गोबर की तरफ लौट रही दुनिया, यही है गोवर्धन का महत्व…

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गोबर की तरफ लौट रही दुनिया, यही है गोवर्धन का महत्व…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

हमारी हर परंपरा और उत्सव में प्रकृति के प्रति सम्मान और समाज के प्रति जिम्मेदारी शामिल है। गोवर्धन पूजा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। हमारी संस्कृति ने हमें छोटी-छोटी चीजें देने वालों के प्रति भी कृतज्ञ होना सिखाया है। आज हम प्रकृति के उसी दाता स्वरूप को नमन कर रहे हैं। आज गोवर्धन और गौवंश की पूजा करके हम दुनिया को प्रकृति, पर्यावरण और पशुधन संरक्षण का संदेश देते हैं। यह सनातन संस्कृति की देन है। गोवर्धन को पशुधन संरक्षण के रूप में देखा जा सकता है तो गोबर धन को सहेजने के लिए गौवंश संरक्षण के रूप में भी देखा जा सकता है। और आज पूरी दुनिया एक बार फिर गोबर धन की तरफ लौट रही है। दुनिया को समेटे गोबर धन संबंधी यह खबर भी बहुत सुखद है कि

अमेरिका, चीन, मालदीव, अमेरिका, सिंगापुर, कुवैत, नेपाल, ब्राजील, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब… ये वो देश हैं जो भारत से गोबर आयात करते हैं।

भारत में करीब 30 करोड़ मवेशी हैं, जिनसे रोजाना करीब 3 करोड़ टन गोबर एकत्र होता है। भारत में गोबर का इस्तेमाल सबसे ज्यादा उपले बनाने में किया जाता है, लेकिन चीन और ब्रिटेन जैसे देशों में इससे बिजली और बायोगैस बनाई जाती है। दुनिया के कई देशों में गोबर का इस्तेमाल खेती-किसानी में उर्वरक के तौर पर किया जाता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत से एक्सपोर्ट किए जाने वाले गोबर की कीमत 30 से 50 रुपए प्रति किलो तक बताई गई है। हालांकि, ये गोबर के पाउडर, खाद और उपले के मामले में अलग-अलग हो सकती है। जैसे- हाइग्रेड गोबर के पाउडर का दाम उपलों से अलग होता है।

दुनिया के कई देश भारत से गोबर खरीद रहे हैं। हालिया, उदाहरण कुवैत का है, जो चर्चा में रहा था। अकेले कुवैत ने पिछले साल भारत को 192 मीट्रिक टन गोबर का ऑर्डर दिया था।

दुनियाभर में जैविक खेती का चलन बढ़ रहा है। इसके लिए देश रासायनिक उर्वरकों की जगह जैविक खाद को प्राथमिकता दे रहे हैं। गोबर से तैयार होने वाली खाद को इसके विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। गोबर का इस्तेमाल सिर्फ पैदावार को बढ़ाने तक सीमित नहीं है। इसका इस्तेमाल मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में भी किया जाता है। इससे मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाया जाता है ताकि ये बेहतर पैदावार कर सके। कुवैत के कृषि वैज्ञानिकों ने भी पाया था कि भारतीय गोबर पाउडर का इस्तेमाल करने पर खजूर की उपज और आकार में बढ़ोतरी हुई।

दुनिया के कई देश ऐसे हैं जहां सीमित जल संसाधन हैं और मिट्टी अधिक उपजाऊ नहीं है। यही वजह है कि वहां जैविक खाद की मांग बढ़ रही है। इसके लिए गोबर का सहारा लिया जाता है।भारत में मवेशियों की संख्या और गोबर का अधिक उत्पादन भी कई देशों को भारत की तरफ आकर्षित करता है। भारत गोबर निर्यात के मामले में उनकी मांग पर खरा उतरता है। अमेरिका और यूरोप समेत कई देशों में रासायनिक उर्वरकों से तैयार फसलों से इंसानों पर बढ़ते नुकसान के कारण गोबर की खाद का इस्तेमाल बढ़ा है। कई रिसर्च में भी यह साबित हुआ है कि रसायनों वाले उर्वरक कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ा रहे हैं।

यह खबर बहुत सुखद और संतुष्टि देने वाली है, बस उम्मीद यही है कि हम सब एक बार फिर जागें। यह माना जा सकता है कि हम भारतवासियों के लिए गोवर्धन की पूजा करना और गोबर धन की उपेक्षा करना दिया तले अंधेरा वाली बात है। अब जब पूरी दुनिया गोबर की तरफ लौट रही है तो हम भी गोवर्धन पूजा का महत्व समझ कर गोबर धन को स्वीकार करेंगे, यही अपेक्षा है…।

 

लेखक के बारे में –

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। पांच पुस्तकों व्यंग्य संग्रह “मोटे पतरे सबई तो बिकाऊ हैं”, पुस्तक “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज”, ” सबका कमल” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। वहीं काव्य संग्रह “अष्टछाप के अर्वाचीन कवि” में एक कवि के रूप में शामिल हैं। इन्होंने स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।