झूठ बोले कौआ काटे: सावधान! वो हमें लील रहा…
आज भोपाल गैस त्रासदी दिवस है। कल, दिल्ली में रह रहे मुजफ्फरपुर के पुराने सहकर्मी उदय मिश्रा खांसते हुए एनसीआर के प्रदूषण को कोस रहे थे। एक हफ्ता पहले मेरी भांजी की 7-8 वर्ष की बेटी नोएडा के खतरनाक प्रदूषण की चपेट में आ गई, और श्वसन संक्रमण के चलते आईसीयू में भर्ती करना पड़ा। पिछले महीने यूं ही नहीं, दिल्ली में प्राथमिक स्कूलों को शनिवार को बंद करने की घोषणा की गई। वहीं सरकारी और प्राइवेट दफ्तरों में भी केवल 50 प्रतिशत लोगों को काम करने की सलाह दी गई।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार व्यापक वायु प्रदूषण और घरेलू वायु प्रदूषण के मिले-जुले प्रभाव से हर साल 70 लाख अकाल मृत्यु होती हैं। दिल्ली-एनसीआर के लोग गंभीर वायु प्रदूषण से जूझ रहे हैं। ऐसे में राजधानी और पड़ोसी शहरों में ब्रोंकाइटिस के मामले बढ़ रहे हैं। दुनिया भर में दस में से नौ लोगों की सुरक्षित हवा तक पहुंच नहीं है। इसके परिणामस्वरूप लंबी अवधि में श्वसन संबंधी विकार, फेफड़ों के कैंसर, मस्तिष्क या गुर्दे की खराबी और हृदय रोग का खतरा सिर पर होता है।
दिल्ली में 2021 की सर्दियों (15 अक्टूबर 2021-15 जनवरी 2022) के दौरान, लगभग 75 प्रतिशत दिनों में वायु गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी में रही। दिलचस्प बात यह है कि 2020 की तुलना में 2021 में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की अधिक घटनाओं के बावजूद, 2021 में पराली जलाने की अवधि (यानी 15 अक्टूबर से 15 नवंबर) के दौरान दिल्ली में पीएम2.5 की सघनता कम थी। इस अवधि में बेहतर मौसम संबंधी स्थितियां जैसे तेज हवा की गति और बारिश के दिनों की अधिक संख्या इसकी वजह बने।
बोले तो, वायु प्रदूषण का खतरा पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी फैल गया है। जहां पिछले महीने सात शहरों में वायु गुणवत्ता ‘खराब’ और चार में ‘बहुत खराब’ दर्ज की गई। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, 357 के वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के साथ नोएडा राज्य के चार्ट में सबसे ऊपर है, इसके बाद मुजफ्फरनगर (332), गाजियाबाद (322), और ग्रेटर नोएडा (312) का स्थान है। खराब वायु गुणवत्ता वाले सात शहरों में झांसी (277), प्रयागराज (275), बागपत (270), कानपुर (236), मेरठ (225), लखनऊ (216) और बुलंदशहर (219) शामिल हैं। हालांकि, राज्य के किसी भी शहर ने ‘गंभीर’ के निशान को पार नहीं किया।
एक नए लैंसेट अध्ययन के अनुसार, 2019 में भारत में प्रदूषण के कारण 23 लाख से अधिक अकाल मृत्यु हुई। अकेले वायु प्रदूषण के कारण लगभग 16 लाख मौतें हुईं, और 5 लाख से अधिक जल प्रदूषण के कारण हुईं। इनमें से अधिकांश मौतें पार्टिकुलेट मैटर 2.5 (पीएम2.5) प्रदूषण के कारण हुईं। अध्ययन के अनुसार, घरों में बायोमास को जलाना भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण था, इसके बाद कोयला दहन और पराली जलाना था।
झूठ बोले कौआ काटेः
इतिहास गवाह है कि 2-3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली ‘मिथाइल आइसोसाइनेट’ गैस रिसने के बाद हजारों लोग मारे गए और कई लाख प्रभावित हुए। जो प्रभावित लोग बच गए, उन्हें आगे चल कर अनेक शारीरिक और मानसिक परेशानियां उठानी पड़ीं। गैस त्रासदी के दौरान जान गंवाने वाले लोगों की स्मृति में 2 दिसंबर को दुनियाभर मे राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने का उद्देश्य लोगों को उन चीजों के प्रति जागरूक करना है, जो विभिन्न तरह के प्रदूषण का कारण बनती हैं जैसे हवा, मिट्टी, शोर आदि।
प्रदूषण वैश्विक स्तर पर बीमारी और समय से पहले मृत्यु के सबसे बड़े जोखिम कारकों में से एक है। स्वास्थ्य पर प्रदूषण का प्रभाव युद्ध, आतंकवाद, मलेरिया, एचआईवी, तपेदिक, ड्रग्स और शराब से अधिक है और प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या धूम्रपान के कारण होने वाली मौतों की संख्या के बराबर है।
हर साल, 32 लाख लोग समय से पहले बीमारियों से मर जाते हैं, जो खाना पकाने के लिए उपयोग किए जाने वाले ठोस ईंधन और मिट्टी के तेल के अधूरे दहन के कारण होने वाले घरेलू वायु प्रदूषण के कारण होता है। घरेलू वायु प्रदूषण में पार्टिकुलेट मैटर और अन्य प्रदूषक वायुमार्ग और फेफड़ों में जलन पैदा करते हैं, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को क्षीण करते हैं और रक्त की ऑक्सीजन-वहन क्षमता को कम करते हैं।
