Mandsaur Loksabha Constituency: कांग्रेस के दिलीप बाहरी, भाजपा के सुधीर से लोग नाराज,संघ-भाजपा का गढ़ हाेने से पार्टी को लाभ
दिनेश निगम ‘त्यागी’ की ग्राउंड रिपोर्ट
प्रदेश का मंदसौर लोकसभा क्षेत्र भाजपा और संघ का गढ़ है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की टीम की सदस्य मीनाक्षी नटराजन पिछला चुनाव लगभग पौने 4 लाख वोटों के अंतर से हारी थीं। उन्हें हराने वाले भाजपा के सुधीर गुप्ता फिर मैदान में हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस की ओर से पूर्व विधायक दिलीप गुर्जर कर रहे हैं। दिलीप को गुर्जर मतदाताओं के कारण टिकट दिया गया है लेकिन वे बाहरी हैं। उनका विधानसभा क्षेत्र नागदा इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आता। उन्हें कांग्रेस नेताओं की गुटबाजी का भी सामना करना पड़ रहा है। दूसरी तरफ भाजपा के सुधीर बड़े अंतर से जीते लेकिन बाद में पार्टी कार्यकर्ताओं और लोगों के प्रति उनका व्यवहार ठीक नहीं रहा। इसके कारण उनके प्रति नाराजगी देखने को मिल रही है। हालांकि मंदसौर के भाजपा का गढ़ होने के कारण सुधीर का पलड़ा भारी दिख रहा है।
*0 किसान आंदोलन को भी नहीं भुना सकी कांग्रेस*
– मंदसौर में अफीम की खेती होती है। यह क्षेत्र काले सोने के लिए जाना जाता है। यह पशुपति नाथ का पावन नगर भी है। हाल ही में मंदसौर क्षेत्र के नीमच में बड़ा सोलर प्लांट लगा है। 2016 में हुए किसान आंदोलन के बाद कांग्रेस यहां अपनी जमीन मजबूत कर सकती थी। इस आंदोलन के दौरान किसान मौत का शिकार हुए थे। कांग्रेस हर चुनाव में यह मुद्दा उठाती तो है लेकिन अपना आधार मजबूत नहीं कर सकी। यही कारण है कि भाजपा के सुधीर गुप्ता 2014 में 3 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे और 2019 में उनकी जीत का अंतर पौने 4 लाख हो गया। दोनाें बार कांग्रेस की बड़ी नेता मीनाक्षी नटराजन हारीं। इससे पहले 2009 मेें वे लगभग 31 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीती थीं। विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को सफलता नहीं मिली। दोनों बार उसे 8 में से महज 1 जीत से संतोष करना पड़ा। इससे पता चलता है कि मंदसौर में भाजपा का आधार कितना मजबूत है। जिसे इतना बड़ा किसान आंदोलन भी समाप्त नहीं कर सका।
*0 भाजपा-कांग्रेस की ताकत और कमजोरी*
– भाजपा की ओर से तीसरी बार मैदान में उतरे सुधीर गुप्ता ने संगठन, सरकार और संघ की बदौलत बढ़त भले बना कर रखी है लेकिन पार्टी के कार्यकर्ता और लोग उनसे खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि वे चुनाव जीतने के बाद लोगों को भूल जाते हैं। सीधे मुंह बात तक नहीं करते। हालांकि उन्होंने काम काफी कराए हैं। दिल्ली- मुंबई एक्सप्रेस को मंजूरी दिलाने का श्रेय उन्हें दिया जाता है। रेल्वे लाइन का महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट भी वे स्वीकृत करा कर लाए। अन्य कई काम भी उन्होंने कराए हैं। जब मीनाक्षी नटराजन कांग्रेस से सांसद थीं तो उन्होंने रेल्वे लाइन के सर्वे का वादा किया था। उसे न वे पूरा सकीं और न ही भाजपा के सुधीर गुप्ता। दूसरी तरफ कांग्रेस के दिलीप गुर्जर काे बाहरी कहा जा रहा है। मीनाक्षी नटराजन उनका काम कर रही हैं लेकिन कांग्रेस गुटबाजी की शिकार है। दिलीप का विधानसभा क्षेत्र मंदसौर की बजाय उज्जैन लोकसभा क्षेत्र के तहत है। गुर्जर सहित कुछ जातियों के भरोसे ही दिलीप जीत की उम्मीद कर रहे हैं। इन कारणों से मंदसौर में भाजपा बढ़त बनाए दिख रही है।
*0 राष्ट्रीय एवं विकास के मुद्दों पर लड़ा जा रहा चुनाव*
