चीरहरण का चुनावी मुद्दा विपक्ष के दिग्गज नेताओं के लिए काला टीका

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चीरहरण का चुनावी मुद्दा विपक्ष के दिग्गज नेताओं के लिए काला टीका

चीरहरण भरे दरबार में नहीं दिल्ली राज्य के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के शीश महल की ख़ास बैठक में होने का आरोप प्रतिपक्ष के इंडी गठबंधन के महारथियों के लिए सिरदर्द बन गया है | मुंबई  में महाअगाडी की अंतिम सभा में केजरीवाल के अनर्गल प्रलाप के बाद मराठा क्षत्रप और वर्तमान राजनीति के शीर्ष प्रतिपक्षी नेता शरद पवार के माइक पर पहुँचने के साथ लोगों के उठकर जाने से जनता के आक्रोश को समझा जा सकता है | सचमुच यह भारत ही नहीं शायद विश्व के किसी  लोकतान्त्रिक  देश की पहली रिकॉर्ड घटना है , जब एक मुख्यमंत्री के अपने भव्य बंगले के प्रमुख कमरे में उसीकी पार्टी की महिला सांसद की बर्बरता से पिटाई और कपड़े फाड़ने की पुलिस रिपोर्ट दर्ज हुई और गंभीर मामला अदालत जाएगा | लोक सभा चुनाव के अंतिम तीन दौर शरद पवार ही नहीं इस गठबंधन के अन्य बड़े साझेदार लालू प्रसाद यादव , सोनिया राहुल गाँधी , ममता बनर्जी , हेमंत शिबू सोरेन , के कविता चंद्रशेखर राव , उद्धव ठाकरे , फारुक अब्दुल्ला की प्रतिष्ठा और भविष्य के लिए निर्णायक है | शरद पवार को बेटी सुप्रिया , लालू यादव को अपनी बेटियों मीसा और अपर्णा , सोनिया को राहुल के साथ बेटी प्रियंका , अखिलेश यादव को पत्न्नी डिम्पल , के सी` आर को बेटी कविता के लिए सत्ता के ताज पहनाने के प्रयास का शक्ति परीक्षण है और अन्य नेताओं को भी अपने` बेटे बेटियों , पत्नी , भतीजे भतीजी के साथ  करोड़ो महिलाओं को सामजिक सुरक्षा का विश्वास दिलाने की चुनौती है | दूसरी तरफ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को करोड़ों महिलाओं के समर्थन का विश्वास है |

खबरों की खबर : लोकसभा चुनाव से पहले ईडी की जांच पर क्यों हो रही सियासत?

सबसे दिलचस्प पहलु यह है कि शरद पवार , सोनिया गाँधी , लालू प्रसाद यादव , के सी आर , के विजयन , शिबू सोरेन पांच वर्ष बाद होने वाले लोक सभा चुनाव के मंचों पर कोई बड़ी भूमिका में दिखाई नहीं देंगे | उनकी राजनीतिक विरासत की दशा दिशा पर पता नहीं कितनी ख़ुशी कितना दर्द दिखेगा | यह परिवार भारतीय राजनीति की` आधी शताब्दी के प्रमुख किरदार रहे हैं | जनता के बीच बराबर यह सवाल भी उठ रहा है कि इन पुराने दिग्गज राजनेताओं को दस वर्ष पहले उभरे सबसे अविश्वसनीय , महत्वाकांक्षी , विवादास्पद अरविन्द केजरीवाल और उनकी छोटी सी पार्टी का सहारा लेने की क्या मज़बूरी है ?  शरद पवार को महाराष्ट्र के मराठा और मुस्लिम मतदाताओं का , लालू और अखिलेश यादव को यादव मुस्लिम वोट बैंक , सोनिया गाँधी को भी दलित पिछड़े मुस्लिम वोट , के सी आर को तेलगु और मुस्लिम मतदाताओं से अपने टूटे फूटे महल बचाने की उम्मीद है और इन सभी वर्गों में महिलाओं की आन बान परिवार की इज्जत से बड़ी कोई चीज नहीं है | छत्रपति शिवाजी , तिलक , गांधी , अम्बेडकर के नाम और आदर्शों का बखान करते हुए शराब घोटाले , जल बोर्ड घोटाले तथा महिला सांसद की निर्मम पिटाई के गंभीर आरोपों से फंसी पार्टी के नेता को अपने चुनावी रथ पर बैठाकर घूमने से क्या चुनाव में जन समर्थन मिल सकता है ?

