महारावल महिपाल सिंह – बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व

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महारावल महिपाल सिंह – बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व

गोपेंद्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट 

राजस्थान के सुदूर दक्षिणी भाग में पर्यटन नगरी उदयपुर और गुज़रात से सटे डूंगरपुर राजघराने का इतिहास बहुत रोचक और गौरवपूर्ण है। बहुत कम लोगों को यह जानकारी होंगी कि डूंगरपुर स्टेट उदयपुर के सिसोदिया वंश के राजाओं के बड़े भाइयों की गद्दी है, जबकि मेवाड़ के महाराणा की सीट छोटे भाइयों की है। यह बात भी बहुत कम लोगों को मालूम होंगी कि डूंगरपुर (सम्पूर्ण वागड़ ) के रावल उदय सिंह प्रथम ने 1527 में राणा सांगा के साथ बाबर के खिलाफ लड़ाई करते हुए खानवा की लड़ाई में वीर गति प्राप्त की थी ।महारावल उदयसिंह की मृत्यु के बाद डूंगरपुर और बांसवाड़ा दो अलग-अलग रियासतों में विभाजित हो गए थे।

वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप के गौरवशाली वंश से ताल्लुक़ रखने वाले डूंगरपुर राजवंश के 34 वें महारावल महिपाल सिंह का 92 वर्ष की उम्र में शनिवार को डूंगरपुर के निधन हों गया।

राजस्थान विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और देश की आजादी से पहले राजपूताना की सबसे पुरानी रियासतों में शामिल डूंगरपुर के अन्तिम शासक महारावल लक्ष्मण सिंह के ज्येष्ठ पुत्र और राजस्थान से राज्यसभा में बीज़ेपी सांसद रहें हर्ष वर्धन सिंह डूंगरपुर के पिता महारावल महिपाल सिंह के व्यक्तित्व के बारे में जो लोग जानते है उन्हें मालूम है कि दक्षिणी राजस्थान में  गुजरात की राजधानी गाँधीनगर से सटे वागड़ क्षेत्र के डूंगरपुर की खूबसूरत गेप सागर झील के किनारे स्थित अद्वितीय स्थापत्य कला से भरपूर बेजोड़ उदय बिलास महल में उनकी हज़ारों पुस्तकों और संगीत के रिकार्ड्स से समृद्ध भव्य लायब्रेरी को देखने कितने ही शोध विद्यार्थी लालायित रहते है।इनके पुस्कालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकों तथा कई पुराने गीतों का अथाह भंडार है।महिपाल सिंह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विषयों के ज़बर्दस्त जानकार थे। उन्हें चलता फिरता ज्ञान कोष माना जाता था। इन विषयों पर उनके सामने किसी भी विषय पर बहस में अच्छे अच्छे जानकार भी टक्कर में खड़े होने की हैसियत नहीं रखते थे । महिपाल सिंह का जन्म 14 अगस्त 1931 को हुआ था । उन्होंने मेयों कालेज अजमेर से प्रारंभिक पढ़ाई करने के बाद दिल्ली विश्व विध्यालय के विख्यात सेंट स्टीफ़न्स कालेज़ से अपना ग्रेजुएशन किया । उन्होंने बीकानेर राजघराने की राजकुमारी देव कुंवर  से शादी की थी । वे विवाह के पश्चात कुछ समय मुम्बई रहें लेकिन महानगर की ज़िन्दगी रास नहीं आने के कारण वे वापस डूंगरपुर लौट आयें थे ।

महिपाल सिंह जी के एक पुत्र हर्षवर्धन सिंह और एक पुत्री कीर्ति कुमारी है। हर्षवर्धन सिंह का पहला विवाह कूँच बिहार में महश्री कुमारी और दूसरा विवाह जोधपुर में प्रियदर्शिनी कुंवर से हुआ । कीर्ति कुमारी की शादी सिरोही के महाराजकुमार दैवत सिंह से की गई।

महिपाल सिंह की तीन पौतियां और एक पौत्र हैं । इनमें में से एक पौती शिवात्मिका कुमारी (हर्ष वर्धन सिंह -महश्री कुमारी ) की शादी गुजरात में राजकोट के टिक्का साहब जयदीपसिंह मंधातासिंहजी जडेजा के राजघराने में शादी की गई है।इसी प्रकार दूसरी पोती रिशिखा कुमारी का विवाह मैसूर राजघराने में यदुवीर कृष्णदत्तचाम राजा वोडेयार से हुआ है । तीसरी पौती शिवांजलि कुमारी और पौता तविशमान सिंह (हर्ष वर्धन सिंह – प्रियदर्शिनी कुंवर) अभी मेयों कोलेज अजमेर में शिक्षारत है।

