पूरी दुनिया में मनुष्य ने पारिस्थिति के तहत पृथ्वी पर देश समूह और सामाजिकता के तहत भिन्न भिन्न जीवन शैली अपनायी है। कोई प्रकृति के साथ जाना है तो कोई मार्डन जीवन शैली में। बढ़ते शहरीकरण ने भी व्यक्तिगत जीवन शैली बदल दी। पहले सामहिक परिवार होते थे अब अधिकतर परिवार टूट चुके हैं। पहले घर का एक व्यक्ति कमाता था पूरा घर चलता था, अभी कई मियां बीवी अकेले रहते हैं और दोनों काम पर जाते हैं। जीवन के तरीके प्राथमिकता और लक्ष्य सब के अलग-अलग हो गए।
व्यक्ति ने अपने जीवन जीने का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए सबसे पहले उसने यह सोचना चाहिए कि मुझे जीवन में क्या करना है और लक्ष्य तय होने पर उसे कैसे हासिल किया जाए क्या क्या साधन लगेंगे, कोई मदद लगेगी या स्वयं ही आगे बढ़ पाऊंगा इन सब का भान उसे लाभ और हानि की दृष्टि से देखना होगा कि जो लक्ष्य उसने सोचा है उससे उसके जीवन में कितना फायदा होगा और कितना नुकसान फिर लक्ष्य के बारे में अपनी राय बनाना चाहिए। यदि नुकसान ज्यादा लगता है तो लक्ष्य बदलना चाहिए।
लक्ष्य प्राप्त करते समय यह भी देखें कि उसे हासिल करने में जीवन का कितना कीमती समय लगेगा, क्या रात दिन मेहनत करना पड़ेगी, परिवार से दूर रहना होगा, कर्ज लेना पड़ा तो उसकी भरपाई कैसे हो पाएगी। कहीं इतना बड़ा लक्ष्य तो नहीं सोच लिया की उस पर जीवन का बहुत सारा हिस्सा खप जाए।
व्यक्ति को महत्वकांक्षी होना बहुत जरूरी है पर इतना भी महत्वकांक्षी ना हो की तनावग्रस्त हो जाय जिससे शरीर पर आन पड़े।
तड़क-भड़क की जिंदगी के पीछे ना भागे. सादगी भरी, शांतिप्रिय और स्वस्थ जिंदगी अपनाने की कोशिश करें। कभी-कभी व्यक्ति तड़क भडक की जिंदगी अपनाने के लिए झूठ-सच, उठापटक और बहुत सारी जोखिम उठा लेते है उसके बाद भी यदि वे असफल होते हैं कई कमजोर मानसिकता वालो की हिम्मत टूट जाती है और वे आत्महत्या का रास्ता अपनाने का सोचते है। कई गलत रास्ते चले जाते हैं और गैर कानूनी ढंग से पैसा कमाने का सोचते हैं।
लक्ष्य ऐसा हो जिससे आपको आत्म शांति मिले और घर-परिवार एवं समाज में इज्जत मिले आप जब भी आइना देखें तो आपकी छवि बहुत सुंदर नजर आना चाहिए बेदाग।
अशोक मेहता, (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)