क़ानूनी दांव पेंच और अनर्गल प्रचार पर करोड़ो रूपये खर्च करने पर यदि चुनावी सफलता या सत्ता मिल सकती , तो पवार , गाँधी परिवार , लालू मुलायम , मायावती , ओमप्रकाश चौटाला ,  सुखबीर बादल , चंद्रबाबू नायडू या फारुक अब्दुल्ला की पार्टियों की दुर्दशा जैसी स्थिति नहीं होती | राहुल गांधी और अरविन्द केजरीवाल ने अपनी छवि चमकाने के लिए विज्ञापन और इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों पर बहुत खर्च किया , लेकिन अमेरिका की तरह भारत में वोट कभी नहीं मिल सकते हैं | इतने बड़े इमेज प्रबंधन के बावजूद राहुल गांधी ने पिछले पांच वर्षों में अमेठी रायबरेली जाना दूर किसी ‘ परम प्रिय ‘ पत्रकार के सामने बैठकर ऑन रिकॉर्ड इंटरव्यू तक नहीं दिया | अपनी जीवन शैली पर फ़ूड ट्रेवल यू ट्यूब चैनल कर्ली ट्रेवल्स की काम्या जानी को जरुर अपनी भारत यात्रा के दौरान एक इंटरव्यू दिया |  वर्षों पहले टाइम्स नाउ  न्यूज़ चैनल के तत्कालीन संपादक अर्नब गोस्वामी के सामने बैठकर इंटरव्यू में जाने क्यों अपने को विफल समझ आज तक वह किसी एक के सामने बैठकर इंटरव्यू देने की हिम्मत नहीं जुटा सके | हाँ , कभी पंचायत , नगर निगम , विधान सभा , लोक सभा का चुनाव लाडे बिना केवल पार्टी के विधायकों के समर्थन के जुगाड़ से चार बार राज्य सभा में विराजे रणनीतिकार जयराम रमेश के साथ बैठकर नियंत्रित प्रेस कॉन्फ्रेंस बहुत सी  की , ताकि किसीको एक दो से अधिक असहज सवाल कोई पत्रकार नहीं कर सके |  अपनी मांद में बैठकर शेर  दहाड़ते रहने पर तो न जंगल के जानवर भागते हैं और न ही शिकार डरा सहमा गुफा मेंआकर शिकार के लिए समर्पण करता है | इसलिए केवल गांधी परिवार के पुराने त्याग बलिदान के नाम पर भावनाओं से खेलकर अधिक समय तक जनता के दिल दिमाग पर राज करना कहाँ तक उचित है |केवल परिवार और भावना से विजय होती हो  तो महात्मा गाँधी के पोते  राजमोहन गांधी ( देवदास गांधी के विद्वान ईमानदार पुत्र राजमोहन गांधी 1989 के चुनाव  में राजीव गांधी से करीब 2 लाख 71 हजार वोट से नहीं पराजित होते | तब चर्चा यह थी कि असली गांधी ( मतलब महात्माजी के पोते ) और अपना गांधी ( भाई संजय गाँधी द्वारा इंदिरा राज में बनाई राजनीतिक जमीन अमेठी रायबरेली में सक्रीय रहे राजीव ) के बीच चुनाव है | यही नहीं सुप्रसिद्ध लेखक चिंतक होने के बावजूद दिल्ली में केजरीवाल के भ्रम जाल में फंसकर आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार बनकर लोक सभा का चुनाव लड़ने पर बुरी तरह पराजित हुए | आजादी दिलाने वाले महात्मा गांधी के काबिल पोते गलत पार्टी के कारण दोनों बार कांग्रेस पार्टी के कारण हारे | तब आम आदमी पार्टी ने इस बार की तरह कांग्रेस से समझौता नहीं किया था | कांग्रेस से  दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित और भाजपा से महेश गिरी उम्मीदवार थे और गिरी जीत गए |

जहां हुआ लाल बहादुर शास्त्री का निधन, वो जगह अब किस देश में है? पढ़ें उनकी  जिंदगी से जुड़े पांच रोचक किस्से | 2nd October Gandhi Jayanti Lal Bahadur  Shastri Jayanti History

गांधीजी के बाद भारत में ईमानदारी के आदर्श नेता के रुप में लालबहादुर शास्त्रीजी का नाम लिया जाता है | उन्हें  नेहरु के बहुत करीबी शीर्ष नेता और बाद में प्रधान मंत्री रहकर 1965 में पाकिस्तान की` पराजय तथा जय जवान जय किसान के नारे से लोकप्रिय जन नेता माने जाने के बावजूद उनके जीवन काल में परिवार के किसी सदस्य को सत्ता की राजनीति में स्थान नहीं मिला | यहाँ तक कि उनके बेटों को सरकारी कार या सुविधा लेने पर भी उन्होंने कड़ी रोक लगाई थी | शास्त्रीजी के निधन के बाद अवश्य उनके बेटे और परिवार के सदस्य राजनीति में आए , विधायक , मंत्री , सांसद रहे , लेकिन कभी शीर्ष पदों मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के दावेदार तक नहीं बान सके | उनके तीन  बेटों हरिकृष्ण , सुनील और अनिल शास्त्री से मेरा अच्छा परिचय रहा , मिलना हुआ , उनकी गतिविधियों पर बहुत कुछ लिखा भी | हाँ यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने शास्त्री परिवार को अधिक महत्व नहीं मिलने दिया | इसीलिए बेटे , पोते विभिन्न दलों जनता दल , भारतीय जनता पार्टी , आम आदमी पार्टी , राष्ट्रीय लोकदल पार्टियों में सक्रिय होकर कुछ सामाजिक राजनीतिक गतिविधियां करते रहे हैं | मतलब राजशाही की तरह लोकतंत्र में विरासत से सत्ता का सिंहासन नहीं मिल सकता है |

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।