झूठ बोले कौआ काटे! आजाद ने सच किया स्वीकार, कट्टरपंथियों में हाहाकार

झूठ बोले कौआ काटे! आजाद ने सच किया स्वीकार, कट्टरपंथियों में हाहाकार

– रामेन्द्र सिन्हा

ड्रेमोक्रेटिव प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी सुप्रीमो गुलाम नबी आजाद ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि, हिंदू धर्म इस्लाम से भी काफी पुराना है। इस्लाम का जन्म 1500 साल पहले हुआ था। भारत में कोई भी बाहरी नहीं है। भारत के सभी मुसलमान पहले हिंदू ही थे, जो बाद में कंवर्ट हो गए। आजाद के बयान के बाद  राजनीति गर्मा गई है, धर्मगुरु भी अखाड़े में आ गए हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद ने वायरल हो रहे अपने भाषण में कहा कि 600 साल पहले कश्मीर में केवल कश्मीरी पंडित रहा करते थे। फिर कई लोग कन्वर्ट होकर मुसलमान बन गए। उन्होंने लोगों से शांति-भाईचारा और एकता बनाए रखने की अपील करते हुए कहा, धर्म को राजनीति के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। लोगों को धर्म के नाम पर वोट नहीं देना चाहिए।

झूठ बोले कौआ काटे! आजाद ने सच किया स्वीकार, कट्टरपंथियों में हाहाकार

गुलाम नबी आजाद अपने भाषण में हिंदू-मुस्लिम विवाद को निरर्थक साबित करने की कोशिश करते हुए कहा,  “मैंने पार्लियामेंट में बहुत सारी बातें बोलीं, हमारे बीजेपी के किसी लीडर ने बोला कि कोई बाहर से आया है कोई अंदर से आया है। मैंने कहा, कोई बाहर से नहीं आया। इस्लाम तो आया ही है 1500 साल पहले, हिंदू धर्म बहुत पुराना है। बाहर से आए होंगे 10-20 लोग… जो मुग़लों की फौज में थे। बाकी सब तो हिंदू से ही कन्वर्ट हुए हैं मुसलमान हिंदुस्तान में। इसकी मिसाल हमारे कश्मीर में है। कश्मीर में कौन था 600 साल पहले मुसलमान? सब कश्मीरी पंडित थे। फिर सबने इस्लाम धर्म अपना लिया।” इससे पहले गुलाम नबी आजाद कह चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर के लोगों को 370 के रद्द होने को भुलाकर आगे की राह चुननी चाहिए।

आजाद के ताजा बयान पर तंज कसते हुए महबूबा मुफ्ती ने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि गुलाम नबी आजाद कितना पीछे जा रहे हैं। अगर वह थोड़ा और पीछे गए तो कहीं ऐसा न हो कि उनके पूर्वज बंदर निकल जाएं।’ वहीं, नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि उन्होंने (आजाद) यह किस संदर्भ में कहा है। ऐसा कहकर वह किसे खुश करना चाहते हैं।’ उत्तर प्रदेश के सपा सांसद डॉ एस टी हसन ने कहा कि इस्लाम धर्म तो 8 हजार साल से भी पहले से है। इस्लाम में बहुत से पैगम्बर हुए, मोहम्मद साहब अंतिम पैगम्बर थे। जिन पर अल्लाह के सन्देश 1450 साल पहले पूरे हुए हैं।

झूठ बोले कौआ काटेः

चर्चित लेखक खुशवंत सिंह ने सन् 2007 में ‘द ट्रिब्यून’ में एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने बताया था कि ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा..’ गीत लिखने वाले अल्लामा इकबाल के पूर्वज कश्मीरी हिंदू थे। उनके परदादा बीरबल सप्रू थे। बीरबल सप्रू के तीसरे बेटे कन्हैया लाल अल्लामा इकबाल के दादा थे। उनकी दादी का नाम इंद्राणी सप्रू था। इकबाल के पिता रतन लाल इन्हीं के बेटे थे। खुशवंत सिंह ने लिखा है कि रतन लाल का जन्म हिंदू परिवार में हुआ। बाद में वो इस्लाम कुबूल करके नूर मोहम्मद बन गए।

