नेशनल पुलिस एकेडमी की ट्रेनिंग

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नेशनल पुलिस एकेडमी की ट्रेनिंग

– एन के त्रिपाठी

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IPS में अपने पहले प्रयास में सफल होने के पश्चात 4 नवम्बर, 1974 को मुझे लखनऊ में भारत सरकार का टेलीग्राम प्राप्त हुआ जिसमें मुझे 11 नवंबर को नागपुर में नैशनल सिविल डिफेंस कॉलेज में रिपोर्ट करने के लिए कहा गया। बड़े उत्साह के साथ तैयारियां कर मैं चारबाग़ स्टेशन लखनऊ से रवाना हुआ जहां मेरी पूरी मित्र मंडली मुझे विदा करने के लिए आयी थी। नागपुर में सिविल डिफेंस कॉलेज में दो सप्ताह तक नागरिक सुरक्षा, आग बुझाने और त्रासदी से निपटने का प्रशिक्षण दिया गया।

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नागपुर में प्रशिक्षण समाप्त कर हम आबू रोड स्टेशन पहुँचे जहाँ हमें सरदार वल्लभ भाई पटेल नैशनल पुलिस एकेडमी का वाहन मिला जो हमें पहाड़ चढ़ा कर माउंट आबू ले गया।माउंट आबू राजस्थान में गुजरात सीमा के पास अरावली पर्वत के सबसे ऊँचे भाग में स्थित है। पुलिस एकेडमी के शैक्षणिक, प्रशासकीय भवन पुराने लॉरेंस स्कूल में एवं होस्टल रजवाड़ों के होटलों और कोठियों में थे। मुझे पालनपुर हाउस में कमरा दिया गया। दूसरे दिन हम सब लोगों के लंबे बाल काटकर रिक्रूट स्टाइल के कर दिये गये जो पहला सांस्कृतिक झटका था।सुबह साढ़े पाँच बजे मेरे कमरे में रता नामक रूम बैरा चाय लेकर आता था। आधे घंटे में तैयार हो कर हाफ़ पैंट और जर्सी में पीटी ड्रेस पहन कर बाहर निकलते थे। बहुत भयानक ठंड और हवाएँ शुरू हो चुकी थी।हाफ़ पैंट में ठंड और हवा असहनीय हो जाती थी और कुछ दौड़ने के बाद ही ठीक लगता था।आउट डोर गतिविधियों के लिए हम लोगों को 6 स्क्वाड में बाँट दिया गया था।सामूहिक दौड़ के बाद सभी स्क्वाड की अलग-अलग पीटी उसी ग्राउंड पर होती थी। पीटी के बाद ग्राउंड पर ही रूम बैरा द्वारा लायी गई यूनिफ़ॉर्म बदल कर दो पीरियड फिर परेड होती थी। मेरे स्क्वाड के प्रभारी इंस्पेक्टर साही थे।परेड के उपरांत हम लोग अपने कमरों में तैयार होकर राजपुताना हाउस की मैस में ब्रेकफास्ट के लिए जाते थे। वहाँ से इंडोर क्लासेज के लिए जाते थे जहाँ हमें क़ानून तथा पुलिस से संबंधित विषय पढ़ाए जाते थे।शाम को स्पोर्ट्स के लिए जाना पड़ता था।एक बार हम लोगों को माउंट आबू के सूर्यास्त पॉइंट पर ले जाया गया जहाँ से नीचे के मैदान तक हमें पहाड़ से उतरकर फिर वापस ऊपर आने की कठिन एक्सरसाइज़ करनी पड़ी। हमें घोड़ों का प्रबंधन तथा घुड़सवारी का प्रशिक्षण दिया जाता था। ख़तरनाक रॉक क्लाइंबिंग सीधी और ऊँची चट्टानों पर करते थे। रविवार को कुछ मित्रों के साथ पहाड़ों पर ट्रैकिंग के लिए या दिलवाड़ा मन्दिर तक घूम कर आते थे।

