झूठ बोले कौआ काटे! शिवरात्रि, संस्कृत और शिव प्रताप का मेल
यह संयोग ही है कि नाम शिव से है तो हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल पद की शपथ भी वे ले रहे महाशिवरात्रि के दिन। कल 18 फरवरी से वह विधिवत् महामहिम हो जाएंगे। नाम में प्रताप जो जुड़ा हुआ है। प्रताप का अर्थ ही है शौर्य, बल, शक्ति, महामहिम आदि। शिव संस्कृत का शब्द है तो शपथ की भाषा भी संस्कृत होगी। वे हैं, पूर्वांचल के कद्दावर नेता पूर्व केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला। तो क्या, शिव प्रताप के जरिये हिमाचल और पूर्वांचल में 2024 को साधने की है तैयारी!
संवैधानिक पद की शपथ लेने से तीन दिन पूर्व शिव प्रताप शुक्ल ने भारतीय जनता पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। त्यागपत्र देते समय पार्टी के साथ बिताए 39 साल के सफर को याद करते हुए वे भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि किसी भी कारण से उन्हें पार्टी से त्यागपत्र देना भी पड़ सकता है। उन्होंने बताया की संस्कृत भाषा से उनका काफी लगाव है। इसीलिए, उन्होंने राज्यसभा सदस्य पद की शपथ भी संस्कृत में ही ली थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर पहली बार प्रकट हुए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका ना तो आदि था और न अंत। किंवदंती है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्माजी हंस के रूप में शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। वह शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए। दूसरी ओर भगवान विष्णु भी वराह का रूप लेकर शिवलिंग का आधार ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला। इसका अर्थ है कि शिव का कोई आदि और अंत नही है| शिव पुराण के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने हेतु हलाहल विष को ग्रहण किया था और पूरी सृष्टि को इस भयंकर विष से मुक्त किया था।
शिव संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, कल्याणकारी या शुभकारी। यजुर्वेद में शिव को शांतिदाता बताया गया है। ‘शि’ का अर्थ है, पापों का नाश करने वाला, जबकि ‘व’ का अर्थ देने वाला। शिव वह चेतना है जहां से सब कुछ आरम्भ होता है, जहां सबका पोषण होता है और जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है।
जब, शिव संस्कृत भाषा का शब्द तो शिव प्रताप को संस्कृत से क्यों न हो प्रेम! पिछले साल वाराणसी में आयोजित तमिल संगमम में उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा था कि तमिल और संस्कृत भगवान शिव के मुख से निकली भाषाएं हैं।
संस्कृत की वैज्ञानिकता का अध्ययन करके ही अमेरिका की सबसे बड़ी अनुसंधान संस्था नासा ने 1987 ई. में ही संस्कृत को कंप्यूटर के लिए सर्वोत्तम भाषा घोषित कर दिया था। नासा ने संस्कृत भाषा को अंतरिक्ष में कोई भी मैसेज भेजने के लिए सबसे उपयोगी दावा माना है; क्योंकि संस्कृत के वाक्य उल्टे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं। दुनिया की 97 प्रतिशत भाषाएं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संस्कृत से प्रभावित हैं। यह अकेली ऐसी भाषा है जिसे बोलने में जीभ की सभी संवेदिकाओं का इस्तेमाल होता है। अमेरिकन हिंदू यूनिवर्सिटी के मुताबिक संस्कृत बोलने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और रक्त का प्रवाह बेहतर होता है।
झूठ बोले कौआ काटेः
क्या शिव प्रताप शुक्ला हिमाचल प्रदेश के व्यापक हित में कल्याणकारी सिद्ध होंगे? सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार पहले ही प्रदेश में श्रीलंका जैसे हालात का हवाला देकर पिछली भाजपा सरकार पर कुशासन का ठीकरा फोड़ चुकी है। भाजपा ने भी विधायक क्षेत्र विकास निधि रोकने और पिछली योजनाओं को बंद करने आदि मुद्दों को लेकर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। शिव प्रताप शुक्ला ने राजनीति में हलाहल भी पीया है। नीलकंठ भी बने। वह, साल 2002 से 14 साल के वनवास सरीखा दौर ही था। तब भी विचलित नहीं हुए। पार्टी संगठन के समर्पित-अनुशासित सिपाही बने रहे। अब राजनीति से परे रह कर राज-नीति को साधने की कठिन चुनौती है।