इस्केमिक हृदय रोग के कारण होने वाली सभी मौतों में से 12%, अर्थात् सालाना दस लाख से अधिक, समय से पहले होने वाली मौतों के लिए लेखांकन, घरेलू वायु प्रदूषण के संपर्क के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है; स्ट्रोक के कारण होने वाली सभी मौतों में से लगभग 12% घर में ठोस ईंधन और मिट्टी के तेल के उपयोग से उत्पन्न होने वाले घरेलू वायु प्रदूषण के दैनिक जोखिम को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है; घरेलू वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से बचपन का ‘निचला श्वसन संक्रमण’ का जोखिम लगभग दोगुना हो जाता है और 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया से होने वाली 44% मौतों के लिए जिम्मेदार है। घरेलू वायु प्रदूषण वयस्कों में तीव्र निचले श्वसन संक्रमण के लिए एक जोखिम है और निमोनिया के कारण होने वाली सभी वयस्कों की मौतों में 22% योगदान देता है।
लैंसेट आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने विशेष रूप से महत्वाकांक्षी प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना के साथ वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयास किए हैं। अध्ययन में कहा गया है, “भारत ने प्रदूषण स्रोतों को कम करने के लिए उपकरण और नियामक शक्तियां विकसित की हैं, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों को चलाने और पर्याप्त सुधार हासिल करने के लिए कोई केंद्रीकृत प्रणाली नहीं है।”
दूसरी ओर, यूनिटी हेल्थ टोरंटो के एक वैज्ञानिक प्रो. प्रभात झा और उनके सहयोगियों का आकलन है कि भारत में वायु प्रदूषण की घातकता को अधिक आंका जा रहा है। झा कहते हैं, “पीएम2.5 भारत में बड़ा हत्यारा नहीं हो सकता है, लेकिन पीएम2.5 के जोखिम को कम करने की कार्रवाई अभी भी आवश्यक है।” झा कहते हैं, “वायु प्रदूषण बच्चे के फेफड़ों के स्वास्थ्य को खराब करता है और जीवन की गुणवत्ता को कम करता है, और प्रदूषण के विरूद्ध कार्य करने के लिए पर्याप्त औचित्य है।”
वायु प्रदूषण के कई कारण हैं, जो इसे आज के समय में एक सर्वव्यापी समस्या बना देते हैं। हालांकि, आमतौर पर यह बढ़ते परिवहन, औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण होता है। इसलिए, मानवजनित गतिविधियां वायु प्रदूषण का मुख्य कारण हैं जो अंततः मानव स्वास्थ्य, वनस्पति और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि वायु प्रदूषण एक धीमे जहर की तरह है और शरीर में धीरे-धीरे बढ़ता है। यह एक न दिखने वाले दुश्मन की तरह है, बिना किसी को खबर दिए शरीर को नुकसान पहुंचाता रहता है। किसी भी व्यक्ति को तब तक पता नहीं चलेगा कि खराब हवा उसके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है, जब तक कि यह उसके रोजमर्रा के कामों में बाधा न डालने लगे और उसकी कार्य शक्ति कम न हो जाए।
विश्व की सबसे बड़ी त्रासदी भोपाल गैस कांड से बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है, जिसका दंश 38 साल बाद भी लोग झेल रहे। जो काल-कवलित हो गए उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!
और ये भी गजबः
पर्यटन केंद्रों पर सबसे अधिक शिकायत आने वाले पर्यटकों की तरफ से प्रदूषण फैलाए जाने की होती है। सैलानी घूमने तो जाते हैं, मगर साथ लाया कूड़ा कचरा, खाली डब्बे, प्लास्टिक की बोतलें वहीं फेंक आते हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है। ऐसे में, असम निवासी चंदन नाथ एक ऐसे नागरिक हैं, जो प्लास्टिक के खिलाफ अभियान में मिसाल बन गए है। चंदन प्रदूषण को रोकने के लिए अनूठी मुहिम शुरू कर चुके हैं। चंदन काजीरंगा इलाके में ही रहते हैं और आने वाले सैलानियों को सफारी के लिए काजीरंगा नेशनल पार्क ले जाते हैं।
इस क्षेत्र में प्लास्टिक की बोतल ले जाना प्रतिबंधित है और चंदन नाथ पर्यटकों से अनुरोध भी करते हैं कि वे प्लास्टिक की पानी की बोतल न ले जाएं। पानी की बोतल न ले जाने पर सैलानियों को समस्या न हो, इसके लिए चंदन नाथ इलाके में ही उगने वाले बांस की बोतल उपलब्ध करवाते हैं। कीमत मात्र 20 रुपये। ये न तो सैलानियों के लिए हानिकारक है और न ही पर्यावरण के लिए। विगत चार वर्षों से चंदन नाथ इस मुहिम को अंजाम दे रहे हैं। खूबी ये है कि चंदन स्वयं ये बोतल बनाते भी