कुपोषण: पेट भरकर गालियाँ दो आह भरकर बद्दुआ!

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जयराम शुक्ल की खास रिपोर्ट

“भूख है तो सब्र कर
रोटी नहीं तो क्या हुआ
आजकल दिल्ली में है
जेरे बहस ये मुद्दुआ
मौत ने तो धर दबोचा
एक चीते की तरह
जिन्दगी ने जब छुआ तो
फासला करके छुआ।”

दुष्यंत जी ने ये पंक्तियां सत्तर के शुरुआती दशक में लिखीं थीं यानी कि 1972 के आसपास.. तब कोई रोटी-कपड़ा- मकान की बात उठाता तो जवाब में बांग्ला विजय की शौर्यगाथा सुना दी जाती। लेकिन यह शौर्यगाथा तब भी रोटी के सवाल को नहीं ढ़क सकी, इंदिरा गांधी को गरीबी हटाओ का खयाली नारा देना पड़ा।

आज पचास साल बाद भी स्थिति नहीं बदली। रोटी के सवाल पर आज वही बात बदले स्वरों में प्रचंड राष्ट्रवाद से सनी ‘फाइव ट्रिलियन इकोनॉमी’ और विश्वगुरू बनने की कहानी सुना दी जाती है।

बेचैन कर देने वाली यह तस्वीर कांगो- सूडान- इथोपिया की नहीं अपने मध्यप्रदेश के सतना जिले के मझगवां ब्लॉक के एक गाँव की है। माँ देहाती बोली में ‘सिस्टम’ की सच्चाई बयान करती है।

मझगवां ब्लॉक के चौबीस से पच्चीस गाँव अतिकुपोषित श्रेणी में आते हैं। दस-पंद्रह साल पहले डब्ल्यूएचओ ने यहाँ की स्थिति पर संग्यान लिया था। सुप्रीम कोर्ट(या हाईकोर्ट) ने जमीनी स्तर पर जाँच के लिए एक कमीशन बनाया था।

उस कमीशन के अध्यक्ष बाल अधिकारों पर काम करने वाले सचिन जैन(विकास संवाद केन्द्र) थे। सचिन ने यहाँ की स्थिति पर रिपोर्ट सौंपी थी उस पर क्या हुआ मुझे नहीं मालूम।

लेकिन नाना जी देशमुख के रहते इन्हीं वनवासी गाँवों में वनवासियों के साथ राष्ट्रपति डा.एपीजे अब्दुल कलाम को पंगत में बैठकर भोजन करते हुए अखबारों में देखा/ पढ़ा तो इत्मिनान हुआ कि स्थितियां बदल चुकी होंगी।

लेकिन यह इत्मिनान भ्रम ही निकला। 2012 में मध्यप्रदेश विधानसभा की हाईपावर कमेटी के साथ इन्हीं गाँवों में जाना हुआ तो भूख- रोटी- कुपोषण का वही सवाल सामने खड़ा मिला जो आज की इस तस्वीर में देख सकते हैं। उस हाईपावर कमेटी के चेयरमैन विधायक केदारनाथ शुक्ल थे और सदस्य महेद्र सिंह कालूखेड़ा व दीपक जोशी। इस कमेटी ने भी निश्चित ही अपनी रिपोर्ट सौंपी होगी।

2014 में जब मोदीजी प्रधानमंत्री बने तो आदर्श ग्राम योजना चलाई। शैंपेन खोलकर पाँच सितारा बार(इंदौर में शराबघर) का उद्घाटन करने के लिए चर्चित तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने इन्हीं अभागों के किसी गाँव(शायद पालदेव) को गोंद में लिया था। जावडेकर यहाँ कभी आए यह मैंने नहीं सुना पर सांसद गणेश सिंह जरूर इन गाँवों में वोट माँगने गए होंगे..क्या उन्हें ये तस्वीरें नहीं दिखी..?

चित्रकूट के जिन वनवासियों को प्रभु श्रीराम ने अपना सखा बनाया। उन्हें सशक्त किया। वनप्रांतर को राक्षसों से मुक्त किया उसी चित्रकूट के वनवासी और वन-पर्वत आज खतरें में हैं। और वह भी रामभक्त सरकारों की छत्रछाया के रहते..!

ऐसी तस्वीरों को देखकर बकौल दुष्यंतजी सिर्फ इतना ही कर सकते हैं –

गिड़गिड़ाने का यहां कोई
असर होता नही
पेट भरकर गालियां दो,
आह भरकर बददुआ ।