
जगन्नाथ भगवान का भोग: सिर्फ भक्तों के लिए नहीं, भूत-प्रेतों के लिए भी है खास परंपरा!
रुचि बागड़देव की खास रिपोर्ट
जगन्नाथ पुरी मंदिर की अनगिनत रहस्यमयी और अनूठी परंपराओं में से एक है “भूत-प्रेतों के लिए प्रसाद भेजने की परंपरा”। बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ पर रखे जाने वाले तीन-तीन घड़े प्रसाद सिर्फ भक्तों के लिए नहीं, बल्कि उन आत्माओं के लिए भी होते हैं जिन्हें भूत-प्रेत या पितृ कहा जाता है।
कैसे होती है यह परंपरा…?
हर साल रथयात्रा के दौरान, भगवान को अर्पित महाप्रसाद के तीन-तीन घड़े तैयार किए जाते हैं। रथ पर इन घड़ों को विशेष रूप से रखा जाता है। रथयात्रा के एक खास दिन, यह प्रसाद श्मशान घाट भेजा जाता है, ताकि भूत-प्रेत, पितृ या अदृश्य आत्माएं भी भगवान का भोग ग्रहण कर सकें। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ सबका ध्यान रखते हैं- चाहे वे इस लोक में हों या परलोक में। इस दिन भगवान की पोशाक भी बदलती है और जो प्रसाद श्मशान भेजा जाता है, उसे ‘अधार्पण’ कहा जाता है।
मंदिर के शिखर का अनोखा रहस्य
जगन्नाथ मंदिर का शिखर भी एक बड़ा रहस्य है- यहां हर दिन ध्वज बदला जाता है और यह ध्वज हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है, चाहे हवा कहीं से भी चले। वैज्ञानिक भी इसका रहस्य नहीं सुलझा पाए हैं। भक्त इसे भगवान का चमत्कार और हनुमान जी की कृपा मानते हैं।

इस परंपरा के पीछे क्या है भावना..?
यह परंपरा भगवान की सर्वव्यापकता और करुणा का प्रतीक है। जगन्नाथ मंदिर में न सिर्फ जाति, धर्म, वर्ग- बल्कि जीवित और मृत, दोनों के लिए समान भाव से भोग लगाया जाता है। यहां तक कि महाप्रसाद को किसी भी जाति या वर्ग का व्यक्ति ग्रहण कर सकता है। यही नहीं, भूत-प्रेतों के लिए प्रसाद भेजना यह दर्शाता है कि भगवान जगन्नाथ सिर्फ भक्तों के ही नहीं, बल्कि हर आत्मा के पालनहार हैं।

जगन्नाथ मंदिर की और भी अनोखी बातें
1. महाप्रसाद को मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी की आग पर पकाया जाता है और सबसे ऊपर रखा बर्तन सबसे पहले पकता है- जो विज्ञान के नियमों के विपरीत है।

2. मंदिर की छाया कभी ज़मीन पर नहीं पड़ती।
3. हर दिन मंदिर के शिखर पर ध्वज बदला जाता है, और कहा जाता है कि अगर एक दिन भी यह परंपरा छूट जाए, तो मंदिर 18 साल के लिए बंद हो जाएगा।

जगन्नाथ पुरी की ये परंपराएं न सिर्फ आस्था, बल्कि समावेशिता, रहस्य और करुणा का भी अद्भुत उदाहरण हैं। भगवान जगन्नाथ सच में ‘सबके’ भगवान हैं- भक्त हों या भूत, जीवित हों या परलोकवासी!