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला कश्मीर के बड़े नेता थे। अपनी ऑटोबायोग्राफी आतिश-ए-चिनार में शेख अब्दुल्ला ने अपने हिंदू पूर्वजों के बारे में बताया है। शेख अब्दुल्ला ने लिखा है कि उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे। उनके परदादा का नाम बालमुकुंद कौल था। उनके पूर्वज मूल रूप से सप्रू गोत्र के कश्मीरी ब्राह्मण थे। पुस्तक के अनुसार अफगान शासनकाल में उनके पूर्वज रघुराम ने एक सूफी के हाथों इस्लाम कबूल किया था। वैसे फारूक अब्दुल्ला भी कई बार सार्वजनिक मंचों से ये बात स्वीकार कर चुके हैं कि उनका हिंदू धर्म से संबंध रहा है। उन्हें कई बार मंदिरों में सांस्कृतिक विधि-विधान से पूजा करते हुए भी देखा गया है।

लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स में प्रोफेसर रह चुके सुमंत्र बोस ने अपनी पुस्तक कश्मीर ऐट द क्रासरोड्स में  लिखा है कि कश्मीर में इस्लाम का प्रसार 600 साल पहले 14वीं शताब्दी में शुरू हुआ। कश्मीर में तीन लोगों सैय्यद अली हमदानी, शेख नूरानी और ज़ैन-उल-अबिदीन ने इस्लाम को तेजी से फैलाया। ईरान से सूफी संत मीर सैय्यद अली हमदानी 1370 से 1380 के बीच तीन बार अपने अनुयायियों के साथ कश्मीर आए। इनमें से कई कश्मीर में रुक गए.

शेख नूरुद्दीन नूरानी ने 1400 से 1440 के बीच इस्लाम को फैलाया। ये भी एक दिलचस्प बात है कि कश्मीर में शेख नूरुद्दीन नूरानी को नंद ऋषि के नाम से भी जाना जाता है। कश्मीर में इस्लाम का सबसे तेज प्रसार पंद्रहवीं शताब्दी में सुल्तान ज़ैन-उल-अबिदीन के शासनकाल में हुआ। इस दौरान बड़ी संख्या में हिंदू अपना धर्म छोड़कर मुसलमान बन गए।

बोले तो, आधुनिक काल के अनेक पुरातत्व वैज्ञानिक इस बात की खोज कर चुके हैं कि इस्लाम धर्म के उद्भव से पहले अरब में वैदिक धर्म का ही पालन किया जाता था। अमेरिकन रिव्यू कमेटी द्वारा संपादित होली बाइबल में प्रकाशित तस्वीर में प्राचीन अरब की रहने वाली महिला, बुरका पहने और माथे पर तिलक धारण किए दिखाई देती है। वदुवुर के. दुरईस्वामी आयंगर द्वारा लिखी पुस्तक ‘द मार्वलेस डिस्कवरी अबाउट आर्यंस, जीसस क्राइस्ट एंड अल्लाह’ और ‘द मिसिंग लिंक्स’ में भी ऐसी तस्वीरों को स्थान दिया गया है।

ऐसे ही तिलक के निशान ऑस्ट्रेलियाई बुशमैन, मिस्र के शासकों और पिरामिड बनाने वाले वास्तुकारों के माथे पर भी देखे जा सकते थे। अंग्रेजी के ‘यू’ अक्षर के रूप में बने ये तिलक के निशान, भगवान विष्णु के अनुयायियों द्वारा अपने माथे पर धारण किए जाते थे। इसके अतिरिक्त विष्णु के अवतार, जैसे भगवान राम और श्रीकृष्ण के माथे पर भी ऐसे ही तिलक के निशान हुआ करते थे।