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महिपाल सिंह की रुचि सदैव स्वध्याय और खेलकूद में रहीं ।विशेष कर वे क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी और राज क्रिकेट क्लब डूंगरपुर के अध्यक्ष भी रहें । उन्होंने टोनी मेमोरीयल क्रिकेट प्रतियोगिता को वर्षों तक संरक्षण दिया।उन्होंने अध्ययन के साथ-साथ शोध कार्य में लगें छात्रों को ज्ञान बाँटना और आध्यात्मिक विचारों का आदान प्रदान करने के साथ ही विरासत में मिली राजनीति में भी गहरी रुचि रखी । हालाँकि वे राजनीति में अधिक सक्रिय नहीं रहें लेकिन सत्तर से अस्सी के दशक में देश में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले सम्पूर्ण क्रान्ति जन आन्दोलन और कांग्रेस के विरुद्ध एक जुट होंने से विभिन्न दलों को मिला कर बनी जनता पार्टी के डूंगरपुर ज़िला अध्यक्ष रहें। इसके अलावा वे देश के प्रथम गवर्नर जनरल राजाजी राजगोपालाचारी द्वारा गठित स्वतन्त्र पार्टी के वरिष्ठ नेता और अपने पिता महारावल लक्ष्मणसिंह जी के हर चुनाव में अपने अन्य भाई बहनों और परिजनों के साथ चुनाव प्रचार में सक्रिय भाग लेते थे।महिपाल सिंह अपने पिता की तरह ही एक प्रकृतिवादी और कृषि और वन्य जीवन के अध्ययन,पर्यटन व्यवसाय आदि में रुचि रखते हैं।उनका अध्ययन-अध्यापन,खेलकूद, राजनीति के अलावा पशुपालन और डेयरी व्यवसाय आदि में भी काफ़ी लगाव है ।उनकी गौशाला और फार्म हाउस में हर नस्ल की गायें और पशु रहें है । इस कार्य में उनकी इतनी गहरी रुचि रही कि पशुओं के लिए खुद अपनी जीप चला कर चारा पानी की व्यवस्था करने शहर की ओर निकल जाते थे।उनके इस परिश्रम और लगन के लोग काफ़ी मुरीद थे। महिपाल सिंह लम्बे समय तक विभिन्न सामाजिक,सांस्कृतिक धार्मिक आयोजनों में भी शरीक होते रहे और समय-समय पर अपने उदय बिलास पेलेस में गोष्ठियाँ और गेट टू गेदर भी करते थे। गुजरे जमाने के लोगों को उनके जीवन से जुड़े कई प्रेरणा दायी प्रसंग याद है।

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महिपाल सिंह अपनी माता किशनगढ़ अजमेर की राजकुमारी मनहर कुंवर, पिता महारावल लक्ष्मण सिंह, दादी देवेन्द्र कुंवर, चाचा डूंगरपुर स्टेट के दीवान महाराज वीरभद्र सिंह और अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय के चीफ़ जस्टीस रहें डॉ नागेंद्रसिंह, भुआजी वाँकानेर गुजरात की महारानी रमा कुमारी, अपने छोटे भाइयों जयसिंह डूंगरपुर,राजस्थान रणजी क्रिकेट टीम के वर्षों तक कप्तान और राजस्थान राज्य क्रीड़ा परिषद के अध्यक्ष रहें तथा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के चयनकर्ता,मेंनेजर,प्रशासक और अध्यक्ष रहने के साथ ही मृत्यु पर्यन्त  क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया मुंबई के अध्यक्ष रहें राज सिंह डूंगरपुर और देश-विदेश में अन्य जाने माने परिजनों एवं राजघरानों के सगे सम्बन्धियों के अलावा अपने प्रारम्भिक जीवन में उनके शिक्षक और संरक्षक रहें भट्ट कान्तिनाथ शर्मा का अपूर्व योगदान रहा। कान्तिनाथ भट्ट ने महिपाल सिंह के शिक्षा-दीक्षा की सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी अपने कन्धों पर लेने के लिए महारावल लक्ष्मण सिंह जी के आग्रह पर अपनी सरकारी शिक्षक की नौकरी से भी त्यागपत्र दे दिया और अपना सम्पूर्ण जीवन डूंगरपुर राज परिवार की सेवा में समर्पित कर दिया। महिपाल सिंह की शिक्षा-दीक्षा का काम पूरा होने पर महारावल लक्ष्मण सिंह ने उन्हें अपना राजनीतिक सचिव बना उन्हें एक और अहम जिम्मेदारी दी । बाद में भट्ट राजस्थान स्वतंत्र पार्टी के प्रदेश महामंत्री बने और उन्हें राजाजी राज गोपालाचारी के भाषणों का अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद और जयपुर की महारानी गायत्री देवी को राजनीति शिक्षा दीक्षा देने का दायित्व सौंपा गया। उन्हें देश के इतिहास में पहली बार किसी महारानी गायत्री देवी को राजनीति में लाने  का क्षेय भी मिला।

महारावल महिपाल सिंह एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे । उनकी याददाश्त गजब की थी और कहानी-क़िस्सों के भण्डार सुनाते समय उनकी अट्टहास भरी हँसी सभी को यकायक अपनी ओर आकर्षित करती थी ।

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महिपाल सिंह के पुत्र पूर्व सांसद हर्ष वर्धन सिंह के साथ उनकी धर्मपत्नी प्रियदर्शिनी कंवर ने उनकी अन्तिम समय तक बहुत सेवा की। उन्होंने महिपाल सिंह के मार्ग दर्शन में उदय बिलास के होटल व्यवसाय को बढ़ाने के साथ-साथ राजघराने के ऐतिहासिक वैभव को सुरक्षित रखने, डूंगरपुर के जूना महल और उदय बिलास और अन्य कोठियों में संग्रहालयों का विकास और हेरिटेज कार्यों को आगे बढ़ाया।

यें दोनों पति पत्नी धरोहर संरक्षण कार्यों को आगे बढ़ाने में आज भी बहुत सक्रिय है। साथ ही उन्होंने उदय बिलास महल डूंगरपुर के ऐतिहासिक हेंगर में अनेक पुरानी ऐतिहासिक विंटेज कारों और एयर क्राफ़्ट्स के म्यूज़ियम को जिस प्रकार विकसीत किया है वह दर्शनीय है। साथ ही वे महारावल लक्ष्मण सिंह द्वारा स्थापित लक्ष्मण देवस्थान निधि ट्रस्ट और डॉ नागेन्द्र सिंह द्वारा स्थापित जगत्धात्री माता ट्रस्ट आदि के कार्यों को आगे बढ़ा रहें है।

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