वर्ष 2019 तक वे मंत्री रहे। इसके बाद राज्यसभा में भाजपा का मुख्य सचेतक चीफ व्हिप बनाया गया। पिछले साल राज्यसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद डा. राधामोहन दास अग्रवाल को पार्टी ने राज्यसभा का सदस्य बनवा दिया। ऐसा लगा कि शिवप्रताप का राजनीतिक भविष्य अब संकट में है। लेकिन, उन्होंने इस बार भी धैर्य नहीं खोया और नतीजा सामने है।
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल की जिम्मेदारी मिलने को राजनीतिक गलियारे में लोकसभा चुनाव के नजरिये से देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि 2019 की तरह केंद्र सरकार ने शिव प्रताप के जरिये पूर्वांचल के ब्राह्मणों को एक बार फिर साधने की कोशिश की है। क्योंकि, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भाजपा में ब्राह्मणों की उपेक्षा का तीर चलाने का कोई अवसर छोड़ नहीं रहे।
अब संवैधानिक जिम्मेदारी दे कर 2024 के पहले पूर्वांचल और हिमाचल को साधने की तैयारी है। यूं ही नहीं, पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी ने शिव के प्रताप पर भरोसा किया है।
और ये भी गजबः
संस्कृत को विश्व की अन्य भाषाओं की जननी माना जाता है। प्राचीन भारत में विद्वान संस्कृत भाषा का उपयोग करते थे और इसे देवभाषा भी कहा जाता है। हाल ही में सुप्रसिद्ध ‘गीता प्रेस’ गोरखपुर के 100 साल पूरे होने पर श्रीमद् भागवत गीता के 700 संस्कृत श्लोकों पर आधारित अंत्याक्षरी प्रतियोगिता का आयोजन मनमोहक आयोजन चर्चा का विषय बना।
हम भले ही संस्कृत को तुच्छ या मृत भाषा समझते रहें, आने वाले समय में संस्कृत कंप्यूटर की भाषा बनने जा रही है। संस्कृत में इतनी वैज्ञानिकता होने के कारण ही अमेरिका, रूस, स्वीडन,कनाड़ा, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, आस्ट्रिया देशों में नर्सरी से ही बच्चों को संस्कृत पढ़ाई जाने लगी है। कहीं ऐसा न हो कि हमारी संस्कृत कल वैश्विक भाषा बन जाए और हमें स्वयं लज्जित होना पड़े। ऐसे में शिव प्रताप शुक्ला का संस्कृत में शपथ लेने का निर्णय निश्चय ही प्रेरणाप्रद है।
आपको मालूम, संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन निम्न श्लोक में आ जाते हैं। इतना ही नहीं, उनका क्रम भी यथायोग्य है-
क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोSटौठीडढण:।
तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।
अर्थात्- पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर व्यक्ति को शत्रुओं का भी आशीष प्राप्त होता है।
माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल “भ” और “र ” दो ही अक्षरों से एक श्लोक रच दिया-
“भूरिभिर्भारिभिर्भीभीराभूभारैरभिरेभिरे।
भेरीरेभिभिरभ्राभैरूभीरूभिरिभैरिभा:।।”
अर्थात्- धरा को भी वजन लगे ऐसे वजनदार, वाद्य यंत्र जैसी आवाज निकालने वाले और मेघ जैसे काले निडर हाथी ने अपने दुश्मन हाथी पर हमला किया।
किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में गजब के कौशल का प्रयोग करके महाकवि भारवि ने केवल “न” व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है-
“न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नाना नना ननु।
नुन्नोSनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नन्नुनन्नुनुत्।।”
अर्थात्- जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है।।
संस्कृत साहित्य में ऐसे सुभाषितों की भरमार है, जो मनुष्य की सभी समस्याओं का समाधान करते हैं।