इस्लाम धर्म के पवित्र स्थान मक्का के काबा में भी हिन्दू सम्राट विक्रमादित्य का संदर्भ मिलता है। काबा से प्राप्त हुए अभिलेख में यह उल्लिखित है “धन्य हैं वो लोग जो राजा विक्रमादित्य के शासनकाल में जन्मे। राजा विक्रमादित्य बेहद दयावान और अपनी प्रजा के पालनहार हैं। लेकिन हम अरबी लोग जो भौतिकवाद से ग्रस्त इस दुनिया की सुख-सुविधाओं के बीच खोकर अच्छी चीजों को ग्रहण नहीं कर रहे। जिस तरह एक भेड़िए के पंजे के अंदर बकरी का बच्चा फंस जाता है उसी तरह हम भी अज्ञानता की बेड़ियों में जकड़े गए हैं। लेकिन अगर हमारे समाज में कुछ भी अच्छा है तो वह सिर्फ और सिर्फ राजा विक्रमादित्य की महानता की ही वजह से हो रहा है”।

ये पंक्तियां पैगंबर मोहम्मद से भी 165 वर्ष पूर्व जन्में जिर्रहम बिंतोई ने लिखे थे। भविष्य पुराण में एक कहानी भी है जिसके अंतर्गत राजा विक्रमादित्य के अरब मरुस्थल में जाने की बात कही गई है। लेकिन यह कहानी आज भी बहस का मुद्दा है।

इस्लाम धर्म के उद्भव से पहले सूर्य, चंद्र और तारों के अतिरिक्त सरस्वती को भी चिह्नों के रूप में प्रयोग किया जाता था। सरस्वती देवी की एक मूर्ति जिसमें वो हंस पर बैठी हुई हैं, अरब के मरुस्थल से उस दौर में मिली थी जब इस्लाम धर्म की नींव भी नहीं पड़ी थी। वैदिक धर्म में देवी सरस्वती को ज्ञान और स्वर की देवी कहा जाता है, जिनका वाहन हंस है। यह मूर्ति वर्तमान समय में ब्रिटिश संग्रहालय में रखी गई है।

इसके अतिरिक्त ब्रिटिश संग्रहालय में अरब से प्राप्त हुए ऐसी शिल्प भी मिले हैं, जिनका आकार अर्धचंद्र और सूर्य की तरह है। अर्ध चंद्र और सूर्य दोनों की ही वैदिक धर्म में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के ऊपर लगे झंडों में अर्धचंद्र का चिन्ह होता है, इसके अतिरिक्त कभी हिन्दू राष्ट्र रहे नेपाल की मुद्रा पर भी अर्धचंद्र दिखाई देता था। अर्ध चंद्र और सूर्य को विष्णु के प्रतीक चिह्न के तौर पर वैदिक धर्म में स्वीकार किया गया है। इसका अर्थ है भगवान विष्णु ही रोशनी और ज्ञान के स्रोत हैं। अर्ध चंद्र को इस्लाम धर्म में भी कबूल किया गया।

13वीं शताब्दी के फारसी लेखक अबु जफर मुहम्मद नसीर अल-दिन अल-तुलसी द्वारा लिखी गई पुस्तक के कवर पेज पर वैदिक धर्म के अनुसार दुनिया की रचना करने वाले ब्रह्मा की तरह दिखने वाली एक ऐसी आकृति को प्रदर्शित किया गया है, जिसके कई हाथ हैं, उन हाथों में उसने पुस्तक या वेद, कुल्हाड़ी, ड्रम, कमल का फूल आदि धारण किए हुए हैं। यह पुस्तक मिस्र के काहिरा के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी गई है।