– मंदसौर भाजपा के साथ संघ का भी गढ़ है। इसलिए यहां अयोध्या का राम मंदिर, कश्मीर की धारा 370, मथुरा-काशी, हिंदू- मुस्लिम जैसे राष्ट्रीय और भाजपा के कोर मुद्दे जमकर चल रहे हैं। भाजपा केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा कराए जा रहे विकास के अन्य काम गिना रही है। सांसद व भाजपा प्रत्याशी अपनी उपलब्धियां भी गिना रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के चुनाव की बागडोर मीनाक्षी नटराजन के हाथ है। इसलिए कांग्रेस घोषणा पत्र में किए गए वादों को बताया जा रहा है। भाजपा सरकार को महंगाई और रोजगार जैसे मुद्दों पर कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। किसान आंदाेलन के दौरान जो हुआ, उसकी याद दिलाई जा रही है। कांग्रेस किसान कर्जमाफी का वादा फिर किया जा रहा है। कांग्रेस 5 न्याय और 24 गारंटियों का प्रचार कर रही है। इस प्रकार दोनों ओर से राष्ट्रीय मुद्दों को आगे रखकर प्रचार अभियान चलाया जा रहा है।
*0 जीत का अंतर कवर करना कांग्रेस के लिए चुनौती*
– विधानसभा में कांग्रेस की ताकत लगातार कमजोर है। 2018 में वह 8 में से सिर्फ 1 सीट जीती थी और 2023 के चुनाव में भी वह इससे आगे नहीं बढ़ सकी। 2018 में कांग्रेस एक सुवासरा विधानसभा सीट मात्र 350 वोट के अंतर से जीती थी और 2023 में उसने एक मात्र मंदसौर सीट लगभग 2 हजार वोटों के अंतर से जीती। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को एक भी विधानसभा सीट में बढ़त नहीं मिली। भाजपा ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 8 में से 7 सीटें जीती थीं और 2023 में भी उसने यह सिलसिला बरकरार रखा। 4 माह पहले हुए विधान सभा चुनाव में कांग्रेस एक सीट 2049 वोटों के अंतर से जीती है जबकि भाजपा का 7 सीटों में जीत का अंतर 1 लाख 73 हजार 508 वोट का रहा। लोकसभा चुनाव में इस अंतर को कवर करना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। लोगों से बातचीत करने पर पता चलता है कि भाजपा पिछली बार की अपनी लीड और बढ़ा सकती है।
*0 लक्ष्मीनारायण पांडे के नाम से जानी जाती है सीट*
– मालवा अंचल के मंदसौर लोकसभा क्षेत्र की सीमा एक जिले विशेष तक सीमित नहीं है। इसके तहत तीन जिलों रतलाम, नीमच और मंदसौर की विधानसभा सीटें आती हैें। इनमें रतलाम जिले की जावरा के अलावा नीमच जिले की मनासा, जावद और नीमच शामिल हैं। इसके तहत मंदसौर जिले की 4 सीटें मंदसौर, मल्हारगढ़, सुवासरा और गरोठ आती हैं। इनमें सिर्फ एक मंदसौर पर ही कांग्रेस का कब्जा है, शेष सभी पर भाजपा काबिज है। जहां तक मंदसौर के राजनीतिक मिजाज का सवाल है तो लंबे समय तक यह सीट प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेता स्व लक्ष्मीनारायण पांडे के नाम से जानी जाती रही है। वे 1991 से 2004 तक लगातार यहां से चुनाव जीते और सांसद रहे हैं। 2009 में उन्हें कांग्रेस की मीनाक्षी नटराजन ने हराया था। इसके बाद दो चुनाव भाजपा के सुधीर गुप्ता जीत चुके हैं। वे लोकसभा का तीसरा चुनाव लड़ रहे हैं।
*0 यहां जातिगत आधार पर नहीं होता मतदान*
– मंदसौर लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा पिछड़े वर्ग के लगभग 48 फीसदी मतदाता हैं। चुनाव में ये ही निर्णायक हैं। यह वर्ग कई जाति समूहों में बंटा है। जिस जाति का प्रत्याशी मैदान में होता है, वह समाज उसके पक्ष में जाता है। शेष मतदाता दलीय आधार पर ही मतदान करते हैं। दूसरे नंबर पर क्षेत्र में लगभग 15 फीसदी दलित और आदिवासी मतदाता हैं। इनका बड़ा हिस्सा अब भी कांग्रेस के पक्ष में जाता है। इनके अलावा सभी अन्य जाितयां हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य मतदाताओं का ज्यादा झुकाव भाजपा की ओर दिखाई पड़ता है। यहां का राजनीतिक मिजाज देखकर लगता है कि मतदाता जातिवादी राजनीति को पसंद नहीं करता और अपवाद छोड़कर इसके आधार पर मतदान भी नहीं करता। कांग्रेस ने गुर्जर मतदाताओं की तादाद देखकर दिलीप सिंह गुर्जर को टिकट दिया है। इनके आलावा मुस्लिम, अजा- जजा वर्ग का साथ कांग्रेस काे मिलता है। शेष समाजों के वोट भाजपा के पक्ष में ज्यादा जाते हैं।
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