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जनवरी 1975 के अंतिम सप्ताह में एक दिन पूरे प्रोबेशनर्स के समक्ष हमारे डायरेक्टर श्री एस एम डायज़ ने घोषणा की कि पूरी एकेडमी हैदराबाद शिफ़्ट होगी। उनकी इस घोषणा पर हम लोगों ने खड़े होकर देर तक तक तालियां बजाईं। माउंट आबू बहुत छोटी जगह थी तथा दो महीने में ही हम लोग ऊब गये थे। हैदराबाद में पुलिस अकादमी बनकर तैयार थी परंतु श्री डायज़ के प्रयत्नों से ही यह संभव हो सका। पूरी अकेडमी को शिफ़्ट करना एक बहुत बड़ा कार्य था। भारी साजोसामान, घोड़ों आदि को अनेक विशेष ट्रेनों से हैदराबाद ले जाना था।शिफ़्टिंग के समय हमें 6 दलों में बाँट कर भारत के विभिन्न पुलिस संस्थानों में दो सप्ताह के लिए भेज दिया गया। मेरा दल बीएसएफ एकेडमी टेकनपुर, जिला ग्वालियर गया था। ग्वालियर में मैं SP और DIG के बंगले पर जाकर उनसे मिला।संयोगवश, कालांतर में मुझे इन बँगलों में स्वयं रहने का अवसर मिला।

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हैदराबाद में सुन्दर अकेडमी के सभी नवनिर्मित भवन एक कैंपस में थे। हम लोगों को रहने के लिए सिंगल नये कमरे प्राप्त हुए। हमारी मैस हॉस्टल में ही नीचे के लाउंज से लगी थी तथा क्लासरूम और परेड ग्राउंड पास में बने हुए थे।मौसम भी सुहावना था। इंडोर और आउटडोर ट्रेनिंग पूरे ज़ोर शोर से प्रारंभ हो गई। पीटी में रस्सा चढ़ना, दौड़कर सीधे और उल्टे समर सॉल्ट करना, हर्डल कूदना भी था। मैं इन सभी कार्यों में अच्छा निपुण हो गया था। परेड और राइफ़ल ड्रिल अच्छी कर लेता था। राइफ़ल, कार्बाइन और पिस्टल आदि के प्रयोग करने का सघन प्रशिक्षण दिया गया। मेरा निशाना अच्छा था जो आज भी है।परंतु घुड़सवारी में मैं बहुत औसत था। भारत दर्शन में दक्षिण भारत का विस्तृत भ्रमण और अनेक विख्यात मंदिर देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ।

प्रत्येक शनिवार की शाम हम लोगों के लिए विशेष मनोहर होती थी। स्पोर्ट्स क्लास के बाद शाम को एकेडमी से तीन किलोमीटर पैदल चलकर नेहरु ज़ू के पास बस पकड़कर हम लोग आबिद रोड या सिकंदराबाद जाते थे। वहाँ मूवी देखने के बाद रेस्टोरेंट में खाना खा कर देर रात तक ऑटो रिक्शा से वापस लौटते थे। उन क्षणों की स्मृतियाँ बहुत मधुर हैं।

प्रशिक्षण समाप्त होने से पूर्व लिखित और आउटडोर की परीक्षाएं हुईं। घुड़सवारी में लॉटरी सिस्टम से मुझे मेघदूत घोड़ा मिला जो एकेडमी का सर्वाधिक चपल और सबसे तेज घोड़ा था। मेरा हृदय बैठ गया। लेकिन राइडिंग हवलदार राम सहाय ने ढाँढस बँधाया कि आप केवल सवार हो जाइए, यह आपको पालकी की तरह ले जाएगा।वही हुआ, ज़रा से इशारों पर मेघदूत वॉक, ट्रॉट, कैंटर, गैलप और जंप सभी में अच्छी तरह ले गया और अनपेक्षित रूप से घुड़सवारी में मुझे काफ़ी अंक प्राप्त हुए। पूरे प्रशिक्षण ने मुझे कठिनतम समस्याओं का सामना करना सिखा दिया। अंत में पासिंग आउट परेड के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी सैल्यूट लेने के लिए आईं। मुख्य परेड समाप्त होने के बाद हम लोग बैंड पर ‘ऑल्ड लाँग साइन’ की धुन पर स्लो मॉर्च में परेड ग्राउंड से बाहर निकले। इस क्षण की हम लोग बहुत दिनों से प्रतीक्षा कर रहे थे। हमारा एक वर्ष का कठिन प्रशिक्षण समाप्त हुआ। परेड के बाद इंदिरा जी के साथ लंच लेने का दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ। एकेडमी से कॉमरेड्री और खट्टी मीठी यादों के साथ हम लोग आर्मी अटैचमेंट तथा अपने आवंटित राज्यों की ओर चल पड़े।