काबा का पत्थर जिसे इस्लाम धर्म में बेहद पवित्र माना गया है, उसे भी शिवलिंग का ही टूटा हुआ हिस्सा माना जाता है। हालांकि, यह भी बहस का मुद्दा ही है। ऐसा भी कहा जाता है कि काबा का नाम भी कपालीश्वर पर पड़ा है, जो स्वयं शिव को कहा जाता है। मद्रास में कपालीश्वर नाम का मंदिर भी है। जिस तरह वैदिक धर्म में सात बार परिक्रमा करना शुभ माना गया है उसी तरह इस्लाम धर्म के लोग भी काबा की सात बार परिक्रमा करते हैं।

सउदी अरब से प्राप्त कांसे का दीया जिसका प्रयोग वैदिक धर्म में किया जाता रहा है, इस बात का प्रमाण है कि मध्य पूर्व और अरब में वैदिक धर्म का प्रभाव रहा है। आज भी भारत में रहने वाले हिन्दू लोग इन दीयों को पूजा घर में स्थान देते हैं। हालांकि, अलादीन के चिराग जैसी कल्पनाएं अरब देश की पृष्ठभूमि पर गढ़ी गई हैं लेकिन इनका संबंध वैदिक धर्म से ही है।

वर्तमान शोध के अनुसार हिन्दू धर्म 12 से 15 हजार वर्ष पुराना है। किन्तु वेदों की मानें तो सतयुग लगभग 17 लाख 28 हजार वर्ष, त्रेतायुग 12 लाख 96 हजार वर्ष, द्वापर युग 8 लाख 64 हजार वर्ष और कलियुग 4 लाख 32 हजार वर्ष का बताया जाता है। और भगवान राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था एवं द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण जन्मे थे। जानकारी के लिए बता दें कि महर्षि व्यास के अनुसार सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलयुग ये चार युग हैं और वर्तमान में कलयुग चल रहा है।

और ये भी गजबः

इंडोनेशिया आज भले ही इस्लामिक देश है, लेकिन इंडोनेशिया के लोग आज भी पुजारी सबदापालन की भविष्यवाणी को नहीं भूले हैं। इंडोनेशिया में प्रचलित और कल्पवृष में वर्णित कहानी के मुताबिक, पुजारी सबदापालन ने राजा के दरबार में कहा था कि, ”मैं जावा की जमीन में देश की रानी और सभी डांग-हयांग (देव और आत्मा) का सेवक हूं और मेरे पुर्वज विकु मनुमानस, सकुत्रम और बबांग सकरी से लेकर हर पीढ़ी के सदस्य जवानीस राजाओं के सेवक रहे हैं। अब तक दो हजार साल से ज्यादा बीत चुके हैं और उनके धर्म में कुछ भी बदलाव नहीं आया है, लेकिन अब अब जब राजा अपना धर्म बदल रहा है, तो मैं यहां से लौट रहा हूं। 500 सालों के बाद मैं यहां पर वापस हिंदू धर्म को लाऊंगा”। उन्होंने राजा के सामने भविष्यवाणी करते हुए कहा कि, ”महाराज अगर आप इस्लाम को अपनाते हैं, तो आपके वंश का नाश हो जाएगा और जावा में रहने वाले लोग धरती को छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे और यहां के लोगों को इस द्वीप को छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा”। सच यही है कि इंडोनेशिया में बार बार भूकंप आता रहता है और हजारों लोगों की मौत भूकंप की वजह से हो चुकी है। वहीं, 2004 में इंडोनेशिया में आई भीषण सुनामी में करीब एक लाख 68 हजार लोगों की मौत हो गई थी। भले ही यह संयोग हो।

दिलचस्प यह भी है कि 1978 में इंडोनेशिया में फिर से मंदिरों का बनना शुरू हो गया और 2021 में इंडोनेशिया के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति सुकर्णो की बेटी और पाचवें राष्ट्रपति मेगावती सुकर्णोपुत्री की बहन सुगमावती सुकर्णोपुत्री ने इस्लाम का त्याग करके हिंदू धर्म को अपना लिया।