दोनों दलों के दिल में बसे हैं माधवराव…

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दोनों दलों के दिल में बसे हैं माधवराव…

यह मध्यप्रदेश की राजनीति का उलटफेर है कि स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की जयंती भाजपा और कांग्रेस दोनों ही उत्साहपूर्वक मना रही हैं। अब माधवराव सिंधिया की तस्वीर भाजपा कार्यालय में भी है तो कांग्रेस भी उनका आदर और मान लगातार बनाए है। हालांकि 20 मार्च 2020 से पहले भाजपा कार्यालय में राजमाता को सम्मान मिलता था तो कांग्रेस उनके पुत्र माधवराव के पार्टी के प्रति योगदान को याद करती थी। पर 20 मार्च 2020 के बाद जब ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के सहयोग से कांग्रेस सरकार गिरी और 23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौहान भाजपा सरकार में चौथी बार मुख्यमंत्री बने, तब से अब राजमाता के साथ उनके पुत्र माधवराव सिंधिया की जयंती भाजपा कार्यालय में भी उतने ही सम्मान से मनाई जाती है। तो कांग्रेस भी स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के पार्टी के प्रति योगदान को उतनी ही शिद्दत से याद करती है।
माधवराव सिंधिया का जन्म 10 मार्च 1945 को मुंबई में हुआ था। वे भारतीय राजनीतिज्ञ थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में मंत्री रहे थे। 1961 में अपने पिता जीवाजी राव की मृत्यु के बाद वह ग्वालियर के अंतिम महाराज बने। 1971 में भारत के संविधान में 26 वें संशोधन के बाद भारत सरकार ने रियासतों के सभी आधिकारिक प्रतीकों को समाप्त कर दिया, जिसमें शीर्षक, विशेषाधिकार और पारिश्रमिक शामिल थे।राजशाही का अंत होने के बाद माधव राव सिंधिया ने गुना से चुनाव लड़ा। उन्होंने 1971 में पहली बार चुनाव जनसंघ से जीता तब वे महज 26 साल के थे। जिसके बाद वे एक भी चुनाव नहीं हारे। दूसरा चुनाव निर्दलीय तो बाकी चुनाव कांग्रेस से लड़े। वे लगातार नौ बार लोकसभा के सांसद रहे। 1984 में उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को ग्वालियर से चुनाव हराया। 1996 में, उन्होंने अर्जुन सिंह और अन्य कांग्रेस असंतुष्टों के साथ केंद्र में संयुक्त मोर्चा सरकार का हिस्सा बनने का अवसर दिया। यद्यपि उनका मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस, संयुक्त मोर्चे का हिस्सा था, लेकिन सिंधिया ने खुद को मंत्रिमंडल से बाहर रहने का विकल्प चुना। वे 1990 से 1993 तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष रहे।
माधवराव सिंधिया ने 1984 के बाद 1998 तक सभी चुनाव ग्वालियर से ही लड़े और जीत भी हासिल की। 1996 में तो कांग्रेस से अलग होकर भी वह भारी बहुमत से जीते थे। 1999 के चुनाव में अस्वस्थ राजमाता ने अपने पुत्र माधवराव सिंधिया को यह आसंदी छोड़ दी और 1999 में माधवराव सिंधिया ने पाँच उम्मीदवारों की मौजूदगी में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी के देशराज सिंह को दो लाख 14 हज़ार 428 मतों से कीर्तिमान शिकस्त दी। इस प्रकार चौदह में से दस चुनावों में महल ने अपना परचम कभी माँ तो कभी बेटे के जरिए फहराया। ग्यारहवीं दफा भी महल ही परोक्ष रूप से इस सीट पर ‘महेंद्र सिंह’ के रूप में काबिज रहा।
तो स्वर्गीय माधवराव सिंधिया अगर आज होते तो 78 वर्ष की उम्र पूरी करते, लेकिन असमय ही काल ने 30 सितंबर 2001 को उन्हें अपना ग्रास बना लिया। पर जनसंघ से पहला चुनाव लड़कर राजनीति की शुरुआत करने वाले स्वर्गीय माधवराव सिंधिया ने भले ही बाद में कांग्रेस का दामन थाम लिया हो, लेकिन अब एक बार फिर वह दोनों दल कांग्रेस और भाजपा के दिल में बसे हैं।