में, अपने सेक्शन के साथ 12,500 फीट पर एक पड़ाव स्थापित करते हुए, जम्मू और कश्मीर के नौगाम में शमशबारी रेंज में छिपे हुए आतंकवादियों के खिलाफ एक अभियान का नेतृत्व किया, जिसके परिणामस्वरूप चार भारी हथियारों से लैस आतंकवादी मारे गए।उन्होंने अपनी टीम के साथ इलाके में आतंकवादियों की हलचल देखी और उनसे भीषण मुठभेड़ की, जो 24 घंटे से अधिक समय तक चली। उन्होंने उस स्थान पर हमला किया जहां आतंकवादी थे और दो आतंकवादियों को मौके पर ही मार गिराया और बाद में तीसरे को हाथापाई के बाद मार गिराया क्योंकि वे पहाड़ी से नीचे नियंत्रण रेखा की ओर खिसक रहे थे। छिपे हुए चौथे आतंकवादी की ओर से अचानक हुई स्वचालित गोलीबारी में दादा को गोली लग गई। दादा ने अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की परवाह किए बिना, एक मुठभेड़ में तीन आतंकवादियों को मार गिराया और चौथे को घायल कर दिया। जिससे घुसपैठ की कोशिश नाकाम हो गई और उनके लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित हो गई। उन्हें मरणोपरांत सम्मानित किया गया। सरकार ने 2017 में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर शांतिकालीन अभियानों के दौरान सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, अशोक चक्र की घोषणा की। हंगपन दादा की विधवा को 26 जनवरी 2017 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से अशोक चक्र प्राप्त हुआ।
हंगपन दादा की सेवा को याद करने के लिए, असम रेजिमेंटल सेंटर (एआरसी) ने अपने मुख्यालय में मुख्य कार्यालय ब्लॉक का नाम हंगपन दादा के नाम पर रखा। पट्टिका का उद्घाटन दादा की पत्नी ने किया। अरुणाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने मुख्यमंत्री ट्रॉफी के लिए वार्षिक फुटबॉल और वॉलीबॉल (पुरुष और महिला) टूर्नामेंट का नाम बदलकर हंगपन दादा मेमोरियल ट्रॉफी कर दिया। ऊपरी सुबनसिरी जिले के दापोरिजो में सुबनसिरी नदी पर बने पुल का नाम हंगपन दादा के नाम पर रखा गया है। 27 अप्रैल 2017 को, पश्चिम बंगाल के लोगों द्वारा श्रद्धांजलि के रूप में कोलकाता के ईडन गार्डन में एक स्टैंड का नाम हवलदार हंगपन दादा के नाम पर रखा गया।
आज जब पूरा देश गांधी और शास्त्री को याद कर रहा है, तब वीरता, शौर्य, त्याग, समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा के पर्याय हंगपन दादा का नाम शायद ही कोई जानता हो। पर हंगपन दादा अशोक चक्र पाने वाले गिने-चुने नामों में शामिल हैं। अशोक चक्र भारत का शांति के समय दिया जाने वाला सबसे ऊँचा वीरता पदक है। यह सम्मान सैनिकों और असैनिकों को असाधारण वीरता, शूरता या बलिदान के लिए दिया जाता है। यह मरणोपरान्त भी दिया जा सकता है। अशोक चक्र राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया जाता है। 1952 से अब तक केवल 70 नाम ही इस सूची में शामिल हैं।
आज देश को हंगपन दादा को न केवल याद करना चाहिए, बल्कि युवाओं को इनकी वीरता और जांबाजी की कहानी भी सुनाई जानी चाहिए। राष्ट्रभक्ति के पर्याय हंगपन दादा को गांधी और शास्त्री के साथ याद कर हर भारतीय गर्व से भर जाएगा। खुद गांधी और शास्त्री भी अगर होते तो हंगपन दादा को सम्मान की नजर से ही देखते और सेल्यूट भी करते। आज यह तीनों ही दुनिया में नहीं है, ऐसे में गांधी और शास्त्री संग हंगपन दादा की यह शाब्दिक मुलाकात भी मन को सुकून देने वाली है…।