विदेशों की तरह अब इंदौर भी में नई मेडिकल तकनीक का इस्तेमाल, अब मरीज चलते- फिरते खुद कर सकेंगे अपना खून साफ

सारे काम काज करते हुए मरीज खुद कर सकेगा खुद का डॉयलिसिस

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इंदौर से प्रदीप मिश्रा की खास खबर

इंदौर । अब हर महीने डायलिसिस करवाने वाले जरूरतमंद मरीज , बिना डायलिसिस मशीन व बिना डाक्टर बिना टेक्निशीयन के स्वयं अपना खुद का डायलिसिस कर सकेंगे । मरीज को डायलिसिस करवाने के लिए न तो 4 घण्टे अस्पताल के बेड पर लेटना पड़ेगा । न, ही अब मरीज का ब्लड यानी खून शरीर से निकलने व साफ करने के लिए डायलिसिस मशीन की जरूरत पड़ेगी । इतना ही नही सेल्फ डायलिसिस के दौरान अब मरीज चलते फिरते हुए अपने रोजमर्रा के सारे काम काज कर सकेंगे।

सेल्फ डायलिसिस वाली इस मेडिकल तकनीक का इस्तेमाल विदेशो में कई सालों से होता आ रहा है । इस तकनीक का इस्तेमाल अब सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के डायलिसिस सेंटर द्वारा शुरू किया जा रहा है। डाक्टरो की भाषा मे इसे पेरिटोनियल डायलिसिस कहते है। इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाले मरीजो को हर हफ्ते अस्पताल जा कर भर्ती नही होना पड़ता । न ही उसे इसके लिए अतिरिक्त समय निकालना पड़ता है । वह स्वयम एक बार डाक्टर से इस तकनीक को समझ कर खुद का ब्लड डायलिसिस करने लगता है।

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दो तरह से होता है डायलिसिस

मरीजो को डायलिसिस करवाने की जरूरत तब पड़ती जब उनकी किडनी प्रदूषित तत्वों को साफ करने की क्षमता खो देती हैं। अभी तक इंदौर सहित सारे देश मे जरूरतमंद मरीज का जिस तरह से डायलिसिस किया जाता है । इसे हीमो डायलिसिस कहते है। इस डायलिसिस के लिए मरीज के खून को उसके शरीर से निकाल कर मशीन से साफ करके फिर शरीर मे डाला जाता है। इस तकनीक का इस्तेमाल विदेशो में अंतिम विकल्प के बतौर किया जाता है। वँहा पर मरीज का पहले पेरिटोनियल डायलिसिस किया जाता है। इसे प्राकृतिक डायलिसिस भी कहते है। इसमे मरीज के खून को यानी ब्लड को शरीर से बाहर नही निकलना पड़ता न मशीन के जरिये फ़िल्टर करना पड़ता है। इसके लिए मरीज के पेट मे ऑपरेशन के जरिये नाभि के नीचे छोटा सा छेद करके 6 इंची पतली नली डाल दी जाती है। जिसका आधा हिस्सा पेट के अंदर व आधा हिस्सा पेट के बाहर रहता है । पेट के बाहर नली के हिस्से में ढक्कन होता है। मरीज को मेडिकल स्टोर से दो बैग खरीदना होते है । एक बैग में एक विशेष प्रकार का 2 लीटर तरल रसायन होता है जिसे फ्लूड कहते है। जो डिस्टिल वाटर की तरह काम करता है। इस फ्लूड पैकेट को दबा कर पेट के बाहर नली का ढक्कन खोल कर पेट के अंदर डाल दिया जाता है। इसके बाद यह फ्लूड पेट की आंतो के ऊपर मौजूद पेरिटोनियम सम्पर्क कर उसे 6 घण्टे में टॉक्सिन को साफ कर देता है । इसके बाद मरीज 6 घण्टे बाद दुबारा ढक्कन खोल कर पेट अंदर डाले गए फ्लूड को दूसरे बेग के जरिये पम्पिंग करके निकाल सकता है। इन 6 घण्टे के दौरान मरीज सभी तरह के काम कर सकता है।

पेट की आंतों के ऊपर जमा रहता है पेरिटोनियम

सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के नेफ्रोलॉजिस्ट डाक्टर जय अरोरा ने बताया कि ईश्वर ने पेट के अंदर , लीवर ,किडनी अमाशय सहित आंतरिक अंगों की सुरक्षा के लिए आंतों के ऊपर ऐसा सुरक्षा कवच तैयार किया है जिसकी प्रतिरोधक शक्ति के चलते पेट के अंदरूनी अंगों की स्वयम साफ सफाई होती रहती है । मेडिकल की भाषा मे इसे पेरिटोनियम कहते है जो आंतो के ऊपर एक प्राकृतिक लेयर की तरह मौजूद रहता है। इसी प्राकृतिक पेरिटोनियम का इस्तेमाल करते हुए ब्लड के सारे टॉक्सिन को बाहर निकाल कर एक मरीज लगभग 6 से 8 घण्टे में खुद अपना ब्लड साफ कर लेता है । यानी मरीज अपना डायलिसिस खुद कर सकता है। सिर्फ एक बार अस्पताल आ कर मरीज को डाक्टर से इस तकनीक को समझना पड़ता है। इसके बाद मरीज खुद घर पर ऑफिस में कार में इस तकनीक का इस्तेमाल करना पड़ता है।

 

पेरिटोनियल डायलिसीस के फायदे

मरीज का खून यानी ब्लड बार बारशरीर से बाहर निकाला जाता इस वजह से ब्लड प्रेशर की समस्या हो जाती है। मगर इस तकनीक के जरिये इसकी आशंका खत्म हो जाती है।

अभी जो तकनीक इस्तेमाल की जाती है उसके कारण यूरिन की मात्रा कम होती चली जाती है मगर इस तकनीक से शरीर मे प्राकृतिक तौर पर यूरिन उतना ही बना रहता है। मरीज को कोई दर्द नही होता। इन्ही सब कारणों के चलते सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में पेरिटोनियल डायलिसिस तकनीक के इस्तेमाल शुरू किया जा रहा है।